ऐसा भला कैसे हो सकता है कि , पूरी दुनिया में कहीं भी मज़हबी कट्टरता की बात हो , कोई हुजूम , कोई जलवा जुलुस निकले , कहीं बम बारूद खंजर से लोगों का कत्ले आम हो और इन मज़हबी उन्मादियों के सुर में सुर मिलाने को भारत के पढ़े लिखे से लेकर पंचर छाप जाहिल मुग़ल एकदम अचानक से ही यलगार हो के मूड में न आ जाएं। फिर अब तो तुर्की के बाद मुगलों के नए नए अब्बा हजूर जनाब तालिबान -अभी बर्बरता , कट्टरता और वहशीपन की नई क़िस्त लेकर अफगानिस्तान पर काबिज हुए हैं।

भई जेहाद का असली परचम लहराने के लिए ही तो अच्छे भले बढ़ते पलते , विकसित हो रहे देश को दोबारा से जाहिलों का कबीला बनाया जा रहा है। कोड़े बरसाए जा रहे हैं , हाथ पैर गले काटे जा रहे हैं और ये बस बहादुरी दिखाई किन पर जा रही है , औरतों , बच्चों , बुजुर्गों पर। लिल्लाह !

भारत के मुगलिए जो सिर्फ इसी ताक में रहते हैं कि ऐसे मौकों पर कुछ ऐसा कह बोल लें कि फिर कुछ दिन तक ही सही उनके आका और अब्बाजान फूफाजान और सबसे ज्यादा मज़हबी कट्टरता के ठेकदारों की नज़र में अपने नंबर भी बना सकें। मुनव्वर राणा , के बिगड़े बोल के बाद , ढंग से बोल भी नहीं पाने वाले फ़िल्मी साईर लेखक -जेहाद अख्तर ने फ़रमाया है कि -विश्व का सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन -राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भी तालिबान ही है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो अब 100 वर्षों का होने जा रहा है जिससे देश ही नहीं विदेश में रहने वाले लाखों करोड़ों भारतीय प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं , एक संगठन जो प्राकृतिक आपदा से लेकर किसी भी मानवीय संकट तक में समाज और देश के साथ खड़ा मिलता है , एक संगठन जिसने भारत की सांस्कृतिक ,सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना को जोड़ने सहेजने को ही अपना ध्येय मान रखा है। एक संगठन जिसका निमित्त मात्र ही भारत को परम वैभवशाली राष्ट्र के रूप में निर्मित विकसित संगठित करना है वो जेहाद अख्तर को -क्रूर , जाहिल और पाशविक तालिबान जैसा दिख रहा है।

हो भी क्यों न -जिस व्यक्ति के ज़ेहन में मज़हबी कट्टरता कूट कूट कर भरी हो और जिसने न सिर्फ अपनी सोच बल्कि अपने शब्दों , कहानियों , संवादों में -भेड़ की खाल में भेड़िये की तरह चुपचाप अपना एजेंडा चलाया। अपने जैसी ही घटिया और मज़हबी सोच रखने वालों की पूरी गैंग बना कर पूरे हिंदी सिनेमा जगत को बॉलीवुड माफिया के रूप में बदल दिया और बदले में इस देश की जनता का ही अथाह पैसा ,मान सम्मान भी लूट कर छुट्टा घूम रहा हो उसे फिर तालिबान और राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ में कोई अंतर नहीं ही दिखेगा।

मियाँ जिहाद अख्तर – अगर ज़मीर का एक भी कतरा सच में ही बचा हुआ है तो सोच के बताना कि , किस स्वयं सेवक के हाथ में बम बन्दूक , मजहबी कट्टरता का उन्माद देखने सुनने को मिला है आज और अभी तक। मियाँ जी खैर मनाओ कि ये जो देश है भारत है न – वो करोड़ों हिन्दुओं , सनातनियों के होते हुए भी खुद को कभी हिन्दुस्तान नहीं होने दिया , न ही तालिबानियों की तरह किसी को बुर्का दाढ़ी पहनाई -वो सिर्फ इसलिए कि क्यूंकि सनातन को कभी भी इस जबरदस्ती की जरूरत नहीं पड़ी। तब भी नहीं जब -वो तुर्क मंगोल मुग़ल जिन्हें तुम अपना अब्बा माने बैठे हो – ने इस देश को , यहाँ के मंदिरों , शहरों , गाँवों को अपनी लालच और हवस का शिकार बनाया – क्या समझे मियाँ जी ???

तो याद रहे कि – घाव को इतना मत कुरेदो कि वो नासूर बन कर इस कदर चुभने लगे कि फिर न तुम्हें RSS की समझ रहेगी और न ही तुम तालिबान के सगे होकर रह सकोगे। वैसे चलते चलते एक बात और पूछनी थी – जेहाद अख्तर जी -सुना है , आपके मज़हब में – सिनेमा टीवी संगीत सब हराम माना जाता है -सच है क्या ?? कुछ इस बारे में भी लिखो बोलो चिचा जान – फिर चाहे वो अपनी तुतलाती थुथलाती जबान में ही सही। अजी हाँ

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