19 जनवरी 1990 यानी के दिन
कश्मीरी सनातन धर्मीयो के ऊपर।
रेडिकल इस्लामिक टेररिज्म का आक्रमण हुआ था।हजारों सनातन धर्मीयों की हत्या कर स्त्रियों का बलात्कार किया गया था।तथा लाखों को कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया गया।
तथा कश्मीर के अंदर 50000 मंदिरों यज्ञशालाओं को बंद कर दिया गया था।
सैकड़ों मंदिर तोड़ दिए गए थे।
तथा तत्कालीन जम्मू कश्मीर के जिहादी प्रशासन ने एक FIR तक दर्ज नहीं की थी।
बड़े-बड़े व्यापारी और धनाढ्य व्यक्ति भी शरणार्थियों का जीवन जीने को मजबूर हो गए थे।
तथा उस त्रासदी को कश्मीरी पंडितों का पलायन नाम दे दिया गया ताकि सनातन धर्मीयो में एकता आकर कहीं आतंकियों,हत्यारों,जिहादियों के विरुद्ध युद्ध का शंखनाद ना कर दे।
तत्कालीन केंद्र सरकार और मीडिया ने भी इस को प्रमुखता से जगह नहीं दी थी।
कभी इसका कारण अवश्य सोचिए।यह सोचने का विषय है कि कश्मीर में सनातन वैदिक धर्मीयों के पास।संपत्ति जमीन रुपया पैसा,सब कुछ था।फिर भी उन्हें विस्थापित होकर शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा सब कुछ छोड़ कर।
क्योंकि उन्होंने वेदों में वर्णित सुरक्षा के सिद्धांत को भुला दिया था।ऋग्वेद का कथन है
“धर्म,राष्ट्र और मानवता के शत्रुओं को साम दाम दंड भेद नीति से समाप्त करो”
हमें कभी भी अपने सुरक्षा के सिद्धांत को नहीं भूलना चाहिए।
अतीत से लेकर वर्तमान तक सनातन धर्म पर होने वाले आघात हमारे सुरक्षा सिद्धांत को भूलने का का परिणाम है।वर्तमान में अथवा भविष्य में इस प्रकार की त्रासदी सनातन वैदिक धर्मीयों को ना देखनी पड़े।उसके लिए अतीत (इतिहास) से शिक्षा और वर्तमान में शोध और चिंतन की आवश्यकता है।
और यह शोध चिंतन और शिक्षा केवल सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन से ही संभव है अन्यथा नहीं।यह हमारे अपने विचार हैं अगर किसी सेकुलर के हृदय को आघात पहुंचता है तो पहुंचता रहे।हमारा कार्य अतीत से शिक्षा लेकर वर्तमान में सनातन धर्मीयों को जगा कर भविष्य के लिए।
सनातन धर्मीयों को जागरूक करना है।

गोपाल आर्य

@Akhandomnaam

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