लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि ??
चाहे देश की आजादी के पूर्व के संघर्ष हो चाहे आजादी के बाद संकट के घड़ियों में , बिखराव के वातावरण में अपनी कौशल के द्वारा , अपनी दृढ़ शक्ति के द्वारा , अपनी सर्वोत्कृष्ट भारत भक्ति के द्वारा अंग्रेजो की रणनीत जो भारत को अलग थलग करने की थी उसे उसे जमींदोज करने वाले एकता के शिल्पी , भारत रत्न , व लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ।
सरदार जी का जन्म 31अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था । सरदार जी अपने माता पिता के 6 बच्चो में से सबसे प्रिय थे सभी परिवार जनो के आंखो के तारे थे । सरदार जी बचपन से ही गरीबी , शोषितों व असहायों की सेवा करते देख सबके हृदय में बसते गए । सरदार जी पढ़ाई में भी सभी विद्यार्थियों से अच्छे थे इनकी गिनती कक्षा में सबसे उत्कृष्ट छात्रों में किया जाता था । सरदार जी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात बैरिस्टर कि पढ़ाई करने की सोची इन्हे बुलावा भी आया इंगलैंड मे पढ़ाई की परन्तु इंग्लैंड की बैरिस्टर की पढ़ाई के मांग को ठुकरा के मां भारती के गोद में रहकर स्वतः अध्ययन के मार्ग को चुना अपने कठिन परिश्रम के बदौलत पढ़ाई करने के बाद केस को लड़ने लगे फिर कुछ दिनों मे ही इनकी गिनती एक कुशल वकीलों मे की जाने लगी ।
सरदार जी अपने कोर्ट के कामों को पूजा के समान मानते थे क्योंकि उनका कर्म था एक बार सरदार जी कोर्ट में जिरह कर रहे थे तो उसी समय किसी ने उन्हें उनकी धर्मपत्नी की देहावसान की सूचना नोट के द्वारा दी तो वो नोट को अपने जेबो में डालने के पश्चात पुनः जिरह मे व्यस्त हो गए जिरह समाप्त होने के बाद उन्होंने स्वयं घोषणा करके बताया कि उनके धर्मपत्नी जी का देहावसान हो गया है । देहावसान के किसी बुजुर्ग ने उनके आंसू ना गिराने पर उनसे पूछ बैठे की ” आपकी जीवन संगिनी का देहावसान हुआ है आपको दुख नहीं है ” सरदार जी ने बड़ी भावुकता से बड़े सहज ही शब्दो में कहा कि ” जहां आंख रोए उसे ममता नहीं कहते जहा हृदय रोए उसे ममता कहते ” इन्हीं शब्दो को कहते हुए दाहसंस्कार किया ।
बच्चो के छोटे होने पर परिवार व रिश्तेदारों के दबाव में दूसरी शादी कर लिए परन्तु संत केवल अध्यात्म जीवन में हो ये जरूरी नहीं संत गृहस्थ जीवन में भी हुआ जा सकता है कुछ इसी प्रकार से सरदार जी का पूरा जीवन साधु संतो का भी जीवन रहा सरदार जी अपने उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के कार्यकाल के आरम्भ में ही अपने परिवार जनों को कह दिया कि ” मरे मंत्री के कार्यकाल के अंत तक आप सब दिल्ली के इधर उधर एक योजना तक नजर ना आए क्योंकि मुझे मा भारती को अखंड बनाना है ” ये शब्द किसी गृहस्थ जीवन में रह रहा व्यक्ति का नहीं लगता ये शब्द को किसी महान संत का लगता है मा भारती के उपासना में लगा हो ।
मा भारती को अखंड स्थापित करने के बाद सरदार जी ने 15 दिसंबर 1950 को अंतिम सांस ली और उनके लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति अपने शब्दो में कहा कि ” आज सोचने और बोलने के लिए हमे भारत नाम का देश उपलब्ध है यह सरदार पटेल की लौहता और प्रशासन पर जबरदस्त पकड़ के कारण संभव हो पाया है “
आज उसी मा भारती के लाल का पुण्यतिथि है जिसने अपनी सम्पूर्ण जीवन मा भारती के को सजाने में लगा दिया हो ऐसे देवपुरुष स्वरूप लौह पुरुष को उनकी पुण्य तिथि पर शत शत नमन ??
भारत माता की जय⛳⛳⛳⛳
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