आजकल देश में बोलने की आजादी के नाम पर महज कानून व्यवस्था को मजाक बनाकर रख दिया है कोई ऐरा गैरा चर्चाओं में आने के कभी भी मुंह उठाकर अपने पब्लिक प्लेटफार्म पर से कभी भी कुछ भी गन्दगी कर देता है और फिर शुरू होता है पार्टी या दलों का खेल और फिर विचारधाराओं का खेल, जैसे पिछले कई वर्षों से देख रहे है कि प्रोफेशनल लाइफ में अपना कार्य करने वाले अभिनेता, नेता और कलाकार कभी भी खुलकर किसी भी विषय जिस पर उनका कोई लेना देना नहीं है उस पर भी गन्दगी फिकेरने से बाज नहीं आते है
बॉलीवुड जगत के अभिनेता हो या कलाकार या भी कॉमेडियन, आजकल इन्होंने अपना प्रोफेशन भूलकर देश के आंतरिक मुद्दों पर भी अपनी राय रखनी शुरू कर दी है और फिर इनकी नकारात्मक राय को हवा दे देते है कुछ वामपंथी विचारधारा के लोग, कुछ लेफ्टिस्ट और कुछ देशद्रोही गद्दार किस्म के एंटी नेशनलिस्ट….जिनका काम केवल ऐसे मुद्दों पर देश में अशांति फैलाने का कार्य है और फिर इनको बचाने के लिए कुछ लिब्रांडू बाहर निकलकर आते है और संविधान की दुहाई देते हुए कपड़े फाड़कर विधवा विलाप करते है
देश में आज कुछ भी होता है तो सबसे पहले उस घटना को दल और विचारधारा के नाम पर बांटते है जैसेपिछले दिनों जब सुशांत सिंह राजपूत का मर्डर हुआ, जिसमें उसकी तहकीकात के दौरान इसको राजनीतिक रंग देने के लिए न्याय को भी राजनीति से जोड़ दिया है न्याय आज भी न्याय की आस में भटक रहा है मीडिया हाउस जिस प्रकार इस मामले को देख रहा था कुछ इस पर अपनी बात रख रहे थे तो कुछ दवाब में चुप थे उसी दौरान रिपब्लिक भारत के मालिक अर्णब गोस्वामी ने मामला उठाया और उसमे बॉलीवुड के कई अभिनेताओं का नाम ड्रग्स से जुड़ा और मामला सीबीआई से एनसीबी होते हुए कई लोग रडार पर आने लगे, उसी हाल में महाराष्ट्र सरकार का रवैया भी ठीक नहीं लगा और कहीं ना कहीं राज्य सरकार की भी पैरवी यही रही कि मामला दब जाए और फिर जब अर्णब गोस्वामी ने पीछा नहीं छोड़ा और कंगना राणावत ने खुलकर शिवसेना सरकार का विरोध किया तो पहले कंगना राणावत का घर और ऑफिस तोड़ा गया और फिर अर्णब गोस्वामी को बेवजह गिरफ्तार कर यातनाएं दी गई, केवल सरकार विरोधी डर पैदा किया गया, उसी समय कुछ असामाजिक तत्वों में शिरमोर स्वारा भास्कर, कुणाल कामरा, हंसराज मीणा, उदित राज और कई अन्य फर्जी लोगो को सरकार ने फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर नंगा नाच करने की छूट दे दी और उन्होंने अपनी गंदी मानसिकता से परिचय करवाते हुए देश की व्यवस्था, देश की केंद्र सरकार और हर संबंध ना रखने वाले मुद्दे पर भी बोलना शुरू कर दिया और वामपंथी विचारधारा के लोग उसे प्रोमोट करने लग गए….
फ्रीडम ऑफ स्पीच को दबाने पर शुरू हुई ये लड़ाई फ्रीडम ऑफ स्पीच के दुरुपयोग पर आकर नाचने लग गई और जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी को जमानत दी उसी दिन इस फर्जी कुणाल कामरा ने ट्वीट कर सर्वोच्च न्यायालय को जोक के नाम से संबोधित कर लगातार न्यायालय की अवमानना की और इसका हौसला बढ़ाती रही तथाकथित हिंदूवादी सरकार शिवसेना सरकार, बात यहीं तक ना रुकी जब कुणाल कामरा के ट्वीट और फ्रीडम ऑफ स्पीच के दुरुपयोग पर कार्यवाही करने की बात आई तो उसने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के बारे में भी अनाप शनाप बोलने और असहनीय टिप्पणी करने से बाज नहीं आया….
इसी व्यवस्था में है अब सवाल यह उठता है कि देश की युवा विचारधारा आखिर किस तरफ जा रही है फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर देश की व्यवस्था को खुलेआम नंगी गालियां देना और देश के व्यवस्था तंत्र के मुख्य घटक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के बारे में किसी भी प्रकार की अभद्र टिप्पणी करना क्या फ्रीडम ऑफ स्पीच में आता है कानून और न्यायालय की किस प्रकार से अवमानना वास्तविक स्तर पर देश की भावी पीढ़ी को किस ओर ले जाने का प्रयास कर रही है क्या इस तरफ सोचने का समय नहीं आया कोई भी फर्जी व्यक्ति फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर देश के किसी भी व्यवस्था पर गंदगी फैल आएगा और कानून उस पर अपना काम नहीं करेगा फिर ऐसे कानून की क्या जरूरत है और क्या जरूरत है
ऐसे फ्रीडम ऑफ स्पीच की जो किसी के स्वाभिमान को भी ना बचा सकेये फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर सीधे सीधे देशद्रोह है ऐसे लोग जो देश के संविधान और लोकतंत्र का मजाक उड़ाते है उन पर सीधे देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए ताकि उन्हें इस बात अहसास हो कि देश की गरिमा सबसे पहले है अन्यथा आने वाले समय में फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर हर गली कूचे में ये लोग गन्दगी करते नजर आएंगे इनपर समय रहते लगाम जरूरी है क्योंकि देश की भावी पीढ़ी को बचाना है देश को बचाना है
जनता से भी अपील है कि ऐसे लोगो को सबक सिखाए और इनका बहिष्कार करे ।
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