(एक ऐसा नायक जिसके लिए मात्र राष्ट्रहित एवं जनकल्याण ही सदैव सर्वोपरि हो)

अगर चाहते हो कि तिरंगा, ऊँचा ही लहराए।

कोई काली आशंका भी, उसको छू ना पाए॥

पहचानो उसको जिसका, जीवन अर्पित भारत को।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥मु॥

जिसने जीवन दिया देश को, गलियों में भटका हो।

सम्बन्धों को छोड़ चला हो, ना धन में अटका हो॥

देश प्रथम हो जिसके क्रम में, परिजन जनता ही हो।

मातृभूमि की सेवा करने, इच्छा-क्षमता भी हो॥

आने वाला कल जिसको, सच्चा सपूत कह पाए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥1॥

धरती माँ को नमन करे जो, संस्कृति पर मरता हो।

देशद्रोहियों-जयचन्दों के, मन में भय भरता हो॥

स्वावलम्बी बन जाए हर जन, हो जिसका ये सपना।

भेदभाव को परे करे जो, कर ले सब को अपना॥

विश्व के हर कोने में जो, ऊँचा परचम लहराए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥2॥

नहीं सान्त्वना दे न सहारा, प्रेरित शक्ति कर दे।

देशप्रेम और पौरुष का वो, मन्त्र हृदय में भर दे॥

सेवक बन जाए किसान का, कवच बने सैनिक का।

नायक जो कर दे भारत को, जल, भूमि और दिक् का॥

नारी को निर्भीक करे, बच्चा-बच्चा हरषाए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥3॥

सोचे आगे का जो, याद रखे उजला इतिहास।

भ्रष्ट का इतना साहस ना हो, फटके उसके पास॥

हो चुनाव उसका जो, जनता में ना करे चुनाव।

सुजला-सुफला हो धरती, वो हर ले सभी अभाव॥

जिसको गले लगाने को, जग सारा हाथ बढ़ाए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥4॥

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