वो साल 2014 था जब देश की सियासत में बड़े बदलाव के संकेत दिखने लगे थे. कई सितारें चमक उठे तो कईयों के सितारे गर्दिश में चले गए. ये वो समय था जब पीके यानि प्रशांत किशोर को राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में जाना जाने लगा. उस समय कुछ ऐसी हवा चली कि मानो किसी भी पार्टी को अपनी रणनीति से कोई जीत दिला सकता है तो वो हैं PK. लेकिन प्रशांत किशोर के दिमाग में तो समय से पहले ही कुछ बड़ा पाने की लालसा थी. जिसका जवाब आने वाले कल में छिपा था .
दरअसल जब पीएम मोदी के साथ रहते हुए उन्हें उनका स्वार्थ पूरा होता दिखाई नहीं दिया तो निकल पड़े बिहार की तरफ . वैसे आपको बता दें प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर जिले से ही आते हैं. बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी. यहां भी उनकी ख्वाहिश थी की जेडीयू का सर्वेसर्वा बना दिया जाए. लेकिन राजनीति की राह जितनी आसान दिखती है उतना ही उसपर चलना मुश्किल है. यहां भी उनकी दाल नहीं गली. उसके बाद कांग्रेस का हाथ पकड़कर उसके सिर जीत का सेहरा बंधवाने के लिए उन्होंने 2017 में यूपी में डेरा डाल दिया, लेकिन यहां कांग्रेस की किस तरह से मटियामेट हुई बताने की जरुरत नहीं है. फिर 2021 में ममता बनर्जी की टीएमसी को अपना बनाने की तैयारी करने लगे . लेकिन पार्टी में जिस ममता बनर्जी ने अपने अलावा कभी किसी की नहीं चलने दी वहां भला प्रशांत किशोर की क्या बिसात थी , वहां भी इन्हें मायूसी ही हाथ लगी. आखिरकार थक हार कर 2022 में दोबारा कांग्रेस के दरवाजे पर प्रशांत किशोर पहुंचे लेकिन लाख कांग्रेस डूबती दिख रही है लेकिन पीके का सहारा इस बार कांग्रेस ने भी नहीं लिया और कांग्रेस में इनकी एंट्री पर ब्रेक लगा गया. बस क्या था प्रशांत किशोर ने ट्वीटर के जरिये अपना रुख साफ करते हुए लिख दिया कि वो कांग्रेस पार्टी नहीं ज्वाइन करने वाले हैं। उन्होंने लिखा- मैंने कांग्रेस के हिस्से के रूप में पार्टी में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने के #कांग्रेस के उदार प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने आगे कहा, मेरी विनम्र राय में परिवर्तनकारी सुधारों के माध्यम से गहरी जड़ें जमाने वाली संरचनात्मक समस्याओं को ठीक करने के लिए पार्टी को मुझसे अधिक नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
I declined the generous offer of #congress to join the party as part of the EAG & take responsibility for the elections.
In my humble opinion, more than me the party needs leadership and collective will to fix the deep rooted structural problems through transformational reforms.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) April 26, 2022
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए खूब मशक्कत की, खूब हाथ-पांव मारे लेकिन तमाम कोशिशें धरी की धरी रह गयी. कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर ये घोषणा कर दी है कि प्रशांत किशोर पार्टी के लिए काम नहीं करेंगे. जिसके बाद प्रशांत किशोर ने अपनी सियासी चाल अपनाते हुए यहां कुछ ऐसा दिखाया की कि ‘डूबती हुई नाव की सवारी मैं नहीं करता’, मतलब यहां भी उन्होंने कांग्रेस की कमी ही सामने रखी.
दरअसल अवसरवादी राजनीति हम दशकों से देखते आएं हैं और इसी का एक उदाहरण प्रशांत किशोर भी हैं. कभी पीएम मोदी के साथ अपनी रणनीतिकार-राजनीतिक पारी खेलने वाले पीके ने हाल के दिनों में अपनी सियासी महत्वकांक्षा और स्वार्थ पूर्ति के लिए इतने प्रपंच फैलाएं हैं कि उसकी वजह से उनकी छवि बिन पेंदी वाले लोटे जैसी बन गई है. जो फिलहाल न घर का रहा ना घाट का .
कुल मिलाकर प्रशांत किशोर की हालत एक ऐसे बिज़नेसमैन की तरह हो गई है जिसकी डील नहीं हुई तो क्लाइंट में ही कमी निकालने लगे . खैर ये राजनीति है जहां अच्छे-अच्छे खिलाड़ी भी मात खा जाते हैं तो भला प्रशांत किशोर तो अभी नये-नये इस खेल में शामिल हुए हैं. वैसे भी हमारे बड़े-बुर्जुगों ने कहा है कि समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कभी भी कुछ नहीं मिला है इसलिए धीरज रखिए PK जी.
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