क्या आतंकवाद पर राजनीति करने वाले नेता आतंकी से ज्यादा खतरनाक है?
इस्लामी जिहाद की लखनऊ में दस्तक : सुरक्षा बलों की मुस्तैदी ने किया खूनी मंसूबा नाकाम
इस्लामी जिहाद की लखनऊ में दस्तक : सुरक्षा बलों की मुस्तैदी ने किया खूनी मंसूबा नाकाम
अंसार गजवातुल हिंद के रूप में इस्लामिक जिहाद की जड़ें लखनऊ तक पहुंची. सुरक्षाबलों की मुस्तैदी और समझबूझ ने बड़ी आतंकी साज़िश को नाकाम किया और जिहादियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा….. लेकिन क्या कहानी बस इतनी सी थी? नहीं कहानी तो गिरफ्तारी के बाद शुरू हुई.
लेकिन पहले जानिए की वो कौन सा आतंकी संगठन है जिसने लखनऊ को दहलाने की साजिश की थी.
अंसार गजवातुल हिंद कश्मीर केंद्रित अल कायदा का अनुषंगिक संगठन है. गजवा ए हिंद की हदीस पर आधारित ये संगठन पाकिस्तान से संचालित होता है. 2017 से ये संगठन कश्मीर में ऐक्टिव हुआ लेकिन इससे पहले कुछ बड़ा कर पाता, अप्रैल 2019 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन कर इस संगठन को समाप्त कर दिया था. उसके बाद पाकिस्तान ने संगठन को फिर उठाने की कोशिश की लेकिन सेना ने पाकिस्तानी आतंकियों का एक बार फिर सफाया कर दिया. यहां चौकाने वाली बात ये थी कि इसका सरगना हैदराबाद (तेलंगाना) का रहने वाला मोमिन जाकिर रशीद मूसा था जिसे 2019 में सुरक्षा बलों ने मार गिराया था.
जब अपनी ही आस्तीन में जिहादी सँपोले पल रहे हों तो आतंक आसानी से खत्म नहीं होता है. इन्टरनेट के जरिए लखनऊ में स्लीपर सेल को ऐक्टिव किया गया, लखनऊ में पले बढ़े आतंकी, नासिरुद्दीन और मिनहाज अहमद ने अपने दोस्तों से मिल कर हथियार और बम के लिए बारूद का इंतजाम किया बम के लिए विस्फोटक इकट्ठा किया – उद्देश्य लखनऊ के प्रसिद्ध संकट मोचन (हनुमान) मंदिर में प्रेशर कुकर बम से धमाका कर सैंकड़ों हिंदू दर्शनार्थियों की नृशंस हत्या.
दुख की बात ये है की ऐसे गंभीर मामले में भी राजनीतिक फायदा तलाशते हुए अखिलेश यादव और मायावती पुलिस और UP ATS पर सवाल उठाते हुए आतंकवादियों के पक्ष में खड़े हो गए. उनको लगता है कि ऐसा करके वो मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में कर लेंगे. लेकिन ऐसी हरकतों से ये राजनेता ना सिर्फ समाज मे वैमनस्य फैलाते है बल्कि देश की 30% आबादी के मन में देश की न्याय प्रक्रिया का भरोसा भी कम करते है. समाजवादी पार्टी का पुराना इतिहास रहा है मुस्लिम वोटों के लालच में जिहादी आतंकी संगठनों की पैरवी करने का. अपनी सरकार के समय अखिलेश यादव ने लखनऊ, वाराणसी आतंकी हमलों के गुनहगारों से केस वापस ले कर रिहा करने की कोशिश करी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इनका इरादा विफल कर दिया.
मुस्लिम वोट के लालच में मायावती भी पीछे नहीं रही है. बसपा में आपराधिक घटनाओं में नामजद कई मुस्लिम माफिया और गुंडे है. और इनके दबाव में आकर मायावती भी अखिलेश यादव की तरह आतंकियों की पैरवी करती हुई नजर आती है.
…… क्या ऐसे राजनेताओं को देश के किसी नागरिक का समर्थन मिलना चाहिए? क्या ऐसे राजनेता देश का भला सोच सकते हैं?
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