फिल्म जूली का ( पुरानी )एक अदना सा दृश्य है जिसमें जूली को छेड़ने वाला एक सड़क छाप पिद्दी जैसा लड़का जब जूली के बाप से पिटता है तो कहता है अंकल जी ने मुझे मारा कहाँ, वो तो मैं उनके हाथ के सामने आ गया। इसे पटाने के क्रम में लीचड़ई की हद है। यही हद हमारे धर्मनिरपेक्ष पत्रकार भाइयों ने पा लिया है। अफगानिस्तान में तालिबानी विध्वंस का रिकॉर्डिंग करते करते एक पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त पत्रकार दानिश तालिबानी गोली का शिकार हो गया जिस पर एक स्वनाम धन्य चैनल के तटस्थ दिखने की कोशिश करते पत्रकार ने लिखा कि उस गोली को हजार लानत है उस गोली को जिसने दानिश को मारा , दानिश की हत्या की। मतलब वह बंदूक, ट्रिगर, ट्रिगर दबाने वाली उंगलियां उंगलियों वाला हाथ और उस हाथ का मालिक एक तालिबानी ये सब दोषी नहीं है। दोषी तो है सिर्फ वह गोली जिसने दानिश की खोपड़ी में जगह बनाई।
थोड़ी सी कल्पना कीजिए कि अगर वह स्थान अफगानिस्तान के बदले अलीगढ़ होता अहमदाबाद होता या अमरावती होता तो गोली और बंदूक तो बेदाग मुक्त हो जाते परंतु चलाने वाला हाथ एक गौरक्षक का बन जाता और उस गौरक्षक की लानत मलामत होती , बीफ खाने के लिए लप-लपाती जीभ बीफ की सुपाच्यता पर लेख लिखती और उसकी अनुपलब्धता के लिए वर्तमान शासन की नाजीवादी सोच को या फासी वादी सोच को कोसती परंतु यहां तो शिकार और शिकारी दोनों ही एक ही कुनबे के। तुलसीदास ने इसी मौके के लिए कहा था

को बड़ छोट कहत अपराधू।

इसलिए ये भी सुना जा रहा है कि स्वनाम धन्य पत्रकार ने गोलियों पर लानत भेज कर तालिबानों के साथ एक इंटरव्यू का मौका प्राप्त कर लिया है। वैसे यह कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि एक बड़े हिंदुत्ववादी पत्रकार भी हाफिज सईद से इंटरव्यू ले कर आ चुके हैं।

यह बात अभी फेसबुक इंस्टिट्यूट व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ही पोषित है पर हाथ और उंगलियों को और उंगलियों के साथ-साथ हाथ के मालिक उस तालिबानी को निर्दोष साबित करते हुए सिर्फ गोली को अपराधी घोषित करता हुआ यह पत्रकार मुझे जूली फिल्म के उस लीचड़ मनचले की याद दिलाता है। और क्या पता शायद तालिबान जो वास्तव में तोलबा का बहुवचन है और जिसका मतलब छात्र होता है, इस पत्रकार की धर्मनिरपेक्ष रिपोर्टिंग देखकर उन्हें इंटरव्यू भी दे दे क्योंकि प्यार में लीचड़ और व्यवहार में बेशर्म को हमेशा जीत मिलती है।

पुनश्च …
बस मेरे सनातनी भाई बंधुओं को जिन्हें धर्मनिरपेक्षता का वायरस इनफैक्ट कर चुका है, मेरी एक सलाह है कि आपकी धर्मनिरपेक्षता कहीं तालिबान को यह इंटरव्यू आप की देहरी पर देने का मौका ना दे दे और आप विधर्मियों का धर्म अपनाकर एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के बदले धार्मिक राष्ट्र का तमगा अपने भारतवर्ष को ना दे दें।

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