एक ऐसा सम्प्रदाय जहाँ प्रभु श्रीराम सिर्फ मन्दिर में नही विराजते या सिर्फ मूर्ति रूप में ही उनकी पूजा नही होती अपितु वो तो हर एक इंसान के रोम रोम में विराजते हैं और प्रकृति की हर एक वस्तु में वो समाहित माने जाते है।
उस रामभक्त सम्प्रदाय का नाम है – रामनामी सम्प्रदाय, जो छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी जनजाति के रूप में पहचानी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि 1890 के दशक में परशुराम भारद्वाज ने इस सम्प्रदाय का आरंभ किया था और आज तक लगभग 130 वर्षों के पश्चात भी ये सम्प्रदाय अस्तित्व में है।
इस सम्प्रदाय के लोग अपने शरीर के हर एक हिस्से पर राम नाम का टैटू गुदवाकर रखते है, यहाँ तक कि अपनी जीभ और आँखों की पलकों पर भी।
राम नाम को अपने रोम रोम में समाहित करने वाले इस सम्प्रदाय में राम की महिमा इतनी व्यापक है कि जो व्यक्ति माथे पर राम नाम लिखवाता है उसे शिरोमणि, पूरे माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को सर्वांग रामनामी एवं समूचे शरीर पर राम नाम लिखवाने वाले को नखशिख रामनामी कहा जाता है।


अब बताइए इस सम्प्रदाय को कोई कैसे राम से अलग कर सकता है, इस सम्प्रदाय के लोग कहते है कि, “अब हमारे राम, हमारे शरीर के कण-कण में बसे हुए हैं. अब हमें राम से कौन दूर कर सकता है? मेरे राम तो यही हैं, मेरे मित्र, मेरे परिजन.”
सिर्फ शरीर पर ही राम नाम के टैटू नही अपितु इनके वस्त्रों यथा गमछा, ओढ़नी, कुर्ता और मोर मुकुट पर भी राम नाम अंकित होता है, साथ ही प्रत्येक परिवार में आपको रामचरितमानस भी मिल जाएगी।
लेकिन अफ़सोस है कि इतने वर्षों तक इस सम्प्रदाय को गुमनाम रखा गया और इन्हें हिन्दू समाज की मुख्यधारा से भी दूर रखा गया।
प्रभु श्रीराम की महिमा का कोई पार नही है, हर एक व्यक्ति उनसे अपने ही तरीके से जुड़ा हुआ है और महसूस करता है प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद को सदा अपने जीवन में।
जय श्रीराम ??

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