ये कहना कि हमारे गौरांग शासकों ने सनातन धर्म के लिये कुछ नहीं किया, पूर्णतया असत्य है। उन्होंने सनातन धर्म को अकारान्त शब्दों के अन्त में एक अतिरिक्त डंडी जो सिर्फ़ सनातनियों के इतिहास , धर्माचरण, आचार-विचार, पुराण , उपनिषद, वेद, महापुरुषों और ग्रन्थों के नाम के अन्त में वैसे हीं लग जाता है जैसे कि वर्तमान सरकार के किसी भी कार्य की तारीफ़ करने पर आपके नाम के आगे भक्त , मोदी-मीडिया या चिण्टू लग जाता है या विरोध करने पर कांगी , वामी, गोदी मीडिया आदि विशेषण लग जाता है। अगर विश्वास ना हो तो ध्यान दें –
रामायणा, महाभारता, प्राणायामा, योगा, शंकरा, गणेशा, पुराणा, वेदा, उपनिषदा, कनिष्का, सातवाहना, चोला डायनेस्टी, गुप्ता पीरियड, रामा ,शंकरा , कृष्णा, गणेशा, बुद्धा , महावीरा ….कब तक और कितना गिनाऊँ ….. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता ।
और शब्द-संकरता देखनी है तो देखिये गैंगेज़,ब्रह्मपुत्रा, ब्राह्मिन या बिरहमन, क्षत्रिया , वैश्य नहीं वैश्या ( इसी वज़ह से मेरे एक मित्र अपना टाइटिल वैश लगाते हैं वैश्य नहीं क्योंकि वैश्य के वैश्या में तब्दील होने का डर लगता है ), शूद्रा आदि ….।
बोस, रोबिन्द्रो और औरोबिन्दो को छोड़ रहा हूँ कारण हमारे बंगाली ( वैसे वे भी बेंगॉली हैं अंगरेज़ी में ) सुहृदों ने इस गौरकृपा को सर आँखों पे रख लिया है ठाकुर के बदले टैगोर को अपनाकर।
पर कभी आपको कुराना, अकबरा, किंग बाबरा ( किंग इसीलिये जोड़ा है क्योंकि हमारे पास गुलशन बाबरा हैं ), शेखा, सैयदा, मीर के बदले मीरा या पठान के बदले पठाना , ख़ान के बदले ख़ाना , जाफ़र के बदले ज़ाफ़रा, या कासिमा किसी अंग्रेज़ी मिडियम की किताब में मिला है क्या? जवाब नहीं में हीं होगा। आपको जान कर ये आश्चर्य होगा कि दक्षिण अफ़्रिका के एक खिलाड़ी का नाम निक बोये था जबकि उसे अंग्रेज़ी में BOJE लिखा जाता था । अगर असनातनी नामों के लिये ऐसे प्रावधान आंग्ल भाषा में हुए कि उनका उच्चारण विकृत ना हो तो फिर भारत में ऐसा क्या हुआ कि हमारे राम रामा हो गये?
वज़हें कई हो सकती हैं । थोड़ा विचार करें!
इसके साथ एक और शब्द सनातनियों को मिला और वह है प्यारा सा नन्हा सा भोला सा शब्द माइथॉलाजी। भेड़ बकरियाँ चराते चराते एक गरड़िया शान्ति और प्रेम का एकमेव उद्घोषक बन जाता है और अखिल विश्व में शान्ति स्थापना के लिये अनवरत युद्ध का आह्वान कर देता है ( जिसे आजकल जिहाद भी कहते हैं ) पर इसके लिये माइथोलाजी शब्द नहीं है। एक कुँवारी अक्षत यौवना ईश्वर के पुत्र की माता बन जाती है पर ये माइथोलाजी नहीं है ( वाम विचारकों और भारतीय बुद्धिजीवियों की नज़र में विज्ञान सम्मत घटना है ) पर जिस मर्यादा पुरुषोत्तम राम और योगेश्वर कृष्ण की पूर्ण वंशावलियाँ उपलब्ध हैं वे रामा कृष्णा माइथोलाजिकल कैरेक्टर हैं। और ऐसा इसलिये है कि हमारे बुद्धिजीवी वामपन्थ की अभिसारिका बनने में गर्व और भारतीय आर्य कहलाने में ग्लानि महसूस करते हैं । मजे की बात है कि राम नवमी की छुट्टी के बाद कोर्ट इस बात पर जिरह सुनता है कि क्या राम काल्पनिक थे? राम सेतु कल्पना है या नहीं? वही हिस्सा जब एडम्स ब्रिज़ कहलाने लगता है तो फिर वह माइथोलाजिकल नहीं कहलाता है। कोई उन कूढ़मगज़ गौरांगों से पूछे कि क्या ये एडम , एडम और ईव वाले हीं हैं क्या? और अगर हाँ तो एडम ने समुद्रगुप्त से ठेका लिया था क्या ये पुल बनाने का? अगर नहीं तो इडेन गार्डेन से कैप कैमोरिन आने की क्या ज़रूरत थी।
और अगर ये सब नकारते हैं तो ये एडम भाई कौन हैं जनाब?
और ये माइथालोजिकल नहीं हैं ना कुराना में ना बाइबिला में ना अवेस्ता में।
ये शब्द माइथोलाजी और उसी का बच्चा मिथ बस सनातन धर्म को , उसकी विरासत को , उसकी परम्पराओं को आदिम, कपोल कल्पना और गरड़िये का गीत घोषित करने की वैश्विक साज़िश है जिसकी पैरवी करने वाले हमारे बुद्धिजीवी स्यूडो सेक्यूलर हिन्दू भाई बहन हैं। इसी माइथोलाजी से रोटी कमाकर कोई देवदत्त ये बताने की कोशिश नहीं करता है कि माइथोलोजी शब्द सिर्फ़ भारत और सनातन धर्म के प्रतिविम्बों पर हीं क्यों लागू होता है। बैटिकन साल दर साल सन्त बनाये जा रहा है पर दकियानूसी तो हिन्दू हीं होंगे क्योंकि ये माइथोलाजी शब्द हीं इन सनातनी मूर्खों के लिये मैकाले के पूर्वजों ने ढूँढा है। एक पहिये वाली स्लेज़ पर दौड़ दौड़ कर टाफ़ियाँ मौजे में रखकर जाने वाला सेण्टा मिथ नहीं है , अयोनिज ईसा मिथ नहीं है पर रामा मिथ है, कौरवा मिथ है, पाण्डवा मिथ है और कृष्णा मिथ है। मज़े की बात है कि एक स्वघोषिता इतिहासज्ञा ने ये बात कही है कि सम्राट अशोक के चरित्र को आधार बनाकर युधिष्ठिर का चरित्र गढ़ा गया और उसके समर्थन में कई बुद्धिजीवी खड़े हैं और अगर आपने ज्यादा जोर लगाया तो ये मोहतरमा वेदव्यास को राखालदास बनर्जी का शिष्य घोषित कर देंगी और वज़ह होगी गौरांगों के द्वारा दिया गया सनातन धर्म को एक शब्दांजलि माइथोलाजी।
एक और बात रामा की जन्म भूमि विवाद के ५ जजों का नाम है रंजन गोगोई, सुभाष ए बोबाडे, अशोक भूषण, एस ए नज़ीर, डी वाइ चन्द्रचूड न कि रंजना गोगोई, सुभाषा ए बोबाडे, अशोका भूषणा, एस ए नज़ीरा या डी वाइ चन्द्रचूडा फिर सोचिये हमारे राम रामा क्यों?
ऐसा क्यों है?
जवाब मेरे पास भी नहीं है… सोचते रहिये आप भी अगर गर्व है आपको भारतीय होने पर।
अंजन कुमार ठाकुर
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