आज शायद ही देश का कोई भी समाचार माध्यम ऐसा बचा है जहाँ रोज़ या एक दिन में सैकडों बार बलात्कार और महिलाओं के प्रति की जा रही बर्बरता की घटनाओं का ज़िक्र न हो रहा हो | ध्यान देने योग्य बात ये है की अपराध का विश्लेषण करने वाले बताते हैं की बलात्कार जैसे अपराध के मामले में 50 प्रतिशत से अधिक घटनाएं डर , शर्म व कानूनी पेचीदगियों तथा सामाजिक विवशता की वजह से दर्ज़ ही नहीं कराई जातीं | यानि स्थिति इससे कहीं अधिक भयावह और गंभीर है | 


इतनी अधिक सोचनीय कि खुद सांसद तक प्रतिक्रया देते हुए कह देते हैं की बलात्कार के अपराधियों को तो आम लोगों की भीड़ के हवाले कर देना चाहिए ताकि वे खुद ही पीट पीट कर इन्हें मार डालें | स्थिति इस कदर नारकीय हो चुकी है कि , शारीरिक शोषण की शिकार पीड़िताओं की उम्र दो वर्ष की दुधमुंही बच्चियों से लेकर 70-80 वर्षा की वृद्धा तक है |

दुखद बात ये है कि ऐसे अपराधियों में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले निरक्षर नशेड़ी गरीब मजदूर छोटे अपराधी से लेकर बड़े उद्योगपति ,राजनेता , धार्मिक गुरु और अभिनेता तक ,यानि समाज का कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो इस अपराध में लिप्त न हो | 


वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए जघन्य बलात्कार व हत्याकांड के बाद इस अपराध के विरूद्ध जिस तरह से समाज ,युवा और पूरा देश आक्रोशित होकर सड़क पर आंदोलनरत हो गया था , उस समय लगने लगा था कि ये सूरतेहाल अब शायद बदल जाएगा | बलात्कार जैसे संगीन अपराध यदि पूरी तरह न भी रुके तो काम से काम इसके दोषियों को मिलने वाला कठोर दंड ऐसे अपराधियों के मन में दर तो पैदा करेगा ही | मगर सबसे बुरी बात ये है की इस आलेख के लिखे जाने तक और शायद इसके बाद पहले भी स्थिति बद से बदतर होती रही /होती जाएगी | 


राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है की पिछले दो दशकों में पूरे देश में बलात्कार की घटना में 37 प्रतिशत तक  तथा गैर शहरी क्षेत्र में ये अपराध 23 प्रति दर से बढे | राज्यवार आंकड़ों देश की राजधानी दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित प्रदेश के रूप में दर्ज़ है |

बलात्कार के मुकदमों ,उनके निस्तारण व् अपराधियों को सज़ा देने के आंकड़े इतने अधिक निराशाजनक है कि किसी भी समाज को हतोत्साहित करने और आईना दिखाने जैसे हैं बलात्कार के दर्ज मुकदमों में से 2% से भी कम का निस्तारण समय से हो पाता है और अपराधियों को सजा देने का प्रतिशत 2 से भी कम ह


अपराध के मनोविज्ञान का अध्ययन करने वालों ने भी समाज में बढ़ते और नासूर बनती इस प्रवृत्ति को अपने अध्ययन का विषय बना कर कई चौंकाने वाले तथ्यों व कारणों का खुलासा किया है अध्ययन में यह पाया गया है कि बलात्कार के मुजरिमों में से 93% अपराधियों ने जब यह घृणित अपराध किया वे उस समय नशे में थे । 


अपराध शास्त्रियों ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को चेतावनी के रूप में रेखांकित किया है कि शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में नगरों कस्बों में जिस तरह से शराब और नशे की सुलभता और सेवन को बढ़ाया जा रहा है वह बलात्कार हत्या सहित तमाम अपराधों की बेतहाशा वृद्धि का बड़ा कारण बन रहा है । 

दिल्ली की सरकार जब महिला के प्रति शोषण और अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष की बात करती तो भूल जाती है कि ऐसे अपराधों के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारण शराब ,नशा आदि है और सरकार खुद शराब के ठेकों की संख्या में अब तक की सबसे ज्यादा वृध्दि करने वाली सरकार है | हद है

समाज शास्त्रियों ने महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार शोषण बलात्कार के लिए जो दूसरी बड़ी वजह बताई है वह है भारतीय समाज के पारंपरिक स्वरूप में पाश्चात्य उन्मुक्तता तथा व्यवहार का प्रवेश और दोनों के बीच बढ़ता अंतर्द्वंद । 


आज भी भारत की शहरी आबादी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के सामाजिक ताने-बाने व्यवहार मान्यताओं आदि में भारी अंतर देखने को मिल जाता है शहरी समाज अब अधिक खुलापन यौन स्वच्छंदता की राह पर चलते हुए समलैंगिकता लिव इन रिलेशन विवाहेत्तर संबंध आदि की तरफ झुक रहा है जबकि ग्रामीण समाज अभी भी सामाजिक बंदिशों वैवाहिक संस्था व संस्कार प्रचलित परंपराओं का ही पक्ष है। 

इन दोनों के बीच कड़ी बना हुआ सूचना व संवाद संचार का माध्यम टीवी अंतरजाल सिनेमा धारावाहिकों विज्ञापनों में दिखाई जा रही यौन उन्मुक्तता ग्रामीण या पिछड़े इलाकों के अशिक्षित गरीब मजदूरों कामगारों बेरोजगारों आदि को बहुत जल्दी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है नशे का आदी होकर वह तुरंत ही इस रास्ते पर चल पड़ता है। 


 इन अपराधों के लगातार बढ़ते जाने और इस परिपेक्ष में कानून व पुलिस की भूमिका पर विश्लेषण का मानना है कि पुलिस की कार्यप्रणाली विशेषकर अदालतों में अपराधियों को सजा के मुकाम तक नहीं पहुंचा सकने और इससे पहले छेड़छाड़ की शोषण की यहां तक कि बलात्कार की शिकायतों पर पुलिस का अक्सर दिखने वाला गैर जिम्मेदाराना व्यवहार भी अपराधियों की हिम्मत बढ़ाने जैसा है । 

लेकिन इन सबसे अलग बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की घटनाओं /अपराधों का जिस तरह से और जितनी तेजी से राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित होकर मीडियाकरण किया जा रहा है वो इस मुद्दे का सबसे नया और सबसे निकृष्ट पक्ष है | अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि , ऐसे घटनाओं की रिपोर्टिंग कर रही महिला पत्रकार /सम्पादक भी इन सब मुद्दों पर बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार दिख रही हैं |

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