देश के निर्माताओं द्वारा , भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को बहुस्तरीय बनाने और रखने के पीछे जो उद्देश्य था वो ये था कि विभिन्नताओं से भरे ,और अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह से विभाजित किए राज्यों को अपनी पहचान ,अपनी अस्मिता बचाए और बनाए रखने की आज़ादी के साथ उन्हें एक साथ संगठित और समर्पित रखा जा सकेगा।

यही वजह थी कि , भारत के लगभग हर राज्य में ,क्षेत्रीय /स्थानीय दल न सिर्फ जन्मे ,पनपे बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी साख और पहचान बनाए रखने में कामयाब रहे। समय समय पर अपने समर्थन और विरोध से इन दलों ने राष्ट्रीय राजनीति ,सरकार और शासन को अनेकों बार नई दिशा और अवसर भी प्रदान किये।

किन्तु जैसे जैसे समय आगे बढ़ता गया और प्रजातांत्रिक मूल्यों में भयंकर ह्रास हुआ ,ये तमाम राजनीतिक दल , निज स्वार्थ ,मौक़ापरस्ती , पूर्वाग्रह, भ्रष्टाचार और गुटबंदी से बुरी तरह से ग्रस्त होकर न सिर्फ राष्ट्रीय राजनीति ,केन्द्रीय सत्ता , सरकार बल्कि पूरे देश और राष्ट्र के लिए नासूर से बनते चले गए। धीरे धीरे ये स्थिति अब विस्फोटक स्तर पर पहुँच चुकी है। कुछ इस तरह

शिव सेना ,तृणमूल ,आआप ,राजद (जो दोबारा सत्ता पाने की तैयारी में है ) और अभी ताजा ताजा राष्ट्रीय दल से क्षेत्रीय दल में बदलती कांग्रेस , आदि तमाम दलों ने आज अपने अपने राज्यों में न सिर्फ अपनी मनमानी शुरू कर दी है बल्कि सीधे शीधे हर केन्द्रीय कानून को , राष्ट्रीय व्यवस्था को ही न मानने की एक बहुत गलत प्रवृत्ति को अपना लिया है।

केंद्र द्वारा पिछले दिनों पारित सभी कानूनों की मुखालफत करने की बात हो या फिर , अपने भ्रष्टाचार को छुपाने दबाने की नीयत से केन्द्रीय जांच एजेंसियों को अपने राज्यों में जांच करने से प्रतिबंधित करने की बात , यहाँ तक कि अनेकों बार खुद न्यायपालिका तक के आदेश को धता बता कर खुद को इनसे सबसे भी ऊपर समझने लगे हैं।

पश्चिम बंगाल ,केरल ,दिल्ली अब महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तो केंद्र की भाजपा सरकार से द्वेष और पूर्वाग्रह रखने के कारण इन राज्यों की स्थानीय सरकारें अलगाववादियों की तरह व्यवहार कर रही हैं। कानून व्यवस्था को ताक पर रख कर विरोधी और विपक्षी रुख रखने वालो तमाम लोगों को प्रताड़ित परेशान और यहाँ तक कि उन्हें क़त्ल तक करने में गुरेज़ नहीं रख रहे हैं।

आज इन तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार से सिर्फ और सिर्फ , किसी भी आपदा और अशांति के समय आर्थिक अनुदान तथा केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनानी की सहायता लेने तक का ही सरोकार रह गया है और ये संघीय लोकतंत्र के लिए ,भारत की एकता संप्रभुता के लिए एक बेहद गंभीर ख़तरा बनता जा रहा है।

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