वरिष्ठ टीवी पत्रकार रोहित सरदाना के निधन की खबर से पूरा देश शोकग्रस्त है मगर कुछ वामपंथी पत्रकार, शांतिप्रिय समुदाय के लोग रोहित सरदाना के निधन पर अपनी बेशर्मी जाहिर करते हुए खुशी व्यक्त कर रहे हैं। यह वह लोग हैं जो शांतिप्रिय समुदाय के मदरसों से मिली नेक मजहबी तालीम का ढिंढोरा सरेआम पीटते हैं। यह वह वामपंथी पत्रकार हैं जो शेखर गुप्ता के The Print में लिखते हैं, जाहिर है देश के खिलाफ ही लिखते हैं।


इन बेशर्मो की बेशर्मी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोहित सरदाना का निधन हो गया है और यह लोग इसे ऊपर वाले के कहर के तौर पर दिखा रहे हैं। यह उस जमात के लोग हैं जो कोरोना को अल्लाह का कहर बता रहे थे और कह रहे थे कि कोरोना को काफिरों के लिए भेजा गया है। इनके उन्मादी मजहबी मंसूबे इस कदर दोजख की दुर्गंध से भरे हैं कि किताबी क़यामत के वक्त इनको जवाब देते नहीं बनेगा।

जाहिर है इन लोगों से पूछा जाना चाहिए कि जिस शांतिप्रिय मजहब इस्लाम की शान में यह लोग रात दिन कसीदे गढ़ते हैं उसकी तालीम इन्हें ये सिखाती है? इनकी नफरत दर्शाती है कि ये लोग अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं को किस तरह मजहबी चश्मे से देखते हैं, ये छोटे भाई का पजामा पहनने वाले चंद मूर्ख अपनी अक्ल पर हैवानियत का पर्दा डालकर अपने ही खोदी हुई मूर्खता की कब्र में दफन हैं।

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