अपनी स्थापना(वर्ष 1925) के 100 वर्ष पूरे करने के निकट विश्व की सबसे बडी राष्ट्र सेवी संस्था -राष्टीय स्वयं सेवक संघ इन दिनों पुन: चर्चा के केंद्र में है । आखिर हो भी क्यों न संघे शक्ति यानि संगठन में ही शक्ति है , की मूल भावना व राष्ट्र भक्ति सर्वोपरि के उच्च लक्ष्य को लेकर आगे बढने के क्रम में इसके राजनीतिक धडे भारतीय जनता पार्टी ने वर्षों बाद भारतीय लोकतंत्र में एकमतता के चमत्कार को प्रमाणित कर दिया । इतना ही नहीं हर व्यक्ति नेतृत्वकर्ता है की सहविकास प्रवृत्ति ने पूरे विश्व को दिखा दिया कि संगठन का एक अनुशासित स्वयं सेवक अपनी सोच , दूरदृष्टि, प्रतिबद्धता व देश नेष्ठा की बदौलत नेतृत्वकर्ता की संचालक शक्ति का वहन करने योग्य बन जाता है ॥

राष्टीय स्वयं सेवक संघ अपने परम उद्देश्य संगठित हिंदू समाज का समग्र विकास करते हुए आर्यावर्त के प्राचीन गौरव तक पहुंचाने के लिए चुपचाप कार्य करने की पद्धति व प्रणाली अपनाता रहा है -कर्म और श्रम के सामंजस्य से सर्वश्रेष्ठ व शक्तिशाली समाज का निर्माण । किंतु समय समय पर बहुत सी घटनाओं -दुर्घटनाओं को आधार बना कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उद्देश्य को निशाना बनाया जाता रहा है आम लोगों तक संघ का उद्देश्य , कार्यप्रणाली , कार्य , प्रभाव आदि की चर्चा करके जानकारी साझा करना समीचीन प्रतीत होता है ॥

वर्ष 1925 में पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम  हेडगेवार ने अपने चिकित्सकीय पेशे को गौण करते हुए सिर्फ़ पांच बालकों को राष्ट्रीयता की पहचान खेल खेल मेंं करवा दी । उस समय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत अनेकों दल , समूह , विचार , व्यक्तियों ,के उद्देश्य व कार्यप्रणाली को भली-भांति समझने के बाद जब डाक्टर हेडगेवार ने महसूस किया कि ये तमाम आंदोलन व प्रतिकार ब्रिटिश राज़ , उसकी नीतियों के विरुद्ध चल रहा था , वो भी भिन्न-भिन्न विचारों व कार्यप्रणालियों द्वारा ।

डॉ. हेडगेवार ने जब पाया कि हिन्दुस्तान जो कभी अपने वैभव, अपनी संस्कृति, संपन्नता के कारण विश्वगुरू हुआ करता था सिर्फ़ आपसी विभाजन के कारण कमज़ोर हो गया और फ़लत: लगातार शासित होता रहा वो भी बहुत कमज़ोर आक्रान्ताओं द्वारा भी ॥

समाज को संगठित करके एक संघ के रूप में विकास करने के लक्ष्य से ही आर.एस.एस की स्थापना की गई । गौरवशाली प्राचीन भारत की संस्कृति , परंपरा, देवभाषा संस्कृत , मानसिक व शारीरिक स्वस्थता, परस्पर सहयोग व सामंजस्य की भावना , नेतृत्व क्षमता का विकास, आत्मरक्षा हेतु शस्त्र संधान आदि को निरंतर बांटने सिखाने व निभाते चलने के लिए “शाखा पद्धति ” — एक घंटे तक संचालित की जाने वाली शारीरिक व मानसिक क्रियाएं व क्रियाकलाप आदि ।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उद्देश्य को समझने से पहले इसकी हिन्दू अवधारणा को समझना होगा जिसके लिए अफ़सोसजनक तथ्य यह है कि इसे बिना सोचे विचारे सीधे सीधे हिन्दू धर्म से जोड दिया जाता है । जबकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दर्शन को लेशमात्र भी समझने वाला यह सत्य जान व समझ लेता है कि संघ के दर्शन में हिंदू की व्याख्या राष्ट्रीयता के संदर्भ में की जाती है न कि संकीर्ण सोच रखते हुए धर्म को केंद्र बिंदु माना समझा गया है ॥

आर एस एस के दर्शन उद्देश्य व क्रियाकलापों पर चर्चा एक वृहद विषय है किंतु संक्षिप्त स्वरूप समझने के लिए शाखा के प्रतिदिन क्रियाओं को जाना जा सकता है । बालक , तरूण , प्रौढ व महिला आदि को वर्गीकृत कर एक एक घंटे की शखा का संचालन किया जाता है जिनमें विभिन्न क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है । 60 मिनट के कालांश में 45 मिनट शारीरिक  क्रियाकलापों , जिसके अंतर्गत संस्कृत भाषा में संवाद व आदेशों के अनुशासित अनुपालन , विभिन्न प्रका के योग , व्यायाम ,क्रीडाएं , दंड विद्या, वंशी, वाद्य आदि का अभ्यास किया व कराया जाता है ।

इसके अलावा बचे हुए शेष 15 मिनट का कालांश , मानसिक मंत्रणा, क्रियाकलाप जिसे सामान्यतया , बौद्धिक सत्र , कहा जाता है , इसमें राष्ट्रचिंतन के विषयों पर चर्चा , प्राचीन भारत के गौरवपूर्ण इतिहास से सबका परिचय , हिंदुस्तान के पराक्रम , वैभव , चातुर्य, पांडित्य की ख्याति पताका को विश्व भर में स्थापित करने वाले युग पुरूषों का स्मरण, वैदिक मंत्रों का पाठ व उच्चारण आदि और ये सारा सत्र कुछ इस प्रकार संचालित किया जाता है जिससे सबमें नेतृत्वकर्ता के गुणों का संचार हो सके ॥

RSS workers take part in Vijay Dashmi Utsav in Nagpur, Maharashtra, Thursday, Oct 18, 2018. Express Photo by- Monica Chatutvedi

इसके अलावा वर्ष भर में भारतीय इतिहास , संस्कृति व संस्कारों के प्रतीक कई पर्व त्यौहारों को गरिमामय किंतु बेहद शालीन तरीके से पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । इन तमाम क्रियाओं व मनोस्थिति के शिल्प से विकसित एक व्यक्तित्व ऐसा निकल कर सामने आता है जिसका सर्वस्व राष्ट्र को समर्पित होता है ।

युद्धकाल से लेकर शांतिकाल में , आपदा-विपदा, घटना-दुर्घटना के समय संघ के अनुशासित स्वयं सेवक जिस समवेत भावना से सभी चुनौतियों में ड्ट खडे होते हैं वह वर्षों के निरंतर अभ्यास व राष्ट्रसेवा के प्रति अटूट निष्ठा के प्रति सतत कर्मरत रहने का ही परिणाम है । कदम कदम पर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने जा रहे हमारे युवाओं का परिचय सिविल अनुशासन व नागरिक संस्कारों की इस प्रथम पाठशाला से अवश्य करवाया जाना चाहिए

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