जैसा कि मैंने अपने पिछले ब्लॉग में लिखा था, स्वतंत्रता के पश्चात भारत की शिक्षा व्यवस्था में वामपंथी घुस चुके थे, उन्होंने हमारे इतिहास को विकृत किया ताकि हम स्वयं को हीन समझने लगें, इसी क्रम में उन्होंने इतिहास की पुस्तकों में एक अध्याय जोड़ा, “सती प्रथा” एक ऐसी भयानक कुरीति जिसके विषय में सोचते ही हमारे समाज के प्रति, हमारे मन मे घृणा भर उठती है। एक रीति जिसमें एक विधवा पत्नी को उसके पति के शव के साथ जिंदा जला दिया जाता था वो भी धर्म के नाम पर , सोचिए, इस से क्रूर और क्या हो सकता है? हिन्दू धर्म एकलौता ऐसा धर्म है जहां स्त्री को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, हम स्त्री का सम्मान इस हद तक करते हैं कि भारत के इतिहास के दो महानतम घटनाओं रामायण और महाभारत का केंद्र स्त्री रही है। हमारी इसी ताकत को वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे मन मे घृणा भरने के लिए इस्तेमाल किया।

इतिहास की पुस्तक उठाते ही हम इस कुरीति के विषय मे पढ़ते हैं, पर क्या सच में माता सती का नाम इसके साथ जोड़ना ठीक है? पहले जानिए माता सती कौन थीं।

माता सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी और दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, उन्होंने भगवान शिव को पति चुना, एक यज्ञ आयोजन में महाराज दक्ष के आपने पर भगवान शिव के खड़े न होने से महाराज दक्ष प्रसन्न नही थे, उन्होंने शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को निमंत्रण न देकर उन्होंने अपने दम्भ और क्रोध को जाहिर भी किया, पर पुत्री आखिर पुत्री होती है, माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता के यहां जाने का हठ किया परन्तु भगवान शिव नें उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि, बिना निमंत्रण जाना उचित नहीं, वहां अपमान के अतिरिक्त कुछ नही मिलेगा, फिर भी माता सती उस यज्ञ को देखने चली गईं, वहां उपस्थित सभी देवों को देख माता सती ने अपने पिता से कारण पूछा कि उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित क्यों नही किया, जिसपर महाराज दक्ष ने भरी सभा मे भगवान शिव के विषय मे अपमानजनक बातें कहीं, माता सती को इसपर भयंकर क्रोध आया उन्हें पश्चाताप हुआ कि उनके कारण उनके पति का ये अपमान हुआ और उन्होंने यज्ञवेदी में स्वयं को भस्म कर लिया।

इसके बाद कि कथा एक अलग विषय है, अब वापस विषय पर आते हुए हमें सोचना चाहिए कि जिस माता सती के नाम पर ये भयानक प्रथा थी उन्होंने अपने पति के जीवित रहते आत्मदाह किया, इतना ही नही माता सती अकेली नहीं थीं, सती प्रथा के वास्तविक स्वरूप के अनुसार माता सीता, रावण की पत्नी मंदोदरी, मेघनाद की पत्नी सुलक्षणा, माता अनसूया, माता अहिल्या इत्यादि की गिनती भी सती में होती है, इनमें से किसने अपने पति के शव के साथ आत्मदाह किया? जवाब होगा किसी ने नहीं, तो फिर माता सती का नाम इस कुरीति से कैसे जुड़ गया?

हुआ ना अचंभा? अब आइये जानते हैं कि वास्तव में ये कुरीति क्या थी।

भारत पर जब मुग़लों ने आक्रमण किया तो जैसा कि हम सभी जानते हैं वो लूट की मंशा से आते थे और केवल धन लूटना ही नही, हिन्दू स्त्रियों को बाज़ारों में बेचना उनका बलात्कार करना भी उनके कुकृत्यों में शामिल था, इस भयानक अत्याचार से बचने के लिए भारत की वीरांगनाओं ने समय समय पर तलवार उठाई और जो तलवार नही उठा पाईं उन्होंने जौहर चुना, “जौहर” अपने पति के मर जाने पर मुग़लों से अपने शील की रक्षा हेतु किया जाने वाला आत्मदाह, इसका सबसे बड़ा उदाहरण चितौड़ में किया महारानी पद्मावती का वो जौहर था जिसे फ़िल्म में देख कर भी हमारे मन में मुस्लिम आक्रांताओ के लिए अपार घृणा उत्पन्न हो जाती है।

इतिहास की किताबों में मुग़लों के कुकृत्यों को छुपाने, अंग्रेजों को समाजसुधारक बनाने के क्रम में, और हिन्दू समाज को अपमानित और कुंठा से भरने के लिए इस जौहर को सती प्रथा का नाम दिया गया। आप कल्पना कीजिये किस हद तक समाज को खोखला करने का प्रयास हुआ है इस देश में, और हम कभी तर्कशील नही रहे, हमने कभी इतिहास पर तर्क नही किया उल्टा इतिहास से बचते रहे क्योंकि इतिहास को ऐसा लिखा गया जिसे पढ़कर हमें शर्मिंदगी हो, पर अब समय आ चुका है कि इतिहास को पुनः लिखा जाए, ऐसा इतिहास जो तर्कसम्मत हो, जो सत्य हो और जिसे पढ़कर हमें और हमारी पीढ़ियों को गर्व हो।

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