पूरी दुनिया के मुज़लिम किस तरह से गजवा ए हिन्द का , फतवा और नारा बुलंद कर के सारी कायनात को बुर्के में कैद करने पर आमादा हैं ये किसी से भी छिपा नहीं है। मोदी सरकार के आने और उसके बाद दोबारा उससे भी ज्यादा प्रचंडतम बहुमत से आने से ये भी सब समझ ही गए थे कि इस देश का बहुसंख्यक समाज किन्हें देश चलाने योग्य समझता है और चाहता है कि वे ही चलाएं और ठीक वैसा ही चलाएं जैसा जनता चाह रही है। और जनता यही नहीं चाह रही जो इन दिनों उसके आसपास हो रहा है।
सोच कर देखिये कि , भारत के टेलीविजन डिबेट , जिनका स्तर अब गली में लड़ते मवाली बेवड़ों की लड़ाई झगडे से भी बदतर हो गया है वैसी ही किसी डिबेट में कही सुनी गई किसी बात और जिसने ये बात कही या कहा जाए कि मुंह से निकली , उसका समर्थन करने , उससे समहत होने जैसा कुछ लिखने कहने भर का अपराध इतना भयानक है कि ,किसी जानवर की तरह उसकी गर्दन रेत दी जाए। और कोई एक दो गर्दन नहीं रेती गई है जी और अभी तो ये सिलसिला चल ही रहा है। एक साधारण टेलर से लेकर बड़े मंत्री तक का सर कलम करने का जिहाद किया जा रहा है।
सड़क , मॉल , रेल , सिनेमाघर आदि में नमाज़ पढ़ने और जबरिया पढ़ने , न पढ़ने देने पर , विरोध किए जाने पर दंगे फसाद के अलावा देश भर में अलग अलग स्थानों पर कहीं किसी धार्मिक जुलूस /यात्रा पर तो कहीं पुलिस सेना फ़ौज के ऊपर रोड़े पत्थर फेंकना , सार्वजनिक समपत्ति को नुक्सान पहुँचाना अब एक प्रवृत्ति बनती जा रही है और कभी जम्मू कश्मीर के पत्थरबाजों से शुरू होकर ये अब पूरे देश भर में फ़ैल गई है। पिछले दिनों तो हिन्दुओं के पर्व त्यौहारों को जानबूझ कर निशाना बनाया गया जिसे सभी ने देखा।
सरकार , शासन , प्रशासन , पुलिस , फ़ौज , क़ानून और अदालत सभी को ताक पर रख कर ,सभी का विरोध और सारे नियम कानूनों को अपने शरीया कानूनों के विरूद्ध बता कर उन्हें मानने से इंकार कर देना। तीन तलाक पर क़ानून बने तो उसका विरोध , नागरिकता संशोधन पर कोई क़ानून बने तो उसका विरोध और जनसंख्या नियंत्रण पर कोई क़ानून प्रस्तावित हो तो उसका विरोध , कोई मदरसों में पढ़ाई जा रही कट्टरता को हटा कर आधुनिक शिक्षा की बात करे तो उसका विरोध , महिलाओं के अधिकारों का विरोध , सब कुछ जबरन इस्लाम के विरुद्ध घोषित और उसके बाद बस वही जेहाद जेहाद जेहाद।
पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में तो शरिया शासन जैसे ही हालात बरसों से हैं लेकिन अब बिहार और झारखंड के कुछ मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस राज्यों के बहुत से मुस्लिम बाहुल्य जिलों में पूरी दुनिया में होने वाली रविवार का राजकीय अवकाश नहीं बल्कि शुक्रवार को जुम्मे का अवकाश स्कूल और दफ्तरों में थोपा जा चुका है। इसके आगे सब कुछ धीरे धीरे गजवा ए हिन्द के फार्मूले के अनुसार ही बढ़ता है। स्कूलों कॉलेजों में हिजाब पहनने की जिद भी अचानक ही एक मुहीम की तरह फैलाई जाने लगी है।
ये तय है कि आने वाला समय निर्णायक होगा जो डरेगा वो मरेगा , जो पीछे हटेगा वो कटेगा। और अपने ही घर में अपनों के बीच भी रहते हुए ही और दूसरी बार प्रचंड बहुमत से अपनी हितैषी सरकार और प्रतिनिधि चुनने के बावजूद , पुलिस फ़ौज क़ानून की सारी ताकत साथ होने के बावजूद यदि आज मुट्ठी भर डरे हुए लोगों ने अपने चाक़ू उस्तरों से देश समाज दुनिया को डराने की हिमाकत करने की सोच रहे हैं तो फिर उन्हें आज और अभी बहुत ही माकूल जवाब दिया जाना जरूरी है। और ये भी यकीन मानिये इससे जरूरी आज कुछ है भी नहीं।
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