विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शस्त्र पूजा , सार्वजनिक प्रदर्शन तथा पथ संचलन का कार्यक्रम मनाता है | प्रभु श्री राम जी द्वारा रावण पर युद्ध विजय के पश्चात मनाया जाने वाला विजयदशमी का ये पर्व इसलिए भी विशेष है संघ के दृष्टिकोण से क्यूंकि इसी दिन आदरणीय डॉ हेडगेवार ने सिर्फ पांच बच्चों को लेकर संघ की स्थापना कर दी थी ,वो भी अब से लगभग 100 वर्षों पूर्व यानि 1925 में |

तब से लेकर अब तक और 5 बच्चों से शुरू होकर आज देश भर में 50 ,000 से अधिक नियमित शाखाओं के लगने तक , संघ के विचार , आदर्श , उद्देश्य बार बार न सिर्फ कसौटी पर कसे जाते रहे हैं बल्कि हर बार खुद को प्रमाणित भी करते रहे हैं | यही संघ जब अपनी शाखाओं में दंड (लाठी) छुरिका (चाक़ू) तलवार , गदा , धनुष आदि घरेलु शस्त्रों ( जिनके लिए किसी भी सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं होती ) की शिक्षा और इनके कुशल संचालन का प्रशिक्षण देता है तो सबके पेट में मरोड़ उठने लगता है |

ज़रा कल्पना करके देखिये , समय 1925 का , जब ब्रिटिश हुकूमत अपने जुल्म और अत्याचार करने के चरम पर थे , हिन्दू समाज जिसे बार बार सहिष्णु , धैर्यवान , सहनशील कह कह कर बता सुना समझा कर असल में कायर और शिथिल बना दिया गया था ,वो सच में “अहिंसा के बल पर आजादी मिलेगी “कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो ” जैसी बातें मन में बिठाने लगा था |

ऐसे में डॉ साहब ने गाँव के कुछ बच्चों युवकों को संघ में जोड़ कर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ करने का प्रयास करने लगें ताकि कल को , राष्ट्र को मजबूत नागरिक मिल सकें | शारीरिक दक्षता के लिए योग ,व्यायाम , कुश्ती ,खेल आदि के साथ साथ कुछ घरेलु शस्त्र जिनमे लाठी छुरी आदि प्रमुख थे का भी प्रशिक्षण आवश्यक हो गया | अंग्रेज बात बात पर मार पीट , लूट ,हिंसा ,ह्त्या करने लगते थे ऐसे में स्वयं एवं अपने परिवार के बुजुर्ग बच्चों और माताओं की रक्षार्थ ये बहुत ही जरूरी था |

पौराणिक रूप से भी यदि ध्यान करें तो हम पाएंगे कि सनातन के जितने भी देवी देवता गण यहां तक कि गन्धर्व और किन्नर तक अस्त्र शस्त्र से लैस रहे हैं और उन्हें ऐसे ही प्रतिबिंबित/चित्रित किया जाता रहा है | शंकर भगवान का त्रिशूल , प्रभु श्री राम का धनुष , महावीर हनुमान की गदा या माँ भवानी की तलवार और माँ काली का खड्ग | कोई भी हिन्दू देवी और देवता शास्त्र के साथ शस्त्र सम्मत न हो ऐसा नहीं जान पड़ता | जब भगवान् तक स्वयं समय पड़ने पर शस्त्र उठाने को विवश हो जाते रहे हैं /किए जाते रहे हैं तो फिर दुनिया को इंसान है |

अब थोड़ा सा प्रायोगिक होकर देखते सोचते हैं | अभी तीन चार वर्षों पहले दिल्ली की एक कालोनी में एक डॉ अमित नारंग अपने परिवार के साथ रह रहे थे | एक शाम को उनकी गली से गुजरते हुए कुछ हुड़दंगी और शान्ति प्रिय विशेष समुदाय के युवकों ने डॉ साहब के घर के सामने से निकलते हुए किसी विवाद से बढे झगडे में डॉ नारंग को सिर्फ बैठ और विकेट से ही पीट पीट कर मार दिया | उस वक्त उनकी पत्नी और आसपास वालों का सबसे बड़ा अफ़सोस यही था कि , काश हमारे घर में हमारे पास भी कोई लाठी , डंडा , आदि होता तो कम से कम हम उन्हें मरने से तो बचा ही सकते थे |

अच्छा अब अपने अपने दिल पर हाथ रख कर बताइये कि , हमारे आपके घरों में से कितने घरों में इस समय , तीर , तलवार , गदा ,धनुष तो छोड़िये एक लाठी डंडा और चाक़ू (सब्जी तरकारी काटने वाली के अलावा ) तलाशने पर भी मिलेगा ?

आपके हमारे बच्चों में से कितनों की हिम्मत है अपने हाथों में मुर्गे ,बकरे ,ऊँट आदि का गला रेट कर खून की पिचकारी से अपने हाथ रंग लेना ?? वो छोड़िये कितने बच्चे हैं हमारे आपके जो स्कूल कॉलेज बस मेट्रो में झगड़ा होने पर पिट कर नहीं पीट कर घर वापस आने की हिम्मत रखते हैं ?

हमारे आपके घरों से कितनी महिलाएं , बच्चे , सड़क पर उतर कर पुलिस फ़ौज पर ढेले पत्थर बरसा सकते हैं ?? कितनी महिलाएं हैं हमारे आपके घरों की जो पैसे लेकर सड़कों चौराहों पर महीनों भर बैठ कर सरकार प्रशासन पुलिस के नाक में दम करने की सोच रखती हैं ??

इन सवालों के उत्तर ,जो आपके अंदर से आपकी आत्मा दे रही है ,वही बता समझा देंगे कि कभी डॉ साहब द्वारा सनातनियों को अपनी ऊर्जा ,शक्ति , सामर्थ्य की याद फिर से दिलाने के लिए एक मजबूत हिन्दुस्तान,और एक सशक्त हिन्दुस्तानी तैयार करने के लिए जरूरी है कि कम से क़म आत्म रक्षार्थ ही सही मगर शास्त्र और शस्त्र दोनों से ही सबको परिपूर्ण होना चाहिए |

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