भारतीय इतिहास की जडे देखी जाए तो सनातन संस्कृति के गौरव से भरी मिलेगी। सनातन संस्कृति विश्व की सबसे पुराणी सभ्यता है, जिसका गौरव देवी देवतावो के प्राचीन अलौकिक मंदिर है। हिंदु मंदिरो का इतिहास 10 हजार साल से भी पुराना राहा। रामायण, महाभारत, स्कंदपुरान, वेदो, काव्यो में मंदिरो का उल्लेख देखने को मिलता है। भारत का वैभवशाली इतिहास ओर सनातन धर्म की महानता का उदाहरण भारत में स्थित हजारो पुरातन मंदिरे है। भारत को सनातन संस्कृति ने मंदिरो के रूपो में अनमोल विरासत देकर गौरवीत किया। लेकिन भारतवर्ष में हुए विदेशी आक्रांतावो ने भारतीय संस्कृती की अनमोल विरासत को कुरेदना चाहा। भारत सालो साल विदेशी आक्रांतावो के गुलामी के आधीन राहा। इस बिच हमारी सनातन संस्कृति को अपने अस्तित्व के लिए बहुत संघर्ष करना पडा। सातवी सदी से ही भारत पर मुस्लिम आक्रांतावो के हमले बढते गये। इनके निशाने पर ज्यादा तर हिंदु मंदिरे रहते थे। मुस्लिम शासको द्वारा मंदिरो को निशाने बनाने के कही कारण रहे, पहिला तो ये, मुस्लिम हमलावर भारत को अपने अधिन कर हिंदु सभ्यता का अंत करना चाहते थे। भारत में हिंदुवो के आस्था का स्थान मंदिर थे, इसीलिए आस्था को नष्ट कर भारत पर अपना वर्चस्व स्थापित करने हेतु उन्ह इस्लामिक आक्रमणकारियो ने हमारे मंदिरो को तोडा। दूसरा कारण ये कि, हमारे मंदिरो की वैभवता आँखो को चकाचौद लगा देने वाली थी। मंदिरो की धनसंपत्ती पर मोहित हो उठे मुस्लिम आक्रांतावो ने कही बार हमारे मंदिरो पर हमले किए, उन्हे तोडा, मंदिरो की सोना चांदी को लुटकर अपने साथ ले गये, कही बार किमंती मुर्तियो को चुराया गया तो कही बार मुर्तियो को खंडित किया गया। लेकिन इन्ह मूस्लिम आक्रमणकारियों के तमाम हमलो के बाद भी हमारे मंदिर अपने वैभवशाली इतिहास के साथ सनातन धर्म का गौरव बढाए हुए है। मुस्लिम शासन काल में कही मंदिरो को ध्वस्त किया तो कही मंदिरो को बार बार तोडकर खंडहर में बदल दिया, कही मंदिरो की जगह मस्जिद बना दि गयी, तो कही मंदिर ऐसे भी है जो अपने कठोर संघर्ष से अपने अस्तित्व को टिकाए रखने में सफल रहे, जो आज भारत की पेहचान बन करोडो श्रद्धांलुवो के आस्था का स्थान बने हुए है। भारत में ऐसे कही प्राचिन, वैभवशाली ओर वास्तुकला के अद्भुत नमुने के साथ कही मंदिरे है। हम उन्ही मंदिरो में ये गुजरात के सोमनाथ मंदिर की संघर्षमय गाथा को उल्लेखित करेंगे।

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर भारत के प्राचिन मंदिरो में से एक है, जो करोडो भक्तो के आस्था का स्थान है। सोमनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित उनके 12 ज्योतिर्लिगों में से सर्वप्रथम ज्योतिर्लिग का स्थान है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिगों के वो स्थान है, जहा भगवान शिवजी ने साक्षात प्रकट होकर दर्शन दिए थे। सोमनाथ मंदिर की वैभवता एवम वास्तुकला मन को मंत्रमुग्ध करने वाली है।

सोमनाथ मंदिर की वैभवता:-

शिवजी के प्रथम ज्योतिर्लिगों में पुज्य सोमनाथ मंदिर अपने गौरवशाली इतिहास और शिल्पकला के लिए प्रसिध्द है। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कही बार हमले कर मंदिर तोडा तो उसिके साथ इतिहास में मंदिर का कही बार हिंदु राजावों द्वारा पुनर्निर्माण किया गया। वर्तमान में स्थित सोमनाथ मंदिर अपने मुल जगह पर स्वतंत्र भारत के पहिले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेलजी के नेतृत्व में बनाया गया। पटेल के मृत्यु के बाद इसका निर्माण कार्य एम. मुंशी जी के नेतृत्व में पुरा हुवा। सोमनाथ मंदिर के निर्माण कार्य में सरदार पटेल जी का बडा योगदान राहा। जिसे 1 दिसंबर 1995 में भारत के राष्ट्रपति शंकरद्याल शर्मा ने राष्ट्र को समर्पित किया। मंदिर का निर्माण गुजराती चालुक्य वास्तुकला शैली में किया गया जो भारतीय नागर शैली का एक प्रकार है। नागर शैली में पद्मश्री प्राप्त प्रमाशंकर सोमपुरा ने सोमनाथ मंदिर का माॅडल तयार किया था। मंदिर में हर दिन लाखों भक्तो की भिड देखने को मिलती है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक, तथा श्रावण के महिनो में मंदिर का प्रांगण भक्तो से भरा रहता है। इसके अलावा यहा हिरण, कपिला, सरस्वती इन्ह तिन नदियों का महासंघम होता है जिसे ‘त्रिवेणी’ नाम से जाना जाता है। इस जगह को ओर भी प्राचिनता ओर समृध्दी मिलती है क्युकी यही से कुछी दुरी पर भालुका में भगवान कृष्ण ने अपना देह त्याग वैकुंठ को प्रस्थान किया था। मंदिर की व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। मंदिर 10 किमी के विशाल क्षेत्रफल में विस्तारित है, जिसे तिन हिस्सो में बाटा गया है जिसमे मंदिर का गर्भगृह, नृत्यमंडप ओर सभामंडप शामिल है। मंदिर के शिखर की उचाई करिबन 150 फिट है। इस वैभवशाली ओर समृध्द मंदिर के शिखर पर स्थित कलश का वजन करिबन 10 टन है, तो मंदिर की ध्वजा 27 फिट ऊँची है। मंदिर के अंदर भगवान शिवजी के सुंदर शिवलिंग के साथ देवी पार्वती, श्री गणेश, नंदी, माँ सरस्वती की मुर्ती स्थापित है। इतिहासकारो के अनुसार इस सुंदर शिवलिंग को गुजरात के राजा कुमारपाल सोलंकी सौराष्ट्र से लाए थे। मंदिर प्रांगण में कही देवीदेवतावो के मंदिर उपस्थित है। वेरावल का प्रदेश मंदिरो से समृध्द राहा। एक शिलालेख में विवरण है कि महमुद गजनवी के हमले के बाद 21 मंदिरो को निर्माण किया गया, इसके बाद भी बहुत से मंदिरो को बनाया गया लेकिन कही बार हूए विदेशी आक्रमणकारियों के हमले में मंदिरो को नष्ट किया गया। वर्तमान में प्रांगण में हणुमान, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडियार, महाराणी अहिल्याबाई द्वारा निर्मीत सोमनाथ मंदिर, अहिलेश्वर, माँ अन्नपुर्णा, गणपती, काशी विश्वनाथ मंदिर, नागरो के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर, स्थित है इसके अलावा अधोरेश्वर मंदिर, भैरवेश्वर मंदिर, देवी महाकाली का मंदिर, दूखहरण जी की जल समाधी समेत कुल 42 मंदिर नगर के लगभग 10 किमी के क्षेत्रफल में स्थापित है। मंदिर के प्रांगण में हर दिन शाम साडे सात बजे से साडे आठ बजे तक कुल एक घंटे का साउंड अँन्ड लाइट शो को दिखाया जाता है जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास को बारकाई से चिन्हित कर भक्तो के सामने पेश किया जाता है। मंदिर के दक्षिण किनारे पर एक स्तंभ है जिसके उपर एक तिर रखकर दर्शाया गया है कि, सोमनाथ मंदिर ओर दक्षिण ध्रुव के बिच पृथ्वी का कोई भुभाग नही है।

मंदिर के अस्तित्व का इतिहास :-

भारत में स्थित मंदिरो की प्राचिनता 10 हजार साल पुराणी है। सोमनाथ मंदिर का उल्लेख ऋगवेद, स्कंदपुराण, महाभारत में दिखने को मिलता है। इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था, जिन्हे सोम नाम से भी जाना जाता है। सोमनाथ मंदिर के अस्तित्व के साथ एक प्राचिन घटना जुडी है। चंद्रदेव यानी सोमदेव ने दक्षप्रजापती की 27 पुत्रियो से विवाह किया था, जिसमे रोहिणी नामक पत्नी ज्यादा सुंदर होने के कारण चंद्रदेव उन्हें ज्यादा प्रेम करते थे। अपनी पुत्रियो के साथ मतभेद होते देख दक्षप्रजापती क्रोधित हो उठे उन्होंने सर्वप्रथम चंद्रदेव को समझाने की कोशिश की लेकिन जब उनकी बातो का चंद्रदेव पर कोई प्रभाव न पडा तो, प्रजापति ने चंद्रदेव को क्षयग्रस्त होने जाने का अभिशाप दिया ओर काहा कि, उनकी चमक प्रति दिन कम होती जायेंगी। अभिशाप के अनुसार चंद्रदेव की रोशनी कम होती देख चंद्रमा दुखी रहने लगे फिर उन्होने इसके निवारण के लिए भगवान शिव की कठोर तमस्या करनी शुरू कर दी। चंद्रमा की कठोर आराधना देख शिव उन्हे प्रसन्ना हुये। फल स्वरूप भगवान शंकर ने ना सिर्फ चंद्रदेव को अमृत्वका वरदान दिया अपितु दक्षप्रजापती द्वारा दिए गये अभिशाप से भी मुक्त कर दिया साथ उन्होने चंद्रमा को वरदान देते हुए काहा कि, कृष्ण पक्ष में उनकी चमक कम होगी तो शुक्ल पक्ष में चमक बढे़गी। दक्षप्रजापती के अभिशाप से मुक्ती के बाद चंद्रदेव ने शिव से माता पार्वती के साथ सोमनाथ के स्थल (वर्तमान में सोमनाथ का मुल मंदिर का स्थान ) पर निवास करने का अनुरोध किया। शिवजी ने अपने प्रिय भक्त चंद्रदेव के अनुरोध को स्विकृत करते हुए भगवान शिव माता पार्वती के साथ सोमनाथ की पावन धरती पर ज्योतिर्लिगों में स्थापित हूए। बाद में याहा चंद्रदेव ने भगवान शिव के भव्य मंदिर का निर्माण किया। चंद्रदेव का दूसरा नाम सोम भी है, तो चंद्रमा द्वारा भगवान शिव के मंदिर को उनके प्रिय भक्त सोम के नाम से आगे प्रसिध्दी मिली । इस तरह से सोमनाथ के मंदिर का शुरवात में निर्माण हुवा।

मंदिर पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले :-

सोमनाथ मंदिर का उल्लेख इस जगह पर ईसापुर्व में भी मिलता है। मंदिर का द्वितीय बार पुनर्निर्माण सातवी सदी में 649 इसवी में वल्लभी के मैत्रक राजावों ने किया था। मंदिर के विशालता ओर वैभवता की बाते विश्व भर में प्रचलित थी। इसके कारण इतिहास में मुस्लिम आक्रमणकारियों ओर पोतुर्गीजो द्वारा इसे कही बार लुटा गया। मंदिर पर पहिली बार हमला 725 इसवी में मुस्लिम सुबेदार अल जुनैद ने किया था, उसने मंदिर की धनसंपत्ती लुटी एव मंदिर को तोड दिया। इसके बाद गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट द्वितीय ने 815 ईसवी में मंदिर का तिसरी बार पुनर्निर्माण करवाया था। नागभट्ट द्वारा सौराष्ट्र में सोमनाथ मंदिर के दर्शन का ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलता है. इसके बाद चालुक्य राजा मुलराज द्वारा ने भी 997 ईसवी में सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृंत्तात में मंदिर का विवरण किया जिससे प्रभावित होकर तुर्की शासक महमुद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर सन 1024 में अपने 5000 सैनिको के साथ हमला किया । उसने 20 मिलीयन दिनार लुटकर शिवलिंग को खंडित किया। सोमनाथ मंदिर के इतिहास में महमुद गजनवी द्वारा किए हमले को सबसे बडा माना जाता है। महमुद ने ना केवल मंदिर को लुटा बल्की मंदिर प्रांगण में पुजा कर रहे ओर मंदिर को बचाने में जुटे 50 हजार निहत्ते भक्तो का कत्लेआम किया। इसके बाद महमुद गजनवी ने मंदिर पर कही बार हमले किए। आग्रा के किल्ले में स्थित देवद्वार सोमनाथ मंदिर के ही है हमले के बाद गजनवी इसे अपने साथ ले गया था। गजनवी द्वारा सन 1024 के हमले के बाद मंदिर को गुजरात के राजा भीमदेव ओर मालवा के राजा भोज ने पुनर्निर्माण करवाया। इसके बाद कही हिंदु राजावो ने मंदिर पुनर्निर्माण में अपना योगदान दिया। सन 1093 में जयसिंग सिंध्दराज ने भी मंदिर की प्रतिष्ठा की ओर मंदिर को सुधारणे में अपना योगदान दिया। सन 1168 में जब विजेश्वरकुमार पाल ओर जेनाचार्य हेमचंद्र सरी के साथ सोमनाथ मंदिर की यात्रा की तो उन्होने भी उस वक्त मंदिर में काफी सुधार करवाए। 1169 मे गुजरात के राजा कुमारपाल ने भी उत्कृष्ट पत्थरो से मंदिर का निर्माण करवाया। सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी मंदिर के सौदर्यकरण में योगदान दिया।

सन 1297 में दिल्ली का सुलतान अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापती नुसरत खां के साथ गुजरात पर हमला किया तो उसने भी सोमनाथ मंदिर को पाचवी बार तोडा ओर मंदिर की धनसंपत्ती लुटकर चला गया। बाद में हिंदु राजावों ने फिर से मंदिर का पुनर्निर्माण किया। अब वो समय था जब गुजरात पर मुगलो ने अपना कब्जा किया था । सन 1395 में गुजरात के सुलतान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिरसे एक बार तोडा ओर सारा चढावा लुट लिया। 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी मंदिर पर हमले किए ओर सोना चांदी लुट लिया। दिल्ली सल्तनत पर औरंगजेब का शासन आया , उसके शासन काल में भारत के कही मंदिर गिराए गये , मंदिरो के जगह मस्जिद बनवाई गयी। सोमनाथ मंदिर को भी उसने सन 1665 ओर सन 1706 में दो बार तोडा। 1665 में मंदिर पर किए हमले के बाद औरंगजेब ने देखा कि, अब भी हिंदु उस स्थान पर पुजा अर्चना कर रहे है तो उसने सेना की तुकडी भेजकर वहा पर रक्तपात करवाया। भक्तो की हत्या की। क्रुर आक्रांतावो ने हिंदुवो के आस्था के स्थानों पर तबाही मचाई। जब भारत का बडा हिस्सा मराठो के अधिन आया तो इंदौर की महाराणी अहिल्याबाई ने 1783 में मुल मंदिर से कुछ दुरी पर नये सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।

मुस्लिम आक्रांतावो ने सोमनाथ मंदिर का बार बार खंडन किया, मंदिर को तोडा तो हिंदु राजावों ने मंदिर का कही बार जिणोद्धार किया। भारत वर्ष में मुस्लिम आक्रमणकारीयों ने सनातन संस्कृति की जडे तोडने की खुब कोशीश की लेकिन हमारी संस्कृति की जडे इतनी मजबुत रही की मुस्लिम लाख कोशिशो के बाद भी हमारी आस्था को तोड नही पाए। वर्तमान में अपना वैभवशाली ओर संघर्षमय इतिहास के साथ सोमनाथ मंदिर के तरह ही हजारो प्राचीन मंदिरे खडे है। सोमनाथ मंदिर के तरह कही मंदिरे है जिसने अपने संघर्षमय जिवन के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखा ओर मुगलो के लाख कोशिशो के बाद भी वो यथाचित खडे रहे। भारत के वैभवशाली इतिहास की गाथा पढनी है तो केवल एक बार मंदिरो के भ्रमण से हम समज सकते है कि हमे सनातन संस्कृति की कितनी अनमोल छवी प्राप्त है।

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