तेजोमहालय है ताजमहल इस सीरीज में हम आपको बता रहे हैं कि कैसे एक हिंदू मंदिर को मुगलों ने अपना बनाकर पेश किया और फिर वामपंथी इतिहासकारों ने अपना ज़मीर बेचकर भारत देश के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया।
नीचे दी गई इस तीसरी तस्वीर को ध्यान से देखिए… गुम्बद के ऊपर लगे त्रिशूल नुमा प्रतीक की बनावट पर अपना ध्यान केंद्रित कीजिए। ये त्रिशूल आठ मिश्रित धातुओं से मिलकर बना है, जिसपर कभी जंग नहीं लगता है। इस शिखर के जरिये आसमानी बिजली को भी इमारत में सहन करने की शक्ति आती है। इस तरह की आठ धातुओं का इस्तेमाल और ऐसे त्रिशूल शिखरों का इस्तेमाल हिन्दू मंदिरों में किया जाता रहा है। त्रिशूल नुमा इस आकृति में जो बीच की धातु है वो पवित्र कलश की तरह दिखती है।
ये एक उदाहरण है कि कैसे भारतीय इतिहास को गलत अध्ययन कर अपने तरीके से पेश किया गया है। इस शिखर को देखकर साफ कहा जा सकता है कि ये त्रिशूल नुमा धातु की आकृति एक हिंदू प्रतीक है जिसे मुस्लिम इतिहासकारों ने चांद सितारा के तौर पर पेश किया है। साथ ही गुम्बद पर बने हुए फूलों की आकृति निश्चित तौर पर हिन्दू चिन्ह है क्योंकि फूलों की नक्काशी का उदाहरण सिर्फ हिंदू इमारतों और भवनों में ही मिलता था।
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