पिछले कुछ दशकों से बढ़ते बढ़ते अब कट्टरपंथ ने वैश्विक आतंकवाद का आत्मघाती स्वरूप बना लिया है | आज विश्व का शायद ही कोई कोना ऐसा बचा हो जो परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से आतंवाद से ग्रस्त न हो | आंकड़े बताते हैं की आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित ,भारत , फ़्रांस , अमेरिका , जर्मनी और आस्ट्रेलिया सबसे अधिक पीड़ित रहे हैं | विश्व के कुल आतंकी हमलों का लगभग 68 प्रतिशत तक इन्हीं देशों ने आतंकवाद को झेला है | 

जहां तक भारतीय सन्दर्भ की बात है तो अब से छः वर्ष पहले तक भारत की भी कमोबेश यही स्थिति थी जब पूर्व की कांग्रेस सरकारों के समय , कोई भी बड़ा आर्थिक अपराध /घोटाला सामने आते ही उसके कुछ ही दिनों के अंदर कोई आतंकी हमला भारत में हो जाता था और यही बार बार दोहराया जाता था | मुंबई के आतंकी हमले हों या संसद पर किया गया दुःसाहसी हमला | 

आतंकवाद के प्रसार को रोकने के लिए और ,आतंकवाद से सामूहिक लड़ाई लड़ने के लिए ,अलग अलग तरीकों  बिंदुओं पर एक साथ मिलकर काम करने पर विचार  कर रहे हैं | आतंकियों द्वारा ऐसे हमलों के लिये प्रयोग किये जाने वाले पैटर्न और तकनीक का अध्ययन , इनके द्वारा उपयोग की जाने वाली कोडिंग भाषाएं , उपलब्ध उन्नत हथियार और शस्त्र ,आदि सभी पहलुओं पर सभी देशों की सुरक्षा एजेंसियों को जाँच रिपोर्ट आपस में साझा करने की बात भी हो रही है | 

आतंकवाद  पर किए गए एक अध्य्यन से पता चला है कि इससे संचालन में हथियारों से लैस और मरने मारने को उतारू आतंकवादी बेशक अहम भुमिका निभाते हैं किन्तु इनकी असली ताकत होती है , वो आर्थिक मदद जो इन्हें इस पूरे नेटवर्क को चलाने के लिए मिलती है | माफिया ,ड्रग्स माफिया , भूमाफिया आदि चाहे अनचाहे इन आतंकियों के लिए बैंक का काम करते हैं | 

और इन सबमे इनके साथ साथ , कटटरपंथी विचारधारा रखने वाले बड़े उद्योगपति और सरकारें भी इन आतंकी संगठनों को भारी आर्थिक मदद पहुँचाते हैं | हवाला तथा अन्य माध्यमों से मिले धन से ये आतंकवादी हर वो साध  आसानी से हासिल कर लेते हैं जो इन्हें अपने जेहाद के लिए चाहिए होता है | 

सबसे बड़ी विडंबना ये है कि आतंकवादियों और आतंकवाद से निपटने के लिये ऐसे किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून पर अभी तक कोई सहमति नहीं बनी है जो आतंकवाद को मानवता के विरूद्ध सबसे बड़ा अपराध घोषित कर एक आतंकवादी को पूरी इंसानियत /मानवता के अपराधी के रुप में दण्डित कर सके | 

वर्तमान में फ्रांस पर  एक एक बाद किए जा रहे आतंकी हमलों पर भी पूरी दुनिया एक जुट नहीं हो पाई है | असल में सभी देशो के अपने अपने राजीतिक हित और आर्थिक स्वार्थ हैं फिर सब देशों में आतंकवाद की परिभाषा और पर्याय भी एक नहीं है और अक्सर देखा गया है कि सम्बंधित देश अपने नागरिक को दोषी पाकर भी उसके पक्ष में ही खड़े दीखते हैं | 

दुनिया जिस तरह से इन सारे घटनाक्रमों में न्यूट्रल मोड में आकर दूसरे देशों में चल रही गड़बड़ , आतंकी घटनाओं , उपद्रवों का मज़ा ले रही है उसी का ये परिणाम है कि अमेरिका पर हुए इतने बड़े आतंकी हमले के बावजूद भी दुनिया से आतंकियों का सफाया नहीं किया जा सका | लेकिन अब वक्त निर्णायक आ रहा है इसलिए स्वयं की प्रेरणा से या फिर विवश होकर विश्व को ये तो तय करना ही होगा कि -विध्वसं चाहिए या विकास | 

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