आजकल एक खबर वायरल हो रही है कि राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने दो करोड़ की जमीन 18 करोड़ में खरीदा और इस तरह एक आर्थिक घोटाला हुआ है। यह बात पहली नजर में बड़ी मार्के की लग सकती है परंतु यह आरोप आमतौर पर वे लोग लगा रहे हैं जो एक तो राम के नाम और अस्तित्व पर संदेह करते हैं और राम मंदिर पर भी पहला हक अकलियतों का मानते हैं। यह वह समूह है जो बाबर के अस्तित्व को मानता है ,औरंगजेब के अस्तित्व को मानता है ,मीर बाकी के अस्तित्व को मानता है औरसूफ़ियों, पोपों , रब्बियों आदि के अस्तित्व को मानता है लेकिन राम को काल्पनिक मानता है। यदि इस दक्षिणपंथी सरकार का थोड़ा प्रभाव ना होता तो याद कीजिए कि रामनवमी की छुट्टी के बाद भारत में सर्वोच्च न्यायालय में हर बार इस केस की नई तारीख मिलती थी कि राम है कि नहीं। किसी भी संप्रदाय या पन्थ में अपने आदर्श पुरुष के बारे में इतने ज्यादा शक की गुंजाइश आमतौर पर संभव नहीं है परन्तु सेक्यूलर सनातनियों के लिये सब संभव है। कुछ गलतियां हुई है राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास से। यह गलती बेशक हुई है कि उसने अपने कामकाज को स्पष्ट करने के लिए और सार्वजनिक रूप से इसकी उद्घोषणा करने के लिए आस्थावान लोगों को चुना है व्यवहार कुशल लोगों को नहीं। अहिंदू मीडिया की यह सबसे बड़ी खासियत है कि यह अपना प्रेस प्रबंधन बहुत ही मुस्तैदी से और योजना के अंतर्गत करता है। आप क्षेत्रीय पार्टियां जैसे सपा, बसपा, अन्नाद्रमुक, द्रमुक, तेलुगू देशम पार्टी, बीजू जनता दल, नेशनल कॉन्फ्रेंस और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से क्षेत्रीय दायरे में सिमटती हुई कांग्रेस को अगर देखें तो इनके प्रेस प्रवक्ता बड़े शानदार होते हैं। हर प्राइम टाइम में फालतू मुद्दों पर भी अगर बहस होती है तो इनके प्रवक्ता बड़ी मुस्तैदी से अपने विचार रखते हैं। राजनीतिक पार्टियों की छोड़ दीजिए , जे एन यू प्रकरण , शाहीन बाग और किसान आंदोलन के दौरान भी विभिन्न चैनलों द्वारा आयोजित प्राइम टाइम में इस भीड़ नुमा आयोजनों के प्रवक्ता भी बड़े शानदार दिखे और उन्होंने अपना पक्ष इतनी अच्छी तरह रखा कि हमें वह भीड़ एक अखिल भारतीय परिदृश्य का नमूना दिखने लगी परंतु यही बात जब भारतीय जनता पार्टी या एनडीए के संदर्भ में हम देखते हैं तो पाते हैं कि इनका प्रेस मैनेजमेंट बहुत ही ढीला ढाला या चलताऊ किस्म का है। इनके अधिकांश प्रवक्ता को ड्राइंग रूम की बातचीत और प्राइम टाइम की बहस में खास फर्क नहीं पता चलता है। यह भी एक आश्चर्य की बात है कि समकालीन प्रधानमंत्री ने आज तक अपने कार्यकाल में एक भी स्थापित पत्रकार को अपना साक्षात्कार नहीं दिया है।बात राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की हो रही थी तो इस ट्रस्ट में भी महन्थ नृत्य गोपाल दास, चंपत राय , पराशरन, दो आइ ए एस आदि कई लोग जुड़े हैं जो राजनैतिक कम और आस्थावान ज्यादा है। ३ लोगों के सम्मिलित भूमि को दो करोड़ के बदले 18 करोड़ में राम जन्म भूमि मन्दिर के एक्सटेन्शन लिए खरीदे जाने को मुद्दा बनाने के लिए विभिन्न पार्टियों ने अपने बेहतरीन प्रवक्ताओं को उतारा परंतु विश्व हिंदू परिषद , बजरंग दल और ऐसे अन्य कई सनातनी संगठन या तो चलताऊ किस्म के प्रवक्ताओं से काम चलाते रहे हैं या लगभग मौन रहे हैं। यह मौन इस ट्रस्ट के समर्पित ट्रस्टीयों और कार्यकर्ताओं को बेईमान, अर्थलोलुप और भ्रष्टाचारी साबित कर रहा है। होना यह चाहिए था कि उत्कृष्ट प्रवक्ताओं को सामने लाकर हर सौदे की बारीकी से व्याख्या करते हुए प्रेस को एक स्वस्थ विज्ञप्ति दी जाती जिसमें इसका भी जिक्र होता। मैं मानता हूं के राम जन्म भूमि पर बने बाबरी मस्जिद के ध्वंसावशेष पर पहरा देने वाले प्रहरी भी वहां जाकर पहले प्रणाम करते थे तभी वहां की शांति व्यवस्था बनाने का अपना प्रयास शुरू करते थे। राम आदर्श हैं और न्याय व्यवस्था को मन से पूर्णतया पालन करने वाले हैं। राम ने धोबी के कथन पर प्रश्नचिन्ह कभी नहीं लगाया बल्कि सीता का परित्याग करना उचित समझा। श्रेष्ठ मनुष्य अपना स्पष्टीकरण अपने कर्म से देते हैं वक्तव्य से नहीं।तमाम ट्रस्टियों को यह चाहिए कि अपनी हर जमा खर्च को एक योग्य लेखाकार के द्वारा बैलेंस शीट के माध्यम से प्रेस के सामने रखें और अपनी स्थिति स्पष्ट करें । अगर किसी भूमि मालिक ने दबाव देकर अपनी भूमि अधिक कीमत ले कर दी है तो इसका भी उल्लेख करें और उस विक्रेता को सार्वजनिक रूप से ज़लील किया जाए ताकि पुण्य कार्य में फायदा सोचने वाले पापियों को उचित सबक मिले। परंतु हो यह रहा है चंपत राय एक प्रिंटेड बयान जारी करके अपना स्पष्टीकरण दे रहे हैं। हिंदुत्व विरोधी खेमा अपने बेहतरीन प्रेस प्रवक्ताओं को सामने लाकर इनके तर्कों की धज्जियां उड़ा रहा है और राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की बात इस तथाकथित सेकुलर खेमे के नक्कारखाने में तूती की आवाज बन चुकी है। और एक जिम्मेदार उत्तर के अभाव में सामान्य आस्थावान हिन्दू अपने हिसाब से ट्रस्ट के कृत्य को जस्टिफ़ाइ कर रहा है।हिंदू मन व्यथित है क्योंकि राम जन्मभूमि पर मंदिर के बनने में घोटाले की महक आ रही है। जब प्रधान मन्त्री की घोषणा के अनुरूप ट्रस्ट का निर्माण हुआ है तो केन्द्रीय सत्ता को भी एक आधिकारिक वक्तव्य देना चाहिये। अनार्जित धन के रखवाले कब उस निधि से कुछ चुरा लें और तालाब की मछलियाँ कब पानी पी लें किसी को पता नहीं चल सकता है, यही आचार्य चाणक्य का मत है। भ्र्ष्टाचार की जाँच हो और दोषी को दण्ड मिले और यदि घोटाला ना हुआ हो तो मिथ्या प्रचारकों पर राजद्रोह का मुकदमा चले पर हर जिम्मेदार पीठासीन पदाधिकारीअपना मुख जरूर खोले।आज भी मेरा यही मानना है कि उचित समय पर आपका ना बोलना आपको आमरण शरशैय्या प्रदान कर सकता है और भीष्म इसके उदाहरण हैं ।

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