स्त्री रसोईघर से लेकर मंदिरों तक पुरुषों की जिंदगी को आत्मसात किए रहती है और पुरुषों की गतिशील जीवन शैली में हर कदम एक खूबसूरत ठहराव की तरह दिखाई देती है । नारी संस्कृति का मूल , धर्म का आधार, सभ्यता की संवाहिका, स्नेह की प्रतिमूर्ति , प्रणय का प्रतिमान, सम्मान की पराकाष्ठा और धैर्य की पर्यायवाची बनकर नर से निरूपित समाज के हर ताने बाने का अभिन्न हिस्सा है पर आधुनिक शिक्षा की विवेक हीन व्याख्या ने उसे गुलामों वाली छटपटाहट से भर दिया है। आज नारी खुद को समाज के तानेबाने का हिस्सा मानने के बदले मकड़जाल में फंसी कीड़े की तरह महसूस करती रहती है ।इस प्रकार नारी जाने अंजाने खुद को उत्पीड़ित मानने के साथ समग्र पुरुष वर्ग को उत्पीड़क मानती चली जाती है साथ साथ माँ , सास, बड़ी बहन , ननद को भी इस अत्याचार में सहयोगी समझ लेती है।पाउलो फ्रेअरे ने कहा है कि उत्पीड़ित हमेशा उत्पीड़क बनकर अपने उत्पीड़न का बदला उत्पीड़न करके लेना चाहता है और यही बात महिलाओं की आजादी के प्रतिरूपों झलकता है । देर रात घर लौटना, पार्टियों में जाना, बेवजह नौकरी की जिद और नौकरी करना, अधिक उम्र में शादी, पुरुषों जैसे कपड़े और बाल रखना, अपनी माँ को अपने पति के घर में रखना पर उसी घर में सास का तिरस्कार, डीप नेक टाप्स , स्मोकिंग और ड्रिंक्स , विवाह पूर्व संबंध , विवाहेतर संबंध अधिक उम्र में माँ बनना या वगैर गर्भ धारण किए सरोगेसी से संतान पाना या गोद ले लेना आदि वे अपनाए गये व्यवहार हैं जो सफल होने पर उन्हें मर्द सरीखा बनाता है। ये आचरण आजादी तो दूर उन्हें एक ईजी ट्रैप बनाता है क्योंकि मर्दों के लिए खुली खिड़कियाँ और खुले कपड़े हमेशा से झांकने का सबब होती हैं । पिंक सिनेमा आपको इसका पूर्वानुमान करवा सकता है। ये आजादी की कोशिश ठीक वैसी हीं है जैसा कि पतंग कहे डोर से मुक्त होने की बात या एक छोटा बच्चा लड़खड़ाते कदमों से आपकी उंगली पकड़कर चलने के बजाय आपकी उंगली छुड़ा कर व्यस्त सड़क पर दौड़ लगा दे।आगे का परिणाम का अंदाजा आपको हो हीं जाएगा ।
अब नारी द्वारा आजादी की मांग और उसके मूल में नजर डालें तो पाएँगे कि नारी की यह आजादी भी अंततः मर्दों की स्वार्थ पूर्ति का हीं जरिया है। पढ़ी लिखी कमाल बीवी की सैलरी हमेशा पति की तिजोरी हीं भरती है। असहमत बहनें कम से कम दो साल तक अपनी सैलरी अपने माता पिथा को देने का संकल्प लें और फिर अपने उदारमना नारी स्वातंत्र्य समर्थक पति का हिडेन एजेंडा देखें। एक हीं संस्था में कार्य रत दंपत्ति में सामान्यतया पति को कृतज्ञ बनाने की कोशिश हीं नियोक्ता को पत्नी को भी नौकरी देने पर प्रेरित करतीं है।मिस वर्ल्ड, मिस यूनिवर्स प्रतियोगिताएँ दरअसल अन्तर्वस्त्रों की पब्लिसिटी हेतु नायिकाओं की तलाश हेतु शुरू की गयी थी।फैशन शो और पाश्चात्य परिधान का चलन पुरुषों के द्वारा प्रच्छन्न रूप से कर्व्स और कट्स के द्वारा नारी देह के उद्दाम प्रदर्शन की छद्म उदारता है।पर्दे की चारदीवारी के पार नारी की छद्म आजादी की नुमाइश शेर और बकरी के एक घाट पर पानी पीने जैसी हीं है ताकि पानी पीने बाद , शेर नाश्ते के लिए प्रतीक्षा न करनी पड़े। चारदीवारी के बाहर निकल कर स्त्री की आजादी के प्रकार हैं … साहब की सेक्रेटरी, आफिस रिसेप्सनिस्ट, चीयर लीडर्स , गुटखा, पान मसाला , टायर , सेविंग क्रीम के विज्ञापन से लेकर कार की लुब्रिकेटिंग आयल तक फीमेल माडल लीड रोल में खड़ी मिलेगी।
सरकारी सेवाओं और कारपोरेट में प्राप्त उच्च पद भी हनी ट्रैप के संदेह से बरी नहीं है।मेरा यह आलेख पुरुषों की सामंतवादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता हुआ लग सकता है जो नारी को असूर्यम्पश्या हीं रखना चाहती है पर मेरा विचार है कि अगर बैंक पासबुक, लाकर की चाबी और कोड , चेकबुक , वसीयत , सेल डीड , कीमती जेवरात, रत्न, क्रेडिट डेबिट कार्ड का पिन नंबर खुले में नहीं रखे जा सकते तो नारी जो इन सबकी तुलना मे अधिक मूल्यवती, गोपनीया, संरक्षणीया और और सम्मानिता है उसः समाज के चौराहे पर अभिव्यक्ति की आजादी की भेंट कर देना अमानवीय है।मनु लिखते हैं पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति।।अर्थात् पिता , पति और पुत्र नारी की रक्षा क्रमशः बचपन , जवानी और बुढ़ापे में करते है अतः उसे तथाकथित आजादी की जरूरत नहीं है। इस वाक्य को को उन संभ्रान्तों ने नारी दीन हीन छवि से जोड़ा है जिनके माता पिता गाँव या वृद्धाश्रम में और बच्चे होस्टलों में पल रहे हैं । ये लोग एक बार भी ये नहीं सोचते कि अंगरक्षक आजाद लोगों के होते हैं शोषितों की तो पहरेदारी होती है। नारी खुद आजाद है। उसे तथाकथित दलित दिखाने से बचें बरना समाज की इकाई एकल मनुष्य हीं रह जाएगा परिवार नहीं ।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.