प्रणाम मित्रों, खबर की पड़ताल में आज बात करते हैं अंतराष्ट्रीय मुद्दों में सबसे गर्म ट्रम्प प्रशासन की पॉलिसी की। आज कल हर कोई विदेश नीति का एक्स्पर्ट बना हुआ है और लगा हुआ है ट्रम्प को गरियाने में। इन सभी को थोड़ा सा किनारे रखते हुए, आइए आज बात करते हैं कि आख़िर ट्रम्प सरकार की भारत को लेकर क्या नीति थी? आज ट्रम्प प्रशासन ने वाइट हाउस से कुछ ऐसे दस्तावेज़ों को ग़ैरवर्गीकृत किया है जो उनकी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वर्ष २०१७-२०१९ तक की नीतियों का खुलासा करती हैं। 

पहला और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु: अमेरिकी सरकार ने लोकतंत्र विरोधी और चाइना कॉम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित चीन की अपारदर्शी नीतियों को अमेरिका और अन्य लोकतांत्रिक देशों की संप्रभुता के लिए ख़तरा बताया है और वहीं लोकतांत्रिक भारत और भारतीय सामर्थ्य, पारदर्शिता और हिन्द महासागर क्षेत्र में भारतीय नीति का समर्थन करते हुए एक मज़बूत और भरोसेमंद साथी बताया है। इन्होंने कहा है कि भारत की उन्नति और सामरिक दृष्टि से शक्तिशाली होने के लिए गठजोड़ अवश्यम्भावी है। दोनो लोकतांत्रिक देशों के बीच के गठजोड़ से कई आपसी हित हल होते हैं। इसमें भारत को अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने में सहयोग, सैन्य क्षेत्र में भारत को महत्वपूर्ण साझेदार बनाए जाने की वकालत, सैन्य क्षेत्र में ख़रीददारी में भारत पर कोई प्रतिबंध न हो, इसके अलावा डेटा शेयरिंग, अंतरिक्ष, इंटेलिजेन्स, समुद्री, नैविगेशन वग़ैरह में सहयोग, ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, भारत और जापान के साथ मिलकर पूरे क्षेत्र को कंनेक्टिविटी से जोड़ने जैसे कई बातें हैं।

वहीं चीन को लेकर इसमें चिंता जताई गयी है। चीन की कॉम्युनिस्ट पार्टी की सरकार की इस शताब्दी की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने की महत्वकांक्षा पर चिंता जताई गयी है। चीन की दादागिरी, लोकतंत्र विरोधी रवैया और चीन की विस्तारवादी नीति पर अंतराष्ट्रीय सहमति बनाने की भी बात है। चीन की व्यापारिक नीति से अमेरिकी ग्राहक, निर्माताओं और उपभोक्ताओं को बड़ा ख़तरा बताया है।

इसमें ट्रम्प सरकार ने चीन की सैन्य तैयारियों को उसकी विश्व में सर्वाधिक शक्तिशाली बनने की महत्वकांक्षा को भी बड़ा ख़तरा माना है और अमेरिका या अमेरिकी सहयोगी के विरुद्ध युद्ध में चीन का खुलकर विरोध करने की बात की है। ताइवान की सुरक्षा को इस दस्तावेज में खुलकर कहा गया है। 

इसमें एक महत्वपूर्ण बात और भी है- वह है वैश्विक प्रतिष्ठानों, मीडिया, यूनिवर्सिटी वग़ैरह में बढ़ते चीनी प्रभाव के उत्तर में अमेरिकी प्रभाव को बढ़ाने की बात… यह बात सभी जानते हैं कि चीन अपने शक्तिशाली ईकोसिस्टम के लिए लोकतांत्रिक देशों को कमजोर करने के लिए बुद्धिजीवियों, मीडियाकर्मियों को तैयार करता है और इसीलिए लोकतांत्रिक देशों को अस्थिर और अव्यवस्थित रखने से उसका व्यापारिक हित सिद्ध होता है। उदाहरण के लिए देखिए: भारत में ऐपल की फ़ैक्टरी पर उपद्रव मचाने वाले वामपंथी और उस उपद्रव के बाद भारत पर सीधा कटाक्ष करता चीन कि देखो भारत कितना अव्यवस्थित देश है! वैसे इन दस्तावेज़ों से एक बात साफ़ होती है कि ट्रम्प प्रशासन, भारत के परिपेक्ष्य में, अब तक के सबसे बेहतरीन राष्ट्रपति रहे। उन्होंने सच में “ट्रू-फ़्रेंड” का अपना वादा निभाया है।

मैं पिछले एक महीने में हुए घटनाक्रम से उनके चार वर्षों के कठिन परिश्रम का अधिकार कम नहीं करूँगा। सच यही है कि ट्रम्प ने अमेरिका को अधिक समर्थ्यवान बनाया, अमेरिका ने कहीं कोई बम, गोले नहीं बरसाए, सबसे अधिक सैनिकों की घर वापसी हुई, मध्य-पूर्व में इज़राइल और उसके पारम्परिक शत्रु रहे इस्लामिक देशों की महत्वपूर्ण शांति साझेदारी हुई। 

अब जब ट्रम्प अपने कार्यकाल के अंतिम कुछ दिनों में हैं और आज भी विपक्ष उन पर महाभियोग चलाने के लिए प्रयासरत है तो ऐसे में उनके किए गए अच्छे कामों के लिए उनकी सराहना करना भी आवश्यक है। 

(यह आलेख अमेरिकी संसद द्वारा ग़ैर-वर्गीकृत दस्तावेज़ों से लिए गए अंशों के अनुवाद और उनकी विवेचना है।)

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