जब दो अलग – अलग जातियों में विवाह होता है, तो उससे उत्पन्न होने वाली सन्तान को “वर्णसंकर” कहा गया है ।
यह वर्णसंकर सन्तान कुल का नाश करके नरक में जाने के दरवाजे खोलती है यानि कि नरक में जाने का कारण बनती है । वर्णसंकर सन्तान पितरों का तर्पण, पिण्डदान आदि कार्य करने में सक्षम नहीं होती है यानि कि वह यह काम करने योग्य नहीं माने गए हैं, क्योंकि इनके द्वारा किए गए तर्पण तथा पिण्डदान से पितर तृप्त नहीं होते हैं ।

इसका स्पष्टीकरण करने हेतु मैं आपको इसका एक वैज्ञानिक कारण भी बताता हूँ क्योंकि आज के आधुनिक युग में लोग संस्कृति से ज्यादा विज्ञान पर विश्वास करते हैं और वह काफी हद तक सही भी है, क्योंकि हमारे सनातन धर्म में किए गए हर एक कार्य का वैज्ञानिक प्रमाण भी है जो कि हमारे धर्म को सर्वश्रेष्ठ बनाता है।
एक बार वैज्ञानिकों ने आम तथा बेर आदि वृक्षों में दूसरी नस्ल के पौधों का पैबन्ध लगाकर एक ही वृक्ष में से दोनों प्रजातियों के फल पाने हेतु यह विधि तैयार की , किन्तु दु:ख की बात यह थी कि इन पौधों में लगे फलों के बीज से आगे और पौधे उत्पन्न करने की क्षमता ही समाप्त हो गई।
तात्पर्य यह है कि वर्णसंकर सन्तान से वंश वृद्धि की सम्भावना समाप्त हो जाती है ।
विजातीय विवाह करने से दोनों जातियों के गुण समाप्त हो जाते हैं तथा नवीन विकृति युक्त गुणों का प्रादुर्भाव होता है।
जिस प्रकार से शुद्ध देशी घी अति स्वादिष्ट और प्रिय होता है तथा मधु अति मधुर और मीठा होता है किन्तु जब दोनों को मिला दिया जाता है तो यह एक तेज किस्म का जहर बन जाता है।
इसी कारण धार्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों कारणों से अन्तर जातीय विवाह का निषेध है।

तो अब आप यह अंदाजा लगा सकतें हैं , कि जब अंतरजातीय विवाह के इतने दुष्परिणाम हैं तो अंतरधार्मिक(लव-जिहाद) के कितने दुष्परिणाम होगें।

अत: आप सभी लोग (लव- जिहाद) से बचें अपने माता-पिता की सेवा करें उनकी आज्ञा का पालन करें वह(माता-पिता) सदासर्वदा आप का हित ही चाहते हैं यह आप याद रखें ।

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