उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के 10 मार्च को आने वाले नतीजों पर तमाम सियासी पार्टियों से लेकर पूरे देश की नजर है. क्योंकि अक्सर ये कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। मतलब साफ है उत्तर प्रदेश का चुनाव किसी दल और नेता के राजनीतिक भविष्य बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है .

उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों से यूपी की कद्दावर और पुरानी पार्टी समाजवादी पार्टी का अस्तित्व भी जुड़ा हुआ है. दरअसल सातों चरणों की वोटिंग के दौरान समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरे आत्मविश्वास से लबरेज दिखे. लेकिन पता नहीं कल तक पूरे दमखम के साथ जीत का दावा करने वाले खिलेश यादव को अचानक ऐसा क्या हुआ कि आरोपों की झड़ी लगाते हुए फिर EVM पर बरसना शुरू कर दिया, मानो वो कोई उनका विरोधी हो. अरे भाई है तो एक मशीन ही ना .

दरअसल वोटिंग के बाद तमाम एग्जिट पोल और सियासी पंडितों की मानें तो यह चुनाव सपा और यादव परिवार का सर्वनाश कर देगा। किसी भी एग्जिट पोल में समाजवादी पार्टी की सरकार बनते हुए नहीं दिखाई जा रही है। समाजवादी पार्टी बुरी तरीके से हार रही है और योगी आदित्यनाथ जी दोबारा पूर्ण बहुमत से सरकार बना रहे हैं। मानो यहीं से समाजवादी पार्टी का पतन शुरू होगा.

आज सपा की जो हालत है उसके लिए अखिलेश यादव को ही जिम्मेवार माना जा रहा है. पार्टी में जब तक मुलायम सिंह यादव सर्वेसर्वा थे उनके हाथों में पार्टी की कमान थी तब तक सब कुछ ठीक था. चाहे रामगोपाल यादव हो या शिवपाल सभी नेताजी की बात सुनते थे . लेकिन फिर अखिलेश ने पार्टी पर कब्जा कर लिया। पुत्र मोह ऐसा कि मुलायम सिंह यादव कुछ नहीं बोल पाएं. चाहे अखिलेश यादव कोई भी फैसला क्वयों न ले लें. वजह पार्टी में बिखराव की हालत हो गई. परिवार में ही ऐसा कलह शुरु हुआ कि धीरे-धीरे सब साथ छोड़ते चले गए. रामगोपाल दूर हो गए और वहीं अपर्णा यादव ने बीजेपी ज्वाइन कर लिया ।

उसके बाद किसी तरह से अखिलेश यादव ने 2022 के चुनाव में बीजेपी को मात देने के एड़ी चोटी का जोर लगा दिया . डैमेज कंट्रोल करने के लिए चाचा शिवपाल को पार्टी में हिस्सा दिया। अपने चाचा डॉक्टर रामगोपाल को भी मनाया। यहां तक कि राजभर से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य तक को पार्टी में शामिल किया। मुसलमानों को टिकट दिया गया, माफिया चेहरों को चुनाव में खड़ा किया गया. मतलब सबकुछ अखिलेश यादव की मर्जी से ही हुआ है. इसलिए इस बार अगर अखिलेश यादव हारते हैं तो यह सीधे-सीधे उनकी नेतृत्व की अक्षमता और नकारेपन के कारण होगी.

वहीं दूसरी तरफ सालों से अलग रहने वाले शिवपाल भी चुनाव से पहले राज्य में बीजेपी की लहर को देखते हुए है अखिलेश से जा मिले। क्योंकि अगर पार्टी हारती है तो फिर सारा ठीकरा अखिलेश यादव के मत्थे ही मढ़ा जाएगा. उसके बार फिर आरोप-प्रत्यारोप शुरू होगा, अखिलेश यादव को पद से हटाने की मांग शुरू हो जाएगी और पार्टी में सिर फुटव्वौल शुरू होगा और पार्टी के पतन के शुरूआत यही से हो जाएगी. तो क्या माना जाए कि वंशवाद की राजनीति करने वाली एक और पार्टी खत्म हो जाएगी ? बस इंतजार कीजिए 10 मार्च का .

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