हर साल 14 अगस्त आता है, चला जाता है किन्तु 1947 के भीषण विभाजन की टीस भरी यादें छोड़ जाता है।
हम अपने मन के उस संकल्प को पुनः नया करते हैं कि भक्त प्रह्माद की नगरी मुल्तान, जहाँ नरसिंह अवतार हुआ, श्री राम के पुत्रगण कुश व लव द्वारा बसाये गये कुशपुर (कुसूर) और लवपुर (लाहौर) जहाँ गुरु अर्जुनदेव, वीर हकीकत राय तथा भगत सिंह राजगुरु, सुखदेव बलिदान हुए, भारत के पुत्र तक्ष की नगरी तक्षशिला छोटे पुत्र पुष्कल की पुष्कलावती, हिंगलाज माता का शक्तिपीठ, पाण्डवों की स्मृति संजोये कटाक्षराज (कटासराज, गुरु नानक देव का पंजा साहिब, ढाकेश्वरी माता का मंदिर, चट्टाम- यशोहर (जैसोर) खुलना के
शक्तिपाठ – ये सब हमें फिर सुलभ होंगे।
1947 का रक्त-रंजित विभाजन
पश्चिमी भाग में 8 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर पाकिस्तान तथा पूर्वी भाग में 1.50 लाख वर्ग किलोमीटर में पू. पाकिस्तान बना दिया गया। लगभग 1.50 करोड़ हिन्दू इन क्षेत्रों से भारत में शरण लेने आये कुल लगभग 20 लाख हत्याएं हुई।
साथ ही लाखों माता बहनों के अपहरण क्रय विक्रय जैसे अकथनीय अपराध ने मानवता को कलंकित कर डाला।
भारत द्वारा न्यायमूर्ति जी.डी. खोसला के माध्यम से कराये गये सर्वेक्षण (द स्टर्न रैकनिंग) के अनुसार भी 10 लाख की जनहानि का अनुमानित आंकड़ा है।
• पर 1947 भारत के विभाजनों का अंतिम बिंदु नहीं है।
• उसके बाद कश्मीर के हिस्से पाकिस्तान और फिर चीन ने कब्जाये। इस समय 78,114 हजार वर्ग किलोमीटर पाकिस्तान तथा 42,735 हजार वर्ग किमी चीन के अवैध अधिकार में है।
इसमें पाकिस्तान द्वारा 1963 में अपने कब्जे से चीन को ‘उपहार’ में दिया गया 5180 वर्ग किमी क्षेत्र भी सम्मिलित है।
• मणिपुर की स्वर्ग समान सुन्दर काबो घाटी (11,000 वर्ग कि.मी.) भी नेहरू सरकार ने बर्मा को दे दी।
• नागालैण्ड मणिपुर के कुछ भाग बर्मा को गये। कोको द्वीप गया।
• कच्छ का कुछ हिस्सा और छम्ब पाकिस्तान ने ले लिया। बेरुबाड़ी और तीन बीघा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को दिये गये। कच्चातीवू द्वीप लंका को गया।
• भारत का आक्चन सिकुड़न बहुत लम्बा चल लिया है। यह हमारी मुर्च्छावस्था का द्योतक है।
खण्डित मूर्ति अस्वीकार है ।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- विस्तार चेतना का लक्षण है।
तो क्या यह राष्ट्र अब असंदिग्ध शब्दों में – अपनी चैतन्य-युक्तता का परिचय देते हुए कहेगा कि विभाजन आगे और नहीं? और इससे भी बड़ा सवाल भूतकाल में हुए विभाजनों को निरस्त करने की शुरुआत होगी?
क्योंकि यह भारतभूमि एक दिव्य चेतना वाली भूमि है। यह सर्वेश की सगुण साकार मूर्ति है और मूर्ति का खंडित रहना
अस्वीकार्य है।
अखण्ड भारत ही सच्चा भारत है। वही हर भारत-आराधक के दिल में बसा है। मानचित्र में दिखने वाला विभाजन पूरी तरह अप्राकृतिक व कृत्रिम है।
मानचित्र में जो दिखता है नहीं देश भारत है।
भू पर नहीं दिलों में ही अब शेष कहीं भारत है।
हमारे दिलों में बसी अखण्ड प्रतिमा भू पर भी हम अवतरित करेंगे, यह संकल्प अखण्ड भारत दिवस (14 अगस्त) पर लें।
यह काम वर्तमान पीढ़ी न कर पायी, तो अगली करेगी, पर करेगी जरूर।
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