मुस्लिम आतंकी संगठनों पर कठोर कार्यवाही और कांग्रेस की प्रतिक्रिया: एक विस्तृत विश्लेषण
देश में जब जब मुस्लिम आतंकी संगठनों पर कठोर कार्यवाही करने की बात होती है, तब-तब मुस्लिम वोटों पर आश्रित कांग्रेस के नेता अपने कुंठित चेहरे लेकर कुतर्कों के साथ उनके बचाव में खड़े हो जाते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण 2017 में देखने को मिला जब एनआईए ने इस संगठन पर हिंसक आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के साथ-साथ, मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करने का आरोप लगाया था।
एनआईए की रिपोर्ट में पीएफआई पर हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने, युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने, और अन्य कट्टरपंथी संगठनों को वित्तीय पोषण करने का भी आरोप था।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
इन सभी आरोपों के आधार पर गृह मंत्रालय ने 2022 में पीएफआई को प्रतिबंधित कर दिया था। इस प्रतिबंध पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आरएसएस को भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए। जयराम रमेश का यह बयान साफ तौर पर कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति का प्रतीक था।
जयराम रमेश का यह बयान इस बात को भी इंगित करता है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी, जो वायनाड (केरल) से दो बार सांसद बने हैं, वहां जमीनी स्तर पर कांग्रेस का जनाधार बेहद कमजोर है। ऐसा लगता है राहुल गांधी की जीत पीएफआई के सहयोग से ही संभव हुई है, इसलिए कांग्रेस के नेता जैसे जयराम रमेश, पीएफआई जैसे कट्टरपंथी संगठनों का बचाव करने में संकोच नहीं करते।
विगत मंगलवार 11 जून 2024 को मुंबई उच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित पीएफआई के तीन सदस्यों को जमानत देने से इमकर कर दिया। उच्च न्यायालय द्वारा इंकार करने का आधार यह था कि पीएफआई ने “भारत को 2047 तक इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी” और आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को आतंकित करने का प्रयास किया था। मुंबई उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रेस के ये नेता ऐसी हरकतों से बाज नहीं आएंगे ओर साथ ही कांग्रेस के जयराम रमेश जैसे दरबारियों को समुचित जवाब दिया है।
इसके अलावा, पीएफआई के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के कई प्रमाण भी सामने आए हैं। उदाहरणस्वरूप, 1.केरल पुलिस ने 2013 में पीएफआई के कुछ सदस्यों को हथियारों के साथ गिरफ्तार किया था, जिनका उद्देश्य आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना था।
2. सन 2020 में, दिल्ली दंगों के दौरान भी पीएफआई के सदस्यों की सक्रिय भूमिका सामने आई थी। इससे स्पष्ट होता है कि पीएफआई एक गंभीर आतंकी खतरा है, जिसे समय रहते रोका जाना आवश्यक है।
यह समय की मांग है कि देश के सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुट हों और कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्यवाही का समर्थन करें। किन्तु कांग्रेस के नेताओं द्वारा पीएफआई का बचाव करना न केवल उनकी वोट बैंक की राजनीति को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेते।
मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद और कट्टरपंथ को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब यह कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के लिए समर्पित हों और ऐसे संगठनों का समर्थन करने से बचें जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं।
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