प्रस्तावना आज ‘हिन्दू राष्ट्र’विषय पर सर्वत्र चर्चा हो रही है । भारत में हिन्दू राष्ट्र के कट्टर समर्थक हैंसाथ ही अज्ञानवश अथवा हिन्दुत्व के प्रति द्वेष के कारण उसके विरोधी भी हैं । कुछ लोग हिन्दू राष्ट्र की ओर जातीय अथवा धार्मिक दृष्टिकोण से देखते हैंतो कुछ लोग राजकीय संकल्पना के दृष्टिकोण से देखते हैं किसी को हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना लोकतंत्र विरोधी एवं असंवैधानिक लगती हैतो किसी को वह अन्य धर्मियों पर अन्याय करनेवाली लगती है किसी को लगता है कि किसी पक्ष को बहुमत अर्थात हिन्दू राष्ट्रतो किसी को लगता है हिन्दू अर्थात पिछडापन संक्षेप मेंहिन्दू राष्ट्र के विषय में जनमानस में भिन्नभिन्न विचारधाराएं देखने को मिलती हैं । ऐसी परिस्थिति में लगभग 25 वर्ष पूर्वअर्थात जब ऐसी स्थिति थी कि हिन्दुत्व का समर्थन करना भी अपराध लगत थातब ईश्वरीय राज्य का अर्थात हिन्दू राष्ट्र का समर्थन करनेवाले एवं हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना सुस्पष्टता से प्रस्तुत करने वाले व्यक्तित्व थे सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉजयंत आठवलेजी सच्चिदानंद परब्रह्म डॉआठवलेजी ने हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता दृढता से प्रतिपादित करने के साथ ही हिन्दू राष्ट्र स्थापना की दिशा भी स्पष्ट की । उन्होंने इस विषय में ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों चाहिए ?’, ‘हिन्दू राष्ट्र आक्षेप एवं खंडन’, ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा’ इन ग्रंथों की भी रचना की । ये ग्रंथ हिन्दुत्व के अभियान में कार्यरत लोगों के लिए जितने मार्गदर्शक हैंउतने ही हिन्दू राष्ट्र विरोधियों को भी इसकी जानकारी देते हैं कि वास्तव में ‘हिन्दू राष्ट्र’ कैसा होगा । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉआठवलेजी के 81वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में प्रस्तुत इस लेख में उनके आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना पर प्रकाश डालने वाले उनके ही तेजस्वी विचार दिए गए हैं । उसे पढकर हिन्दू राष्ट्र के अभियान में सम्मिलित होने की प्रेरणा होऐसी ईश्वर चरणों में प्रार्थना है !

1. हिन्दू किसे कहें ? : ‘हिन्दू किसे कहें’यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । हिन्दू राष्ट्र की आध्यात्मिक संकल्पना में जन्महिन्दू अर्थात जो केवल जन्म से हिन्दू हैंवे ‘हिन्दू’ऐसी व्याख्या नहीं है । मेरुतंत्र नामक धर्मग्रंथ में ‘हीनं दूषयति इति हिन्दु।’ हिन्दू शब्द का ऐसा अर्थ दिया है । अर्थात जो हीनता का (हीन कर्म एवं गुण कात्याग करता हैवह ‘हिन्दू’ संक्षेप मेंहममें हीन गुणों एवं अनिष्ट शक्तियों का त्याग करने वाले अर्थात सात्त्विक प्रवृत्ति के लोगों को हिन्दू कहें । ऐसे सत्त्वगुणी व्यक्ति ‘मैं एवं मेरा’ ऐसा संकुचित विचार त्याग कर विश्व के कल्याण का विचार करते हैं । हिन्दूपन की इस व्याख्या पर ध्यान देंगे तो यह स्पष्ट होता है कि जन्म से हिन्दूपरंतु कर्म से अथवा गुणों से बुरे व्यक्ति को हिन्दू नहीं कह सकते तथा जन्म से भले ही अहिन्दू होंपरंतु अच्छे कर्म एवं गुणों से युक्त लोगों को हिन्दू कह सकते हैं । हिन्दू राष्ट्र अर्थात (जन्म सेहिन्दुओं का राष्ट्र नहींअपितु विश्व कल्याणार्थ कार्यरत सात्त्विक लोगों का राष्ट्र इसलिए हिन्दू राष्ट्र में अन्य पंथियों का क्या होगायह प्रश्न ही निरर्थक है ।

2. हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता पूरे विश्व में 152 से अधिक ईसाई राष्ट्र, 57 से अधिक इस्लामी राष्ट्र, 12 बौद्ध राष्ट्र हैंइतना ही नहीं अपितु यहूदियों का भी एक स्वतंत्र ‘ज्यू राष्ट्र’ हैपरंतु इस पृथ्वी पर 100 करोड़ से भी अधिक हिन्दुओं का एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं !

आज ‘सेक्युलर’ व्यवस्था में पूरे देश में आतंकवाद का साया है । अनेक प्रदेश नक्सलग्रस्त हैंकिसान आत्महत्या कर रहे हैंमहंगाई से सर्वसामान्य लोगों का जीवन यापन भी दूभर हो गया हैभ्रष्टाचारबेरोजगारीसुस्त प्रशासनविलंब से मिलने वाले न्याय आदि समस्याएं दिनोंदिन बढती ही जा रही हैं । संक्षेप मेंलोकतंत्र को अपेक्षित लोगों का हित का ध्यान रखने के लिए विद्यमान व्यवस्था असफल रही है । आज हिन्दूबहुल भारत में ‘सर तन से जुदा’ करने की खुलेआम धमकियां दी जा रही हैंतो दूसरी ओर हिन्दुओं की धर्मश्रद्धाअस्मिता एवं परंपराओं पर अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर अश्लील टीकाटिप्पणी की जाती है । देश के लगभग 10 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं । जिहादी आतंकवाद के कारण कश्मीर से विस्थापित हुए कश्मीरी हिन्दू आज भी अपने मूलस्थान वापस नहीं जा पाए हैं । दीर्घकालीन संघर्ष के उपरांत आज श्री राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ हैतब भी मथुरा का श्रीकृष्ण मंदिरकाशी विश्वनाथ मंदिर के साथ इस्लामी ढांचे में दबा दिए गए सैकडों मंदिर आज भी मुक्ति की प्रतीक्षा में हैं । इस परिस्थिति में परिवर्तन लाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है । हिन्दू राष्ट्र ही पूरे देश में सभी समस्याओं का उत्तर है । ‘हिन्दू राष्ट्र’ की संकल्पना कोई राजनीति नहींअपितु वह राष्ट्रनिष्ठ एवं धर्माधिष्ठित जीवन यापन की एक प्रगल्भ संस्कृति एवं व्यवस्था होगी ।

3. हिन्दू राष्ट्र की मांग संवैधानिक ही है ! : अनादि काल से ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही भारत की पहचान थी । इस्लामी एवं ब्रिटिश के शासन काल में भी हिन्दू राजाओं ने इस पहचान को टिकाए रखा था । वर्ष 1976 के आपातकालीन समय (इमरजेंसीमें जब विरोधी पक्ष कारागृह में बंद थातब इंदिरा गांधी ने असंवैधानिक पद्धति से 42वीं बार संविधान सुधार कर भारतीय संविधान में ‘सेक्युलर’ एवं ‘समाजवाद’ शब्द घुसेड दिए । ‘सेक्युलर’ शब्द की अब तक कोई भी अधिकृत व्याख्या नहीं की गई हैपरंतु ‘सेक्युलर’पन के नाम पर हिन्दू बहुल भारत में हिन्दू ही असुरक्षित हो गए हैं । यदि संविधान सुधार कर भारत को ‘सेक्युलर’ घोषित किया जा सकता हैतो अब भी संविधान में सुधार कर भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्यों नहीं किया जा सकता है वर्ष 1947 में धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ । यदि उस समय भारत के मुसलमानों को इस्लामी सिद्धांत के आधार पर ‘पाकिस्तान’ मिलातो हिन्दुओं के लिए भारत हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए थापरंतु वह नहीं हुआ । यह चूक अब सुधारनी चाहिए ।

4. हिन्दू राष्ट्र पिछडा नहींअपितु समृद्धशाली : ‘भारत हिन्दू राष्ट्र होना अर्थात एक कदम पीछे जाने समान है’ऐसा बताया जाता हैपरंतु इसमें थोडा भी तथ्य नहीं प्राचीन भारत में सनातन वैदिक हिन्दू धर्म को राजाश्रय होने से यह राष्ट्र ऐहिक (व्यावहारिकएवं पारमार्थिक (आध्यात्मिकदृष्टि से प्रगति पथ पर थे । इसी लिए सुसंस्कृत एवं समृद्ध समाजउत्तम वर्णव्यवस्थाआचारविचारों की शुद्धि एवं आदर्श कुटुंब व्यवस्थाइन सभी बातों की निर्मिति इस हिन्दू धर्माधिष्ठित राष्ट्र में हुई थी । एंगस मेडिसन नामक विदेशी अर्थतज्ञ के अनुसार 17वीं शताब्दी में वैश्विक व्यापार में भारत के अकेले का योगदान लगभग 25 प्रतिशत तक था । तब भारत ‘सेक्युलर’ नहीं थापरंतु वैभव के शिखर पर था । इसलिए धर्माधिष्ठित व्यवस्था ही हिन्दू राष्ट्र की नींव होगी ।

5. धर्माचरण ही धर्मराज्य की (हिन्दूराष्ट्र कीनींव सर्व समाज धर्मनिष्ठाराष्ट्रनिष्ठाकर्तव्यभावनानैतिकताचारित्र्यसंपन्नता इत्यादि गुणों से युक्त होनायह आदर्श समाजव्यवस्था का उद्देश्य है । उसके लिए धर्म महत्त्वपूर्ण घटक हैकारण धर्म के आधार पर ही मनुष्य का अभ्युदय साधा जाता हैअर्थात लौकिक एवं पारमार्थिक जीवन उन्नत होता है एवं मोक्षप्राप्ति होती है । इसलिए धर्माधिष्ठित व्यवस्था ही लोगों का कल्याण साधने वाली होती है ।

भौतिक विकास की दृष्टि से भी धर्म महत्त्वपूर्ण है आज ‘मेट्रो’, ‘मॉल’, ‘स्मार्ट सिटी’अर्थात विकासभौतिक विकास का ऐसा चित्र निर्माण किया जा रहा है । भौतिक विकास के कारण ‘मेट्रो’ एवं ‘मेट्रो’ के अत्याधुनिक रेलवे स्थानक मिलेंगेपरंतु ‘कामक्रोधलोभमोहमद एवं मत्सर इन षड् रिपुओं पर कैसे विजय प्राप्त करनी है’इस विषय में विकास के तत्त्वज्ञान में कहां मार्गदर्शन है मेट्रो में नियम तोड़कर किया जाने वाला अयोग्य वर्तन एवं महिलाओं का विनयभंग जिन षड् रिपुओं के कारण होता हैमेट्रो का व्यवस्थापन उनका निर्मूलन कैसे करेगा सीता का अपहरण करने वाले रावण की लंका यद्यपि सोने की थीतब भी आज लाखों वर्ष के उपरांत भी लोग लंका को नहींअपितु रामराज्य को ही आदर्श मानते हैं । धर्म एक ऐसा सूत्र हैजो कामक्रोधलोभ आदि षड् रिपुओं पर विजय पाना सिखाती है । इसलिए केवल भौतिक विकास साध्य करके नहींअपितु लोगों को धर्म सिखाकर नीतिवान बनाना भी उतना ही आवश्यक है । वास्तव में धर्म ही राष्ट्र का प्राण है !

6. प्रकृति अनुसार साधना करने की स्वतंत्रता देनेवाला व्यापक हिन्दू धर्म हिन्दू धर्म अर्थात हिटलरशाही अथवा तानाशाहीऐसा भी दुष्प्रचार किया जाता है । प्रत्यक्ष में हिन्दू धर्म समान स्वतंत्रता अन्य किसी भी पंथ में नहीं । बायबल में लिखा है कि ‘ईसाई मोजेस द्वारा बताई 10 आज्ञाओं के अनुसार ही (‘कमांडमेन्ट्स’ के अनुसार हीआचरण करें ।’ इस्लाम में कुरान की आज्ञा अनुसारआचरण करने के लिए कहा गया है । इसके विपरीत संपूर्ण गीता बताने के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, ‘विमृश्यैतद् अशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ।’ (श्रीमद्भगवद्गीताअध्याय 18, श्लोक 63) अर्थात ‘गीता में बताए गए धर्मज्ञान पर पूर्णरूप से सोचविचार कर जैसी तुम्हारी इच्छा होवैसा करो ।’ इससे यह स्पष्ट होता है कि हिन्दू धर्म में किसी भी बात का दुराग्रह नहींअपितु प्रत्येक व्यक्ति को उसकी प्रकृति अनुसार साधना करने की स्वतंत्रता है ।

7. हिन्दू राष्ट्र संकुचित नहींअपितु विश्वकल्याणकारी ! : वास्तव में सनातन धर्म सार्वभौमिकअर्थात सर्वभूमि के लिए कल्याणकारी हैकारण उसके सिद्धांत वैश्विक (यूनिवर्सलहैं । भारतीय ऋषिपरंपरा ने विश्वशांति के लिए यज्ञयाग किए थे तथा आज भी हिन्दू धर्म के संत केवल अपने समाज अथवा प्रांत के लिए ही नहींअपितु विश्व की शांति का संकल्प कर विश्व शांति यज्ञ करते हैं । धर्मसम्राट करपात्री स्वामी जी ने ‘धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो !’, यह घोषणा करते हुए ‘विश्व का कल्याण हो !’, ऐसा उद्घोष किया था । इसलिए हिन्दू धर्माधिष्ठित राष्ट्र से ही विश्व शांति एवं विश्व कल्याण साकार हो सकता है ।

आज सच्चिदानंद परब्रह्म डॉआठवलेजी समाज को यही शिक्षा दे रहे हैं । इससे अब हमें ध्यान में आ ही गया होगा कि हिन्दू राष्ट्र कट्टरवादी न होकर सात्त्विकआदर्श एवं धर्माधिष्ठित होगा । ऐसे हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में सम्मिलित होनाकालानुसार धर्मकार्य ही है ।

– श्रीचेतन राजहंसप्रवक्तासनातन संस्था

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.