जिस तिरंगे के लिए लाखो लोगों ने अपने आपको बलिदान कर दिया

जिस तिरंगे को अपनी आंखों के सामने खुले आकाश की स्वछंद हवा में फहरते हुए देखने का सपना लिए लाखों लोग इस दुनिया से चले गए

आज उस तिरंगे का अपमान करके तुमने देश का अपमान तो किया ही हैं , साथ में तुमने अपने हुतात्म हुए शहीदों का भी अपमान कर दिया ।

तुमने उनके सपनों को तार – तार कर दिया । तुमने उनकी जवानी का अपमान कर दिया , जो उन्होंने आज के दिन ( गणतंत्र दिवस ) के लिए जिसे कुर्बान किया था ।

अरे किसान तो वह था जिसने हरित क्रांति के आह्वान पर इतना अनाज पैदा किया कि आज देश अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं ।

तुमने आज हर उस नागरिक के सीने में आग और आंखों में आंसू भर दिए हैं जो इस देश की आन बान और शान के लिए ही जीता और मरता हैं ।

थूं हैं ऐसे किसान आंदोलन पर …. थूं हैं ऐसे किसानों पर….

जो हिंसा से अपनी बात मनवाएँ वह किसान नही होता , किसान तो वह होता हैं जो बिना हिंसा किए ही अपनी मेहनत से धरती का सीना चीर कर सोना उगाता हैं ।

आज तुमने वो किया जो भारत के दुश्मन करने की सोचते हैं ,

आज तुमने वह काम किया हैं , जिसे करने की आग दुश्मन देश अपने सीने में जलाकर रखते है…

आज तुमने वह किया हैं जिसे करने का सपना दुश्मन सालो से लिये बैठा हैं ….

आज तुमने वह किया हैं , जो करने की हिम्मत एक आतंकी की भी नही होती …

अरे होंगी सरकार से तुम्हारी नाराजगी ….

अरे होगा कानून गलत …

लेकिन ड्यूटी कर रहा वह पुलिस का जवान तो गलत नही था , जिसे तुमने बेरहमी से पीटा हैं…

लाल किले की प्राचीर पर फहराता तिरंगा तो गलत नही था….

जिसे तुमने लोगों की ठोकरों में फेंका वह तिरंगा तो गलत नही था …

आज तुमने जो किया अगर उसे कोई और कर देता तो माँ कसम जिंदा ही उसे काट देता लेकिन तुम्हे कहूँ तो क्या कहूँ मैंने तो उम्मीद ही तुमसे लगा ली थी इस देश की आन बान और शान की रक्षा की ….

लेकिन…

कांटो का क्या कसूर , जब फूल ही घयाल कर दे

दुश्मन का क्या कसूर , जब रखवाले ही लहूलुहान कर दें ।

( दुःखी मन की पीड़ा , शब्दों की मर्यादा की बात हैं नही तो एक देशभक्त के मन की पीड़ा क्या हैं ये आप ऊपर लिखे शब्दो से ही समझ जाएंगे । )

सुरेंद्र हिन्दू ???

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