कुछ दिन पहले संसद के दोनों पटल पर सोच विचार कर बनाए गए कृषि कानूनों की बलि दे दी गई। मजे की बात यह है कि जिन्होंने कृषि कानूनों का अंदर समर्थन किया और बाहर विरोध किया वे भी तिलमिलाए हुए हैं कि उन्हें बोलने नहीं दिया गया।
सब इस बात पर एकमत होंगे कि अगर मन की मुराद पूरी हो रही हो तो बोलने की क्या जरूरत है।
परंतु परेशान सुबह इसका मतलब हाथी निकला परंतु पूँछ अब भी किसी छेद में फंसा हुआ है।
ये तीनों कृषि कानून दरअसल हर राजनीतिक दल के प्रच्छन्न एजेंडे का हिस्सा था परंतु सब यह सोचकर चुप थे कि पास हो गया और जनता खुश हो गई तो कोई बात नहीं अगर जनता नाराज हो गई तो ठीकरा फूटेगा सत्ता पक्ष के सिर पर।
तो मोदी ने सोच विचार कर आ बैल मुझे मार नहीं बल्कि बैल तू वहीं रुक मैं आता हूं की शैली में इन तीनों कृषि कानूनों का विनाश किया और अपने लिए आगे के रास्ते में कुछ और कांटे बो दिए।
इसमें पहला कांटा तो वही है जिसे हटाने की कोशिश में तीनों कानूनों की हत्या की गई। कृषि कानूनों के निरस्त होने के बाद ये सारे तथाकथित किसान अब एमएसपी पर एक कानून लाने के लिए अड़ गए हैं। मतलब जिन कांटो को हटाने के लिए यह कोशिश की गई वे कांटे भाजपा की राहों में और मजबूती से गड़ गए। और सरकार की इस अबूझ चाल से ताकत पाई हुई यह आंदोलनजीवियों की भीड़ अब अधिक उत्साह से धरना देगी।
इसका दूसरा प्रभाव है कि मोदी के अड़ियल रुख के कारण संसद द्वारा पारित कानूनों के स्थाई होने की उम्मीद लगा रहे और मोदी की बातों पर भरोसा रख रहे उनके समर्थक अब वह बिंदु ढूंढ रहे हैं जिससे वे साबित कर सके कि मोदी ने गलत नहीं किया। उनमें से कुछ है कि शेर झपट्टा मारने के लिए दो कदम पीछे चलता है आदि आदि।
अगला पश्चात प्रभाव यह हो सकता है कि सरकार द्वारा पारित सभी कानूनों के खिलाफ ऐसी धरना पार्टी बन जाए जो बस विरोध में लगा रहे ।
उससे भी बढ़कर यह समस्या की आएगी कि भाजपा द्वारा पारित कानूनों पर उनके कट्टर समर्थक भी इसलिए अपना मत नहीं रख पाएंगे कि कहीं इस कानून की भी वापसी तो नहीं हो जाएगी।
पश्चात प्रभाव यह भी होगा कि विदेशी निवेशकों में मोदी के बातों का वजन हल्का हो जाएगा। सब ये सोचने लगेंगे कि हमारे लिए जो वादे इस सरकार ने किए हैं क्या पता धरनाजीवियों के तुष्टीकरण के लिए उन समझौतों को भी वापस ना होना पड़े।
और आखिरी रहता है आखिरी साइड इफेक्ट यहअभी हो सकता है कि इस आपाधापी में 14 महीनों के बाद वापिस लिए गए किसी कानूनों की तुलना किसी माफी नामे से भी की जा सकती है क्योंकि इन दक्षिण पंथी राजनीतिक थिंक टैंकों के पास तो अपने पूर्वजों पर लगे आरोपों को मिथ्या साबित करने का समय हीं नहीं और इसका कारण थिंक टैंकों के पास अपने सिद्धांतों पर टिके रहने के बजाय कॉन्ग्रेस की लापरवाही और गलत नीतियों की वजह से फिसलती हुई जमीन पर कब्जा करने की जल्दबाजी है।
ये विचारधारा अब प्रोफेशनल हो गई है और अतीत से ज्यादा अपने वर्तमान पर फोकस करने लगी है। यदि अपने अतीत को किसी अन्य के द्वारा लांछित करने की कोशिश का उचित विरोध ना किया जाए तो निश्चित रूप से आप न तो उज्जवल वर्तमान के हकदार हो सकते हैं और ना स्वर्णिम भविष्य के ।
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