प्रतिदिन सुबह में समाचार पत्र में एक बड़ी खबर होती कि आज फिर किसी देश में आतंकी हमला हुआ और बेकसूरों की जान चली गयी।

ताजा मामला आस्ट्रिया की राजधानी वियना में हुए आतंकी हमले का है।आतंकवादियों ने वियना के 6 अलग अलग जगहों पे गोलीबारी की और कई मासूम लोगो को मौत के घाट उतार दिया। यह बिल्कुल भारत में 2008 में हुए मुम्बई हमलों की तरह है जो भारत की धरती पे अब तक का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था और 250 से ज्यादा लोगों की जानें गयीं थी। अभी कुछ दिनों पहले ही यूरोप का ही देश फ्रांस में हुए आतंकी हमलों की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि वियना में हुए इस हमले ने पूरे विश्व के लोगों को दहशत में डाल दिया।

अफगानिस्तान , श्रीलंका, स्वीडन , फ्रांस, आस्ट्रिया ये वो देश हैं जिन्होंने एक धर्म के शरणार्थियों को खुले मन से स्वीकार किया था और उन्हीं शरणार्थियों ने ही इन देशों का धर्म के नाम पर जीना हराम कर दिया।

इतिहास गवाह है कि कट्टरपंथियों ने धार्मिक कट्टरता के आगे कुछ सोचा नहीं। चाहे काबुल में सिक्खों पर हमले हो, बेंगुलुरू और दिल्ली में दंगे हो, पाकिस्तान में हिंदुओ का नरसंहार हो , अमेरिका ,ब्रिटेन, श्रीलंका दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं जो इनके आतंकवाद से पीड़ित ना हो। जिन देशों ने भी इसको आसरा दिया धर्म के नाम पर उन्होंने उनकी जिंदगी ही छीन ली।

क्या इन कट्टरपंथियों से कभी शांति की उम्मीद की जा सकती है जवाब है -नहीं। फ्रांस में हुए हमले के के जिम्मेदार आतंकवादियों के समर्थन में जिस तरह से विश्व के सभी मुस्लिम देश खड़े हो गए , वह इस बात का सबूत था कि दुनिया भले ही मानवता के विकास के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ने को तैयार हो लेकिन जेहादी मानसिकता वाले ये कट्टरपंथी निर्दोष लोगों के जान लेने के अलावे कुछ नहीं सोच सकते।

आज विश्व को जरूरत है कि वो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकसाथ आये। और इन जेहादियों के सख्ती से निपटे। हम चीन का उदाहरण ले सकते हैं जिसने अपने देश में कट्टरपंथी पे पूरा नियंत्रण रखा है और इसके परिणामस्वरूप वो आतंकवाद से काफी हद तक बचा हुआ है।

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