~ अवतंस कुमार

लोग कहते हैं पत्थरों पर निशान बनाना मुश्किल है
पर मैंने पत्थरों पर लकीरें खिंची देखी हैं
प्रकृति की कलाकारी भी देखी है पत्थरों पर।

एक सधे हुए संगतराश की तरह
लम्हा-दर-लम्हा, चपेट-दर-चपेट, रेत-दर-रेत
सदियों की कशमकम और जद्दोजहद के बाद
जो मनभावन मंज़र हवाओं ने तराशे हैं पत्थरों पर
उनको देखा है मैंने।

उसी संगतराश को
पानी की लहरों और थपेड़ों से
अनगिनत बुतों को तराशते भी देखा है।
बाबा भोले की प्रतिमा से लेकर समुद्री पायरट
और शाही महल से लेकर शांति स्तूपों तक
सबकी छवियों को गढ़ते भी देखा है।

धातुओं की परतों से सीपते पानी से सनी हुई
रंग-बिरंगियी कूचियों से
काढ़ी हुई मनभावन सतरंगी तस्वीरें
या फिर क़ुदरती धागों की महीन कशीदाकारी भी
उन्हीं पत्थरों पर देखी है।

पत्थर सिर्फ़ मूढ़ पत्थर नहीं होते
पत्थरों में भी जान होती है।
एक कुदरती कैन्वस है पत्थर
माज़ी का पन्ना और कहानियों की किताब भी।
हमारे अतीत का आइना भी है पत्थर
और सत्यम शिवम् सुंदरम भी।


मैंने पत्थरों पर लकीरें खिंची देखी हैं
और देखी है प्रकृति की कलाकारी भी पत्थरों पर।

(Inspired by the rocks of the Pictured Rocks National Lakeshore, Munising, Michigan, 06 July, 2017)

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