‘कश्मीरी हिन्दू विस्थापन दिवस’के उपलक्ष्य में ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद !

वर्ष 1990 में कश्मीर में हिन्दुओं की सामूहिक हत्याएं हुईं । सरकार उसे ‘नरसंहार’ के रूप में स्वीकार करें; इस नरसंहार के लिए उत्तरदायी सभी दोषियों को कठोर दंड दिया जाए; इस नरसंहार में वहां के धर्मांध मुसलमानों ने पीडित हिन्दुओं की भूमि हडप ली, वह हिन्दुओं को वापस दिया जाए और विस्थापित हिन्दुओं को कश्मीर में पुनः आकर रहने के लिए विशिष्ट भूमि दी जाए, हमारी ये मांगें केंद्र सरकार के पास हैं । दुर्भाग्यवश वर्तमान केंद्र सरकार भी इस नरसंहार के लिए जो उत्तरदायी थे, उनका मन जीत लेने में व्यस्त हैं; परंतु हम कश्मीरी हिन्दू झुकेंगे नहीं और हम हमारी सभी मांगें पूरी होनेतक लडते ही रहेंगे ।, यह स्पष्ट प्रतिपादन ‘रूट्स इन कश्मीर’ के संस्थापक श्री. सुशील पंडित ने किया । वे ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ की ओर से आयोजित ‘19 जनवरी : कश्मीरी हिन्दू विस्थापन दिवस – कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय कब मिलेगा ?, इस विशेष ‘ऑनलाइन’ संवाद में ऐसा बोल रहे थे । हिन्दू जनजागृति समिति के देहली प्रवक्ता श्री. नरेंद्र सुर्वे ने श्री. सुशील पंडित के साथ संवाद किया । 19 जनवरी 1990 को धर्मांधों ने मस्जिदों से ‘हिन्दुओं, कश्मीर से चले जाओ’ के नारे देकर हिन्दुओं को कश्मीर से भगा दिया । एक रात में ही कश्मीर के हजारो हिन्दुओं की हत्याएं हुईं और लाखों हिन्दू विस्थापित होकर अपना सबकुछ खो बैठे । इस क्रूर घटना को बीते हुए 31 वर्ष बीत गए परंतु अभी तक कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय नहीं मिला है । इस उपलक्ष्य में इस ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद का आयोजन किया गया था ।

श्री. सुशील पंडित ने आगे कहा कि ‘कश्मीरी हिन्दुओं की हत्याएं करनेवाले अभी जीवित हैं, उन पर किसी भी न्यायालय में अभियोग नहीं चल रहा है । जो भी लोग कश्मीरी हिन्दुओं के दोषी हैं, उन पर अभियोग प्रविष्ट होने चाहिए थे और उनकी संपत्ति जब्त होनी चाहिए थी; परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे अभीतक की केंद्र सरकारों ने उनका तुष्टीकरण कर उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई । कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों के विषय में कुछ बोलना ही नहीं है और उन्हें न्याय देना ही नहीं है, ऐसी व्यवस्था हमने चुनी है । पंथनिरपेक्षता के नाम पर हमने पाखंडी व्यवस्था स्वीकार की है । इसमें कई राजनेता, न्यायतंत्र, प्रसारमाध्यम, बुद्धिजीवी लोग, नागरिक मंच और नौकरशाह सम्मिलित हैं । वर्ष 2017 में कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने हेतु हमने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की थी; परंतु ‘अब इस याचिका को बहुत विलंब हो चुका है । अब इसके साक्षी और प्रमाण कौन खोजेंगे ?’, ऐसे कारण देकर सर्वोच्च न्यायालय ने यह याचिका अस्वीकार की । भले ही ऐसा हो; परंतु इसी वर्ष गांधी हत्या का न्यायालयीन अभियोग पुनः आरंभ किया गया, साथ ही दोषी आतंकियों के लिए मध्यरात्रि में भी न्यायालय में अभियोग चलाए गए हैं, यह खेदजनक है । देश के न्यायतंत्र और राजनीतिक व्यवस्थाओं ने देश की पंथनिरपेक्षता संकट में पडने के भय से कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय दिलाने से वंचित रखा है ।’

रमेश शिंदे,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.