जब हम अपने अवतारों, जैसे श्री राम और श्री कृष्ण के लिए अगाध श्रद्धा और भावना रखते हैं और उनके सम्मान के लिए खड़े रहते हैं, तो हम उप-महाद्वीप पर इस्लामी आक्रमणों के विरुद्ध खड़े होने वाले उन महान योद्धाओं के लिए के बलिदान को इतिहास से मिटाने कैसे दिया?   

क्या मेवाड़ के महाराणा, आसाम के राजा, विजयनगर साम्राज्य, सीख गुरु, मराठा राजा इत्यादि योगदान हमारे अवतारों से कहीं कम है? 

यदि श्री राम ने मर्यादा की नीतियों पर चलना सिखाया, श्री कृष्ण ने कर्मयोग का पथ दर्शाया, तो क्या हमारी स्वाधीनता और हिन्दू धर्म के हितार्थ अदम्य साहस का आदर्श स्थापित करना क्या किसी तरह भी कम है? 

क्यों हम महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज और गुरु गोबिन्द सिंह जी को अवतार ना मानें जो हमें कष्ट और यंत्रणा के सन्मुख निर्भीकता और साहस से लड़ने का जीवनमूल्य सिखाने ही पृथ्वी पर आए थे! 

अपने धर्म, जन्मभूमि और स्त्रियों के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त होने से अधिक पवित्र, सुंदर और सम्मानजनक क्या है?   

जिस दिन हिन्दू समाज को हमारे महान योद्धाओं जिन्होंने इस्लामी आक्रांताओं के विरुद्ध खड्ग उठाई के बलिदान का महत्व ज्ञात होगा, उस दिन ही हमारे सनातन कुल और राष्ट्र का उत्थान संभव है। 

जिस दिन हमारा हिन्दू समाज तथाकथित गंगा जामुनी तहज़ीब के अभिशाप को त्याग कर अपने स्वाभिमान की गर्जना से स्वयं को और पूरे विश्व को अवगत करवा देगा कि हमारे लिए सर्वोच्च आदर्श केवल अपने सनातन हिन्दू धर्म की रक्षार्थ जीवन और बलिदान है, तत्क्षण ही हमारे दुख दूर हो जाएंगे।   


जिस दिन हम सम्पूर्ण विश्व में ये घोषित कर देंगे, कि हम हिंदुओं ने कभी भी किसी का धन, स्त्री या भूमि हस्तगत करने के लिए आक्रमण नहीं किया किन्तु हमने किसी भी आक्रांता को अपनी भूमि का बलात अधिग्रहण नहीं करने दिया, हम मुक्त हो जाएँगे।

और ऐसा तभी हो पाएगा जब हम अपने योद्धाओं को अवतार मानें, जिन्होंने आत्म-सम्मान और स्वाधीनता के आदर्श स्थापित करने के लिए इस धरा पर जन्म लिया और अपने आदर्शों की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।   

प्रताप, शिवाजी महाराज और श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी साधारण मानव नहीं थे। 

उन्होने हमें बताया कि ये शरीर, अस्थि, मांस, मेद – मज्जा सब नश्वर है किन्तु जो अमर है वो है प्रेम।

महिलाओं के लिए – बच्चों के लिए और अपने धर्म के लिए प्रेम। 

वो देवता ही तो थे जो हमारे बीच अवतरित हुए और जिन्होंने हमें प्रेम – द्वाभिमान और स्वाधीनता के संसार से हमारा परिचय करवाया। 

और इसीलिए उन्हें हमें देवताओं कि भाँति मान कर उनका पूजन करना चाहिए।

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