पूर्व का वैभव प्राप्त करने के लिए श्री विष्णु देवता का अनुसरण कर किये जाने वाले इस व्रत में शेष नाग और यमुना जी का भी पूजन किया जाता है। किसी के द्वारा बताए जाने पर या अनंत का धागा प्राप्त होने पर किए जाने वाले इस व्रत के विषय में अध्यात्म शास्त्रीय जानकारी इस लेख के माध्यम से जान कर लेंगे। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का व्रत 9 सितंबर के दिन किया जाएगा।
1. तिथि : भाद्रपद शुद्ध चतुर्दशी इस तिथि को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है।
2. अर्थ : अनंत का अर्थ है जो कभी भी अस्त ना हो जो कभी भी समाप्त न हो और चतुर्दशी अर्थात चैतन्य रूपी शक्ति।
3. उद्देश्य : प्रमुखता से यह व्रत पूर्व वैभव प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
4. व्रत करने की पद्धति : इस व्रत के प्रमुख देवता अनंत अर्थात श्री विष्णु होते हैं तथा शेष और यमुना यह कनिष्ठ देवता है। इस व्रत की कालावधि 14 वर्ष है। इस व्रत की शुरुआत यदि कोई बताता है तो किया जाता है या फिर अनंत का धागा आसानी से मिलने पर किया जाता है और फिर यह व्रत उस कुल में चालू ही रहता है। अनंत की पूजा में 14 गांठ किए हुए पीले रेशमी धागे (लाल + पीला मिलकर बना रंग) की पूजा की जाती है पूजा के पश्चात धागे को यजमान के दाएं हाथ में बांधा जाता है। चतुर्दशी पूर्णिमा युक्त होने पर विशेष लाभदायक होती है।
5. अनंत व्रत के दिन का महत्व : अनंत का व्रत करने का दिन अर्थात देह की चेतना स्वरूप क्रियाशक्ति श्री विष्णु रूपी शेष गणों के आशीर्वाद से कार्यरत करने का दिन। ब्रहांड में इस दिन श्री विष्णु के पृथ्वी जल और तेज स्तर की क्रिया शक्ति रुपी लहरी क्रियाशील रहती हैं। श्री विष्णु तत्व की उच्च अधिष्ठित लहरी सर्वसामान्य भक्तों को ग्रहण करना संभव न होने के कारण कम से कम कनिष्ठ रूप की लहरियों का सर्वसामान्य को लाभ होने के लिए इस व्रत की हिंदू धर्म में योजना बनाई गई है।
शेष देवता का कार्य :शेष देवता श्री विष्णु तत्व से संबंधित पृथ्वी, जल और तेज इन लहरी का उत्तम वाहक जाने जाते है; इसलिए शेष को इस विधि में अग्रगण्य स्थान दिया है। इस दिन ब्रह्मांड में कार्यरत क्रिया शक्ति की लहरें सर्प आकार के रूप में होने के कारण शेष रूपी देवता की पूजा के विधान से यह लहरी उसी रूप में जीव को मिलने में सहायक होती है।
चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
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