त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण, कलयुग में कबीर और विवेकानंद

महापुरुष जन्म लेते हैं सदियों में, सदियों तक रहती उनकी सुगंध

19वीं सदी ऋणी स्वामी जी की, जिनने अध्यात्म का मिटाया अंतर्द्वंद 

भारतीय वेदांत दुनिया में फैला कर, धर्म पताका की बुलंद

भिक्षुक और सपेरों का कलंक मिटाया, स्वाभिमान से कराया अनुबंध

40 वर्ष की छोटी सी उम्र में, सदियों से फेले अंधियार मिटाएं

आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं

मां धार्मिक ग्रहणी थी, पिता थोड़े विलासी और नास्तिक वकील

दादा साधु हो चुके थे, दुविधा ग्रस्त थी सभी धार्मिक दलील

ईश्वर को जाने या माने, संशय की चुभी हुई थी कील

पिता की असमय मृत्यु और आपकी नास्तिकता से, परिवार ने की परेशानी फील

ब्रह्म समाज के संपर्क में आये, पर ज्ञान की जल ना सकी कंदील

आखिर रामकृष्ण की संगत पाकर, कुछ कुछ होने लगे सुशील

उनके ईश्वर देखने की अप्रतिम घोषणा से, विश्वास के सारे दीप जगमगाए 

आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं

30 वर्ष की अल्पायु में ही, हुए परमहंस के उत्तराधिकारी

नवजागरण के व्याख्यानों पर, जुड़ने लगी भीड़ भारी 

धर्म संसद होनी थी शिकागो में, दुनिया कर रही थी तैयारी 

गुलाम था भारत अब तक, संभव नहीं थी भागीदारी 

खेतड़ी महाराज ने खर्च उठाया, भेजने की ली जिम्मेदारी 

समय मिला दो मिनट बमुश्किल, विषय मिला शून्य उपहास कारी

बहनों भाइयों के प्रथम संबोधन से ही, तालियों की गूंजी किलकारी 

चौबीस घंटे अनवरत बोले, समय भूल गए अमेरिकी नर नारी 

कहा जैसे नदी मिलती समुद्र से, कई कई रास्तों की करके सवारी

सभी धर्म पहुंचाते ईश्वर तक, पद्धति पृथक पर नियति एक हमारी 

किंतु सनातन धर्म की श्रेष्ठता को, प्रमाणिकता से बताया मंगलकारी

दुनिया ने माना लोहा भारत का, 18 ही दिन अंतिम वक्ता की रही जवाबदारी 

चीन, जापान से यूरोप के कई देशों तक, धर्म पताका फहरा कर आए

आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं

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