#ये_है_इतिहास_हमारा

ठाकुर का कुआं , ठाकुर की हवेली जैसी प्रेमचंद की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी ,
अत्याचारी ठाकुर , चरित्रहीन ठाकुर , क्रूर निर्दयी ठाकुर के किरदार तो आपको बॉलीवुड भी आए दिन दिखाता ही रहता है ,
आज मै आपको एक ठाकुर की कहानी नहीं हकीकत सुनाता हूं

19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौरी गढ़वाल कस्बे में जसवंत सिंह रावत नाम के बच्चे का जन्म हुआ ,
घर की माली हालत बहुत खराब थी , जमीनों के नाम पर मात्र एक पट्टा जमीन थी और पहाड़ों में इतनी जमीन में सिर्फ खाने लायक ही उगता है कमाने लायक नहीं ,
जसवंत के गांव के आस पास के काफी लोग सेना में थे , 10 साल का जसवंत जब इन सैनिकों को घर आते देखता तो उनकी वर्दी उसे आकर्षित करती थी तभी से उसे सेना में जाने का जुनून ऐसा चढ़ा की मात्र 17 वर्ष की आयु में
भर्ती होने पहुंच गए हालांकि तब उन्हें वापस भेज दिया , किन्तु जुनून फिर भी कम ना हुआ और फिर 19 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह भारतीय सेना की गढ़वाल रेजिमेंट में भर्ती हुए ,
ट्रेनिग पूरी होते ही इनकी प्रथम नियुक्ति अरुणाचल प्रदेश के निकट चीनी सीमा पर कर दी गई उसी समय भारत चीन का सीमा विवाद जोरों पर था
और फिर 17 नवंबर 1962 को चीनी सेना ने भारतीय सीमा में घुसपैठ के इरादे से भारतीय पोस्ट पर हमला बोल हमला इतना भीषण था कि मौके पर तैनात गढ़वाल रेजिमेंट की 4 बटालियन को अच्छे हथियार और उपकरण ना होने के कारण वापस आने के निर्देश दिए गए पर भारतीय सेना के 3 जवान जसवंत सिंह , लांस नायक त्रिलोकी सिंह और गोपाल सिंह के अंदर के क्षत्रिय ने पोस्ट छोड़ने से मना कर दिया और भारत की रक्षा करने का प्रण लिया,
चीनी सेना के शुरुआती हमले को उन्होंने विफल कर दिया ग्रेनेडों से ही पूरी एक चीनी कम्पनी को ही ख़तम किया , चीनियों की मशीन गन छीन कर पूरे युद्ध की स्थिति ही बदल दी
72 घंटे तक ये 3 सैनिक विशाल चीनी सेना से लड़ते रहे और अपनी पोस्ट से एक इंच भी पीछे नहीं हटे , त्रिलोकी सिंह और गोपाल सिंह वीरगति को प्राप्त हुए इसके बाद भी जसवंत सिंह अकेले ही पूरी चीनी सीमा पर भारी पड़ रहे थे और 3 दिन के लंबे संघर्ष के बाद वो भी वीरगति को प्राप्त हुए ,
चीनी सेना इन 3 सैनिकों से इतना प्रभावित हुई की उन्होंने जसवंत सिंह का गला काट लिया और अपने देश के सैनिकों को दिखाने के गए की कैसे एक भारतीय वीर ने पूरी चीनी सेना को नेस्तनाबूद कर दिया
युद्ध विराम घोषित हुआ भारत सरकार ने जसवंत सिंह को उनकी अप्रतिम शौर्य और बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया हालांकि
कई सेना अधिकारियों के अनुसार जसवंत सिंह परमवीर चक्र के हकदार थे खैर उनकी वीरगाथाएं आज भी सेना के नए रंगरूटों में जोश भरने के लिए सुनाई जाती हैं
कहा जाता है कि
जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत चीन बॉर्डर की रक्षा करती है ,
भारतीय सेना में आज भी जसवंत सिंह रावत एक सैनिक के तौर पर कमीशन में हैं समय पर इन्हें छुट्टी मिलती हैं वेतन मिलता है
सीमा पर इनके नाम का एक मंदिर भी है। चीनी सेना आज भी उनके नाम से खौफ खाती है ।
बॉलीवुड के आभासी जगत के खलनायकी से परे वास्तविकता का एक ठाकुर ऐसा भी था जो अकेला ही पूरी चीनी सेना से भिड़ गया था 🙏

जसवंत सिंह और उनके 3 साथियों को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि

चीन तक ये संदेश पहुंचा दीजिए कि भारत की माताओं की कोख से अब तक लाखों जसवंत सिंह रावत जन्म ले चुके हैं जो पूरी सेना को लद्दाख में ही दफन करने की कुव्वत रखते है
जय हिन्द जय भारत
💪💪

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