🌹गुरु ग्रंथ साहिब जी सरंचना🌹
गुरु ग्रंथ साहिब जी तीन भाग में विभाजित हैं।
🏵️पहला भाग….गुरु साहिबानो की वैष्णव भक्ति की बानी अर्थात नारायण राम कृष्ण भक्ति की बानी।उसमे भी केवल छः गुरुओं की ही बानी है जबकि दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी शक्ति उपासक होने की वजह से अर्थात माता चंडी के भक्त होने के कारण उनकी बानी जिसे सिख ज्यादा पढ़ते है चौपाई साहिब,जाप साहिब, तव प्रसाद चौपाई,अरदास आदि सब दशम ग्रंथ में है।
🏵️दूसरा भाग…जिन भक्तों ने मोक्ष प्राप्त किया उनकी बानी।उन भक्तो की बानी है जिन्होंने पत्थर में भक्त धन्ना जी,मांस का काम करते हुए भी भक्त सदना जी,शरीर बेचते हुए भी गणका जी,सारा जीवन कुकर्म करते हुए भी अजामल जी,इस्लाम मजहब के होते हुए भी कबीर जी,अल्पायु के होते हुए भी प्रह्लाद जी ध्रुव जी आदि भक्तो को हरि चरण में निवास प्राप्त हुआ।
ध्यान देने की बात ये है कि भक्तो का उदहारण दिया गया है की कैसे कैसे भक्तो को भी हरि प्राप्ति होती है।
भगवान के उदहारण नहीं दिया गया है।कही नही कहा गया है की कैसे किसी को मोहम्मद मिले और कैसे किसी को जीसस मिले।
बल्कि भगवान राम कृष्ण विष्णु जी के लीलाओं के आधार पर जो उन्हे नाम दिए गए है वो नाम भी लिखे है ग्रंथ साहिब जी में जैसे धरणीधर,दामोदर, कमलापति, सारंगपाणी,रघुनाथ,रघुराई,गोपाल,मुरारी,गिरधारी आदि।
अकेले गुरु अर्जन देव जी अंग 1082 में भगवान कृष्ण जी के सहस्त्र नामो का वर्णन किए हैं।
🏵️तीसरा भाग….ग्रंथ साहिब जी में उनकी भी बानी सम्मिलित की गई है जो गुरु साहिबानों के अनुयायी थे।भारत की प्राचीन गुरु प्रथा के मानने वाले थे।जैसे आज प्रेमानंद जी,अन्निरुद्ध आचार्य जी,धीरेंद्र शास्त्री जी,देवकीनंदन जी आदि गुरुओं को उनके अनुयायियों ने श्रद्धा,प्रेम के वश में आकर भगवान कृष्ण,हनुमान जी ही बना दिए है।
वैसा प्रेम और श्रद्धा ग्रंथ साहिब जी में भट्टो की बानी में गुरु साहिबानो के प्रति देखने को मिलता है।
जैसे भट्ट कल सहर जी ने अंग 1391में गुरु अंगद जी को राजा जनक जी का अवतार बताया तो भट्ट मथुरा जी ने अंग 1409 में गुरु अर्जन देव जी की महिमा में कहा की जपियो जिन अर्जन देव गुरु,फिर संकट जोन गरब ना आयो।
अर्थात् जो भी गुरु अर्जन देव जी का नाम जपेगा उसे संकट नही आयेगा ना ही वो फिर गर्भ में आएगा।
तो भट्ट कलह जी ने अंग 1390 में गुरु नानक देव जी को भगवान विष्णु जी का ही अवतार बता दिया।
इन सबसे अलग, दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं दशम ग्रंथ जी में बचित्र नाटक में बताया की दस गुरु साहिबान भगवान श्री राम जी के पुत्रों लव और कुश जी के वंशज ही थे।
जबकि भाई गुरदास जी जिन्होंने गुरु अर्जन देव जी के कहने पर गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया था उन्होंने वाहेगुरु का अर्थ
व से विष्णु
ह से हरि
ग से गोबिंद
र से राम बताया।
और गुरु साहिबनो की भी गुरु रूप में ही उपमा की और कहा की कलयुग में दिव्य आत्मा मानवजाति के उद्धार के लिए परगट हुई है।
अब सिखो को समझना ये है की उनको अपने गुरु साहिबानो के आदेश पर चलना है या उनके अनुयायियों के🙏
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