रामराज्य
बयरु न कर काहू सन कोई
राम प्रताप विषमता खोई
दैहिक , दैविक , भौतिक तापा
रामराज्य नहीं काहुहि व्यापा
सब नर करहि परस्पर प्रीति
चलहि स्वधर्म निरत श्रुति निति
अलप मृत्यु नहीं कवनिहु पीरा
सब सुन्दर सब विरुज सरीरा
नहीं दरिद्र को दुखी न दीना
नहीं कोई अबुध न लच्छन हीना
सब गुणज्ञ पंडित सब ज्ञानी
सब कृतज्ञ नहीं कपट सयानी
महाकवि तुलसीदास
अर्थात रामराज्य की कुछ मुख्य मुख्य बाते ये है : अवैर , अर्थात आपसी लड़ाई झगडे का अभाव , विषमता सब वर्गो में समानता , सब प्रकार के दुखो ( दैहिक , दैविक , भौतिक ) का निवारण , प्रेम भाव , मेल जोल और भाईचारा , स्वधर्म या कर्त्तव्य पालन , स्वस्थ तथा दीर्घायु होना , तथा गुणवान और ज्ञानवान होना |
महात्मा गाँधी ने थोड़ा विस्तृत रूप में उस स्थिति को रामराज्य माना है , जब जनता और जन सेवक ( शासक या अधिकारी ) दोनों धर्म से सदाचार समपन्न हो | उनमे समता , सुचिता , स्नेह और बंधुत्व की भावना हो , बापू ने समय समय पर रामराज्य की व्याख्याए की है , उन में से कुछ नीचे दी जाती है |
1 ) रामराज्य का अर्थ है “प्रजा का शासन” , जिसका आधार है विशुद्ध नैतिक बल | अर्थात वह राज्य जिसमे धन ,वर्ण , जाती और संप्रदाय सम्बन्धी असमानताएं लुप्त हो जाती है | जिसमे धरती और शासन व्यवस्था जनता की होती है न्याय शीघ्र ,सच्चा और अपव्ययरहित होता है , और इसीलिए वह धर्म , भाषण और लेखनी की स्वतंत्रता होती है | इन समस्त सुविधाओं का मूलाधार होता है नैतिक संयम और नैतिक अनुशासन , जिसकी प्रेरणा का स्त्रोत होता है – अंतःकरण
2 ) हमारी शासन प्रणाली हमारे अनुकूल होनी चाहिए | वह ऐसी हो जिसका अंतर , बाह्य की अपेक्षा महान हो | मैंने इसे रामराज्य की संज्ञा दी है | अर्थात प्रजा का शासन जिसका आधार हो विशुद्ध नैतिक बल |
3 ) स्वराज्य का अर्थ है – स्वयं अपने ऊपर प्राप्त किया हुआ शासन इसका मतलब यह है की देश के आयात और निर्यात पर , सेना पर और अदालतों पर जनता का पूरा नियंत्रण |
4 ) मेरे सपनो का स्वराज्य गरीबो का स्वराज्य है | धनिको को जीवन की जो साधारण सुविधाएं प्राप्त है , वे सबको मिलनी चाहिए | स्वराज्य में राजा से लेकर प्रजा तक एक भी अंग अविकसित रहे ऐसा नहीं होना चाहिए | उनमे कोई किसी न हो , सब अपना अपना काम करे | कोई निरक्षर न रहे इसका मतलब सबके ज्ञान में वृद्धि , प्रजा में कम से कम बीमारिया हो , कोई भी दरिद्री न हो , परिश्रम करने वाले को बराबर पारिश्रमिक मिलता रहे , रामराज्य में जुआ , चोरी , मद्यपान , और व्यभिचार न हो | वर्ग विग्रह न हो , धनिक अपने धन का विवेकपूर्ण उपयोग करे भोग विलास की वृद्धि करने अथवा अतिशय संचय करने में नहीं , यह नहीं होना चाहिए की मुट्ठी भर धनिक मीनाकारी के महलो में रहे और हजारो लाखो लोग हवा और प्रकाश रहित कोठरियों में |
5 )मेरे नजदीक धर्मविहीन राजनीती कोई चीज नहीं है | धर्म के मानी वहमों और दकियानूसी धर्म नहीं , द्वेष करने वाला और सड़ने वाला धर्म नहीं , बल्कि विश्वव्यापी सहिष्णुता का धर्म | नीतिशून्य राजनीती सर्वथा त्याज्य है |
6 ) मै धर्म से भिन्न राजनीती की कल्पना नहीं करता , वास्तव में धर्म तो हमारे हर एक कार्य में व्यापक होना चाहिए
7 ) जो सच्चा पंचायती राज या लोकराज होता है , उसे लोगो के पास से पैसा तो लेना पड़ता है लेकिन उसका दाम दस गुना करके घरो में वापस चला जाना चाहिए | आज करोड़ो रुपये हमारे हाथ में आ गए तो करोड़ो ही हम खर्च कर डाले , ऐसा नहीं होना चाहिए | करोड़ो में से एक एक कौड़ी आहिस्ता आहिस्ता और फूंक फूंककर चले | एक कौड़ी भी हम खर्च करे तो वह देश की झोपड़ियों में जाती है की नहीं , मेरे लिए तो यही हिसाब रहता है | जो करोड़ो रुपया हिन्दुस्तान की झोपड़ियों में से खींचकर आता है , उनमे से कितना हम उनको वापस भेज सकते है |
8 )सच्चे प्रजातंत्र में हमारे यहाँ किसानो का राज्य होना चाहिए , अच्छा किसान बनना , उपज बढ़ाना , जमीं को कैसे तजा रखे यह सब जानना किसानो का काम होना चाहिए | रामराज्य में कोई मंत्री महलो में नहीं रहेगा | किसी मंत्री और सरकारी अधिकारियो को ऊँची तनख़्वाहे नहीं दी जाएगी | बड़े बड़े खर्चीले तथा बर्बादी भरे सरकारी महकमे नहीं रहेंगे |
9 ) लोकतंत्र में जहा , कोई सिद्धांत की बात नहीं है , और किसी कार्यक्रम को चलना है , वह अल्पमत को बहुमत की बात माननी होगी | बहुमत का अर्थ यह नहीं की वह एक व्यक्ति की भी राय को , यदि वह ठीक है तो तो भी दबा दे | एक व्यक्ति की राय को , यदि वह ठीक है , तो उसे बहुतो की राय की अपेक्षा अधिक महत्त्व देना चाहिए | सच्चे जनतंत्र के सम्बन्ध में यह मेरा मत है की उसमे रास्ता चलने वाला जो बोले वह भी सूना जाये |
10) स्वराज्य में प्रत्येक ग्राम चोरो और डाकुओ के रक्षा करने में समर्थ हो और प्रत्येक ग्राम अपने लिए आवश्यक अन्न वस्त्र पैदा करे | धनवान और श्रमजीवियोंमें परस्पर मित्रता हो , मजदुर उचित मजदूरी लेकर धनवान के यहाँ ख़ुशी से काम करे |
11) सभी स्वस्थ टैक्सों को टैक्स देने वाले के पास आवश्यक सेवाओं के रूप में दस गुना होकर लौटना चाहिए | श्रम के रूप में टैक्स देना राष्ट्र को शक्ति देना है | जहा मनुष्य स्वेच्छा से श्रम करते है ,वहा धन विनिमय अनावश्यक हो जाता है |
12 )स्वराज्य में सब प्रकार के अपराध रोग रूप है अतः उनका रोग की तरह ही उपाय होना चाहिए | अर्श वर्तमान सामाजिक संगठन की परिस्थिति के परिणाम है | अपराधियों को दंड दिलाने या उनसे बदला लेने की भावना नहीं होनी चाहिए , बल्कि उन्हें सुधर कर सुनागरिक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए |
13) स्वराज्य में अगर लोग आपस में ही अपने विवाडी निपटा ले तो तीसरा आदमी सत्ता कायम नहीं रख सकेगा | यह कौन कह सकता है की तीसरे आदमी का फैसला हमेशा ठीक ही होता है | सच्ची बात क्या है , यह दोनों पक्ष वाले ही जानते है | यह तो हमारा भोलापन और अज्ञान है जो हम यह मान लेते है की हमारे पैसे लेकर वह तीसरा आदमी हमारा इन्साफ करता है |
14) राज्य हिंसा का संगठित और केंद्रीय रूप है | व्याकरति की आत्मा होती है , परन्तु राज्य आत्मारहित मशीन है | उसे हिंसा से बचाया नहीं जा सकता , क्युकी उसकी उत्पत्ति ही हिंसा से है | सरकार पूरी तरह अहिंसाकर होने में कभी सफल नहीं हो सकती , क्युकी वह राज्य में रहने वाले सभी मनुष्यो की प्रतिनिधि है | आज मई ऐसे समाज के अस्तित्व की सम्भावना में विश्वास करता हु जो प्रमुख रीती से अहिंसक हो |
15) सच्चे जनतंत्र जी किसी भी प्रयोजन के लिए सेना पर आश्रित नहीं रहना चाहिए , साईनिक सहायता पर रहने वाला राज्य नाममात्र का जनतंत्रहो जाएगा | सैनिक शक्ति मस्तिष्क के स्वतंत्र विकास में बढ़ा डालती है , वह मनुष्य की आत्मा का विनाश करती है |
16) पुलिस के सदस्य अहिंसा में विश्वास रखने वाले हो अर्थात वे जनता के स्वामी नहीं , सेवक बने | जनता और पुलिस के पारस्परिक सहयोग द्वारा ही सुगमता से शांति व्यवस्था हो सकती है | पुलिस के पास हथियार होंगे , किन्तु उनका प्रयोग यदि कभी हुआ तो बहुत काम होगा और उनका पपुलिस सम्बन्धी कार्य लुटेरों और डाकुओ तक ही सीमित होगा |
17)जो लोग रिश्वत लेते है , वे अपने और अपने मुल्क के साथ गुनाह करते है , स्वराज्य में ऐसी गुनाहगारो के लिये कही स्थान नहीं होगा |
18) स्वराज्य होने पर गांव में नाट्यगृह , शालागृह , और सार्वजानिक सभागृह रहेगा , साफ पानी के लिए खास कुए और तालाब रखे जाएंगे | शिक्षा सबके लिए अनिवार्य होगी , प्रवृत्तियाँ सहकारी तौर पर चलायी जाएँगी किसी प्रकार का जाती भेद और छुआछूत का भाव नहीं रहेगा , न्यायपूर्ण मांगे प्राप्त करने के लिए अहिंसा पर अधिष्ठित सत्याग्रह और असहकार के मार्ग का लोग अवलम्बन करेंगे | ग्राम में एक ग्राम रक्षक | शासन पांच लोगो की ग्राम पंचायते चलाएंगी चुनाव ग्राम के बालिग स्त्री पुरुष मतदाता करेंगे |
19) शिक्षा हमारी प्राथमिक आवश्यकताओ की पूर्ति तथा मानव विकास में सहायक होनी चाहिए | शिक्षा केवल मानसिक व्यायाम या दिमागी अय्याशी न हो | ज्ञान रचनात्मक प्रवृत्तियों द्वारा दिया जाये | जीवनोपयोगी विषयो की ही शिक्षा दी जाए और उनमे उन आवश्यक दत्तकारियो से सहायता ली जाए , जिन्हे सिख कर गांव और नगर के आदमियों के जीवन में स्वावलम्बन का उदय हो | उनमे सहकारिता , सहयोग , लोकसेवा और सदाचार की हो , वे अपने जीवन का ध्येय ऊँचा रखे |
20) लोगो को अपना स्वास्थ्य ठीक रखने और बीमार न पड़ने की तथा यदि कभी संयोगवश बीमार पद जाए तो साधारणतया स्वयं ही इलाज कर लेने की शिक्षा दी जानी चाहिए | रोज रोज बीमार पड़ना अपमानजनक है | स्वास्थ्य के लिए शरीर की सफाई के अतिरिक्त घर बार , गली मुहल्लों , सड़को तथा बस्ती के आसपास की सफाई भी आवश्यक है | गांव में पशुओ के रहने की व्यवस्था पर भी पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है |
महात्मा गाँधी का रामराज्य धर्म प्रधान और रामराज्य है , उनका रामराज्य धर्म को संकुचित , संकीर्ण , स्नेह , और विश्व बंधुत्व की अमर तथा अमिट भावना पर आश्रित है | धर्म की प्राचीन परंपरा और ऋषि मुनि जनोचित व्याख्या भी यही है | दुर्भाग्य वश आज सार्वजानिक और सर्व सम्मत धर्म को संकीर्ण सम्प्रदायवाद की उपाधि दे दी गयी है , और इसी कारण वह त्याज्य समझा जाने लगा है और यही दुःख की बात है |
महात्मा गांधी और तुलसीदास जी का रामराज्य संकीर्ण नहीं था वह एक था और जिनके रामराज्य पूरा विश्व समाहित था | रामराज्य में ईश्वर के साक्षात् दर्शन नहीं होंगे परन्तु उसमे एक ऐसी भावना की धीमी ध्वनि होगी , जिसकी इस धर्मांध , स्वार्थान्ध संसार को आज सबसे अधिक आवश्यकता है | जरा सोच कर देखिये क्या हम इस दौर में उसी रामराज्य की ओर है ? या राम के भेष में रावणराज्य की ओर अग्रसर है |
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