वाराही विद्या: भारत के कल्याण के कुछ मन्त्र छिपे हैं इसमें।
आज चर्चा करते हैं इस रहस्यमयी विद्या की, जिसे साधने का मंत्र है:-

ऊँ नम: श्री वराहाय धरण्युद्धारणाय स्वाहा:!!

रत्न मंहगे होते हैं इसलिए चर्चा में है किन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अनेक ऐसी सस्ती वस्तुएं भी हैं जिनका लाभ अद्भुत है।
महर्षि भृगु कहते हैं “वाराह के कायिक अवशेष युक्त आभूषण युवा सन्तति की कवच की तरह नित्य रक्षा करते हैं। इसे किसी भी वार, तिथि मुहूर्त में धारण किया जा सकता है।”
प्राचीन काल में जीव उत्पत्ति से पहले, की बात है।
सूर्य से अलग होकर पृथ्वी ठंडी होने की प्रक्रिया में थी, गैसों की प्रबल रासायनिक क्रिया हुई, प्रचंड मेघ बने और बरसने लगे, अनवरत बिजलियाँ चमकने लगी, बरसात होने लगी। बिजलियों की चमक इतनी तीव्र थी कि लगता कोई विशाल सुनहरी चमकती आंखों वाला असुर ऊपर से यह सब कर रहा है। ऋषियों ने इस विध्वंसक प्राण को हिरण्याक्ष (स्वर्णिम चमकीली आँखों वाला) नाम दिया, जिसके प्रभाव से पृथ्वी जल में डूब गई थी और फिर वाराह अवतार हुआ था।
हिरण्याक्ष नामक असुर प्राण के कारण अनेक वर्ष तक पृथ्वी पर बरसात होती रही। उस वर्षा से पृथ्वी का समस्त स्थलीय भूभाग जलमग्न हो गया।
जब पृथ्वी की ऊपरी पट्टी ठंडी हो गई और भीतरी गर्मी को निकलने का मार्ग न मिला तब भीषण गर्जन के साथ उसमें ज्वालामुखी फूटे।
इन ज्वालामुखियों से निकली तप्त वायु का नाम वाराह प्राण था, उसके कारण पृथ्वी पर अनेक शताब्दियों तक प्रचंड तूफान(हवाएं) चले जिन्होंने पृथ्वी के एक चौथाई भाग को सुखा दिया, कहीं कहीं मरुस्थल भी बन गए, और जल महासागरों के गर्त में जमा हो गया।
यही वाराह अवतार का कथानक है। पृथ्वी पर उपस्थित प्राणियों में केवल शूकर ही ऐसा जीव है जो उस प्राण को सर्वाधिक धारण करता है, चाहे जंगली हो या पालतू, इनके समस्त अवयवों में प्रचंड वाराह प्राण होता है, अतः उसके सभी अवयव अभ्युदय कारक है।
भारत के स्वर्णिम काल में, लगभग एक हजार वर्ष तक वाराह की उपासना राजकीय स्तर पर होती थी, बड़े बड़े मंदिर थे। आज भी उनके अवशेष यत्र तत्र दिखाई पड़ते हैं।


सूअर पालने वाले लोगों की आय बढ़ाने के उपायों पर विचार करना चाहिए। पोर्क के साथ साथ उनसे उसकी हड्डियां, दन्त, दाढ़ भी खरीद लेना चाहिए। ये बहुत कल्याणकारी, युगानुकूल और निरापद समाधान कारक हैं।

वाराह_दंत एक ऐसी ही वस्तु है।

इसे बांह, कमर, गले या अंगूठी के रूप में धारण करना चाहिए।
वाराह दन्त के अलावा अस्थि या दंष्ट्र को भी धारण करने से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है, कुपथ्य और कुसंगति का दोष समाप्त होता है, वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है, वात जन्य प्रकोप जैसे हार्ट, बीपी, कोलेस्ट्रॉल, शुगर, मोटापा, अस्थमा, इत्यादि में तुरंत लाभ होता है।
इसे #दाहिनीअनामिकाअंगुली में भीतर की तरफ पहनने से अतिशय विजय, व्यापार और सौदे में विजय, लॉटरी, शेयर, सट्टा कारोबार में तुरंत लाभ होता है।
इसे किसी भी धातु,उपधातु के साथ धारण किया जा सकता है।
फिर भी अभ्युदय के इच्छुक जनों को इसे सवर्ण के साथ, आर्थिक लाभ के लिए अष्टधातु के साथ, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए रजत के साथ धारण करना चाहिए।
वाराह की हड्डी या दन्त से निर्मित अंगूठी जब आप भीतर की तरफ पहनते हैं तो वह आपकी त्वचा से स्पर्श कर जबरदस्त ताकत छोड़ती है।
जब आप उसके स्पर्श से युक्त भोजन करते हैं अथवा जल पीते हैं, उसमें अतिशय सकारात्मक ऊर्जा मिल जाती है।
यदि आप किसी से हाथ मिलाते हैं और यदि वह आपका बुरा करने की मानसिकता में है, अहित चाहता है, तुरंत उसे झटका लगता है।
कुंवारी कन्याओं और युवा लड़कियों को विभिन्न स्टाइलिश डिजाइन की अंगूठियों में पिरोकर पहनानी चाहिए, जिससे उनके प्रति दुर्भावना रखने वाले तत्व स्वतः दूर भागते हैं।
इसे व्यवसायिक रूप देकर, ऑनलाइन प्रचार प्रसार कर अधिकाधिक वितरण/विपणन करना चाहिए।
जो लोग नया बिजनेस लगाकर ऑनलाइन कमाई करना चाहते हैं उनके लिए यह एक अवसर है।
आप इसे टीम बनाकर कर सकते हैं।

मनुमहाराज

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