परिवारवाद के प्रायः दो स्वरूप होते हैं। पहला स्वरूप हानिकारक हो भी सकता है नहीं भी हो सकता है जबकि दूसरा स्वरूप बहुत ही घातक होता है। लोग अक्सर इन दो स्वरूपों में भेद नहीं समझ पाते हैं इसलिए कभी कभी परिवारवाद को गंभीरता से नहीं लिया जाता है और इसे सामान्य समझ लिया जाता है। वास्तविकता में परिवारवाद एक जहर है जो कितने ही प्रतिभा और जिंदगी को खा चुका है और खाते आ रहा है। यहां परिवारवाद को केवल परिवार से जोड़ कर देखना सही नहीं होगा। इसका नाम भले ही परिवारवाद हो लेकिन इसका स्वरूप बहुत विस्तृत है। जाति, धर्म आधारित भेदवाव को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। जरूरी नहीं की इसके अन्तर्गत केवल परिवार के सदस्य को बढ़ाना है, इसमें दोस्त, दोस्त मंडली या अंग्रेजी में बोलें तो गैंग भी आता है। कई गैंग होते हैं जो हमेशा अपने गैंग के सदस्य या गैंग के सदस्यों के सदस्य को बढ़ावा देने का काम करते हैं। परिवार के विस्तार में चाहने वाले, चापलूसी करने वाले, फॉलोअर्स भी आते हैं। अतः इन सब को बढ़ावा देना परिवारवाद के अन्तर्गत आता है।
परिवारवाद के दो स्वरूप इसप्रकार है (क) अपने बच्चों, परिवार के सदस्यों, रिश्ते के सदस्यों को बढ़ावा देना- इस स्वरूप में बढ़ावा देने का मतलब कैपेबल बनाना है। अतः अपने लोगों को आगे लाने के लिए तैयार करना, छमतावान बनाना या कहें तो कैपेबल बनाना है। अब इन्हें छमतावन बनाने के लिए जिस भी प्रकार के सुविधा या सामिग्री की आवश्यकता हो उसे मुहैया करना इस स्वरूप का मुख्य काम है। उदाहरण के लिए अगर किसी को अपने बच्चे को मूवी एक्टर बनाना है तो वो अपने बच्चे को अच्छे ड्रामा स्कूल में पढ़ाए, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन करवाए और वो सारी व्यवस्था, सुख सुविधा का बंदोबस्त करे जिससे उसका बच्चा एक अच्छा एक्टर बन जाए। परिवावाद के इस स्वरूप में कहीं कोई गलती नहीं है ये हर मां बाप का फर्ज होता है कि वो अपने बच्चों को बेहतर बनाए और उनकी इक्छा होती है अपने बच्चों को आगे हमेशा आगे देखना। भला इसमें किसी को क्या परेशानी होगी, ये तो अच्छा है। परिवावाद के पुरोधा अक्सर इसी को ढाल के तौर पर इस्तेमाल करते है और आप उन्हें बोलते सुनेंगे की अगर मैं अपने बच्चों के बेहतरी के लिए कुछ करता हूं तो इसमें क्या गलत है। सही है यहां वो गलत नहीं है। लेकिन सारा बात शुरू होता है परिवारवाद के दूसरे स्वरूप से। (ख) ये परिवारवाद का दूसरा और भयानक स्वरूप है। इसमें अपने बच्चों या चाहने वालों को आगे लाने के लिए दूसरे के बच्चों को पीछे किया जाता है या यूं कहें कि अपने बच्चों को आगे लाने के लिए दूसरे के बच्चों को मार देना, उसके टैलेंट को खतम कर देना इत्यादि। उसी उदाहरण को देखें तो आप अपने बच्चों को टैलेंटेड या छमतावान नहीं बना पाए उसे एक्टिंग नहीं सीखा पाए अब अगर किसी और का बच्चा आपके बच्चे से ज्यादा छमता वान है तो आप उसे रास्ते से हटा या हटवा देंगे, मार देंगे या उसके छमता को बर्बाद कर देंगे ताकि आपके नालायक बच्चा के रास्ते कोई नहीं आए और वो हीरो/हीरोइन बन जाए। अपने यहां बॉलीवुड में यही हो रहा है। इस प्रकार के परिवारवाद जो कि एक घातक जहर है, हर जगह देखने को मिलता है। शैक्षिक संस्थानों में, राजनीति में, एनजीओ में, ज्यूडिशियरी में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं।
अब बात गांधी परिवार की करें तो यहां आपको परिवारवाद का घिनौना, जहरीला स्वरूप (दूसरा स्वरूप) देखने को मिलेगा। इस स्वरूप में हमेशा कोशिश होगी कि अपने नालायक बच्चे को ऊपर रखना और अगर कोई छमतावान व्यक्ति उस से आगे जाने लगे या उसमे आगे जाने की संभावना दिखे तो भी उन्हें रास्ते से हटा देना होता है। अब रास्ते से हटाने के कई तरीके हो सकते हैं जैसे की एक्सिडेंट करवा के मार देना (कई अच्छे और प्रतिभावान नेताओं कि संदिग्ध मृत्यु हो चुकी है, जैसे ललित नारायण मिश्र, माधव राव सिंधिया, राजेश पायलट, इत्यादि) या फिर पार्टी से निकाल देना या कोई मनगढ़ंत आरोप लगा के उस के छवि को धूमिल कर देना, विपक्ष से मिले होने का आरोप लगा देना इत्यादि। हाल फिलहाल में ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट के साथ हुई घटना को इसी स्वरूप में देखा जा सकता है। किसी नालायक के लिए रास्ते साफ़ करने का प्रयास इसे समझा जा सकता है। इन दो बड़े नेता के साथ जो हुआ उसमे राहुल गांधी जी की चुप्पी और आगे आके उन्हें रोकने का कोई प्रयास नहीं करना इस शक को और मजबूत करता है।
अब बात करें की ठाकरे परिवार का परिवारवाद क्यों अलग है गांधी परिवार से और यहां ठाकरे परिवार की बात करने का क्या मतलब है? यहां उनका चर्चा जरूरी है, गांधी परिवार के परिवारवाद की भयावहता को समझने के लिए। बाला साहेब ठाकरे अपने इंटरव्यू में कई बार बोल चुके है कि उनका पार्टी कोई डेमोक्रेटिक पार्टी नहीं है, वहां उसका राज चलता है, वो जो बोलेगा वही चलेगा। अतः इस बात से स्पष्ट है कि उनकी पार्टी उनके लिए एक संपत्ति है और संपत्ति का बाप से बेटे में जाना उचित है। इसलिए अगर बाला साहेब के बाद उधव ठाकरे पार्टी प्रमुख बनते हैं तो ये उस लिहाज से गलत नहीं है। बाप का राज बेटे को चला जाना कोई आश्चर्य नहीं है। समस्या गांधी परिवार के साथ है क्यूंकि ये अपने आपको डेमोक्रेसी और संविधान का रक्षक कहते है। इसने अपनी पार्टी को अभी तक बाप का संपत्ति घोषित नहीं किया है। ये अपनी पार्टी को डेमोक्रेटिक बताते आए है। तो समस्या यहीं शुरू होती है कि जब आप अपनी पार्टी को परिवार का संपत्ति नहीं मानते है तो फिर राजशाही कैसा? आप अगर अपनी पार्टी को परिवार का संपत्ति घोषित कर देंगे तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी चाहे अध्यक्ष राहुल जी बने, प्रियंका जी बने या प्रियंका जी के बेटे जी बने। आपत्ति तब होती है जब आप अपने पार्टी का डेमोक्रेटिक होने का ढिंढोरा पीटते हैं और संविधान बचाने कि बात करते हैं। ये अब समय आ गया है जब लोग आगे आएंगे और ऐसे परिवारवाद वाले लोगों का हिसाब लेंगे। उम्मीद है ये सवाल अब हर जगह उठेगा, राजनीति में, वॉलीवुड में, शैक्षणिक संस्थानों में, ज्यूडिशियरी में, एनजीओ में और अन्य जगहों पे भी। जस्टिस लाल का बेटा जस्टिस लाल अब नहीं चलेगा। सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के बाद ही सही कुछ लोग अब इनपे खुल के बोलने लगे हैं जो एक अच्छा संकेत है
(अजीत झा मधुकर)
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.
@madhukar – This is interesting article. Gandhi families are influencial since more than 5 gen whereas thackreys got the limelight since a few gen. so we can’t compare these family in fairer way.
Shivsena started being goons who fought for marathi manoos by killing primarily gujaratis, Then they turned being marathas – protector of Hindus. Suddenly they parted ways with BJP on the name of being secular just to make Aditya Thackrey at top position.
I think Thackrey parivaarvaad is cheap and can’t sustain beyond one generation ( that too because of Bala saheb Legacy) and eventually goes to sync.
One more unfortunate truth about Hindu Indian families who can’t sustain popularity and power and finally went to self destruction.
Gandhis sustained due to enormous wealth from mughals and then vetican. They are sworn traitors and might survive through drunk priyanka vadra and her baby snakes.
Thank you that you liked my article. I wanted to convey why gandhi family nepotism is more dangerous for the country.thanks