भौतिक प्रकृति से उत्पन्न सत्व, रज तथा तम गुणों के कारण अविनाशी आत्मा शरीर से बंध जाती है और इन गुणों के कारण ही जीवात्मा अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेता है। सत्वगुणी व्यक्ति उत्तम कर्म कर स्वर्ग लोक में जाता है, तमोगुणी व्यक्ति नरक लोक में जाता है और इस प्रकार जन्म मृत्यु के चक्र में निरंतर फंसा रहता है। इस जन्म मृत्यु के आवागमन से मुक्त होने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को जगद्गुरु भगवान् श्री कृष्ण ने भगवद्गीता के माध्यम से जो युक्ति बताई है उसका कोई तोड़ नहीं। उन्होंने ऐसा मार्ग बताया कि कर्म करके भी उसका पाप और पुण्य नहीं लगता, इसमें कोई संदेह नहीं।
जीवन का अर्थ बतानेवाली महान ग्रंथ अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता; को हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता है। अठारह पुराण, नौ व्याकरण और चार वेद इनका सम्य मंथन कर के व्यास मुनिजी ने महाभारत रचा । इस महाभारत का मंथन कर के सर्व नवनीत (सार) श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मुख में रखा।
हिंदू धर्म का अद्वितीय तत्त्वज्ञान अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता; हिन्दू धर्म में भगवद गीता पर हाथ रखकर कोई भी हिंदू झूठ नहीं बोल सकता, इसलिए न्यायालय (अदालत) में गीता पर हाथ रखकर शपथ दी जाती है । मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को श्रीमद्भगवद्गीता का जन्मदिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह 3 दिसंबर को मनाया जा रहा है।
श्रीमद्भगवद्गीता अर्थात साक्षात भगवान श्रीकृष्ण की अमृतवाणी ! कुरुक्षेत्र में विजय के लिए अर्जुन को जैसे गीतोपदेश की आवश्यकता थी, वैसे ही जीवन के कुरुक्षेत्र पर विजय के लिए आज प्रत्येक व्यक्ति को गीतामृत की आवश्यकता है । पूर्व काल से विदेश के अनेक विद्वान गीता के अद्वितीयता के आगे नतमस्तक होते रहे हैं ।
श्रीमद्भगवद्गीता का देश-विदेश के विद्वानों ने भाषांतर भी किया –
शेख अबुल रहमान चिश्ती (फारसी), फ्रेंच विद्वान डुपर (फ्रेंच), जर्मन महाकवि आगस्ट विल्हेम श्लेगल (वर्ष 1823) (जर्मन और लॅटिन), जर्मन विद्वान एम्.ए. श्रेडर, केमेथ सेन्डर्स और जे.सी. टॉमसन, अमेरिका से भारत आकर गए न्यायाधीश और लेखक ‘किन्थ्रौप सार्जेट’, एल.डी. बार्नेट और डॉ. अॅनी बेसेंट (वर्ष 1905), डब्ल्यू. डगलस पी. हिल (वर्ष 1928), फेंकलिन एडजर्ट (वर्ष 1944), क्रिस्टोफर ईशरकुड (वर्ष 1945)
श्रीमद्भगवद्गीता की स्तुति करनेवाले अहिंदू और उनके द्वारा की गई स्तुति –
मुहम्मद गजनी द्वारा भारत में लाकर कारागृह में रखे बुखारा के अत्यंत बुद्धिमान राजकुमार ‘अल् बरूनी’ ने कारागृह में संस्कृत सीख कर स्वयं के पुस्तक में गीता की बहुत प्रशंसा की है, दिल्ली के सम्राट अकबर ने प्रकांड पंडित ‘अबुल पैजी’ से गीता का ‘फारसी’ भाषा में भाषांतर करवा कर लिया और सम्राट शाहजहां के पुत्र दाराशिकोह ने इस भाषांतरित ग्रंथ की प्रस्तावना/मनोगत ‘सरे अकबर’ इस शीर्षकांतर्गत की है । अपने प्रस्तावना में गीता की अपूर्व प्रशंसा करते हुए उसने कहा, ‘गीता का ‘प्लेटो’ के गुरूंपर भी प्रभाव है’, जर्मन विद्वान ‘कॉल्टर शू ब्रिंग’, जर्मन तत्ववेत्ता ‘कान्ट’ और उनका प्रशंसक ‘शॉपेनहाकर’ और ‘हेगेल’ जर्मन विद्वान ‘हम्बोल्ट’ थोरो के महान भक्त अमेरिकन लेखक ‘राल्फ काल्डो एमरसन’, आयरिश कवि ‘जी. डब्ल्यू रसल’ (रसेल) , ‘यीट्स’, ‘फ्रेजर’, ‘मेकनिकल’ औ. ‘टी. एस्. इलियट’, ‘फरक्यूहर’ गवर्नर जनरल ‘वॉरन हेस्टिंग्ज’ आदि विदेशी विद्वानों ने भी गीता की मुक्तकंठ से स्तुति की है ।
इसके अतिरिक्त गीता का प्रभाव बौद्धों के ‘महायान’ ग्रंथ में दिखाई देता है । भारत की ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के विद्वान अंग्रेज अधिकारी ‘चार्ल्स विल्किन्स’ ने अत्यंत परिश्रम से संस्कृत का अध्ययन किया और गीता का अंग्रजी में भाषांतर किया । ‘सर हेनरी टामस कोलब्रुक’ गीता के प्रशंसक थे । इन्होंने वर्ष 1765 से वर्ष 1837 की कालावधि में संस्कृत का प्रचार किया । उन्होंने वेदांकर विद्वत्तापूर्ण लेख लिख कर यूरोप मे वेदों का प्रसार करना प्रारंभ किया ।
उपर्युक्त सभी के कथन से हमें श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व ध्यान में आता है; क्योंकि यह मनुष्य को जीवन के ग़ूढ रहस्यों के विषय में विस्तार से ज्ञान प्रदान करती है। आप सभी को विश्ववंदनीय श्रीमद्भगवद्गीता जयंती की शुभकामनाएं।
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