अश्विन कृष्ण द्वादशी के दिन वसुबारस तथा गुरु द्वादशी यह त्यौहार मनाए जाते हैं। वसुबारस या गोवत्स द्वादशी यह दिन दीपावली के साथ (आसपास) आता है, इसलिए इसका समावेश दीपावली त्यौहार में किया जाता है, परंतु वस्तुतः यह त्यौहार अलग है। इस त्यौहार के बारे में तथा इसके निमित्त गोपालन का महत्व संक्षिप्त में जानेंगे।

वसुबारस (गोवत्स द्वादशी) – श्री विष्णु की आप-तत्वात्मक लहरियां कार्यरत होकर ब्रह्मांड में आने का दिन अर्थात वसुबारस। इस दिन विष्णु लोक की वासवदत्ता नामक कामधेनु, इन लहरियों को ब्रह्मांड तक लाने के लिए अनवरत कार्य करती है। इस दिन इस कामधेनु का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करके आंगन में तुलसी के पास धेनु अर्थात गाय खड़ी करके उसकी प्रतीकात्मक रूप में पूजा की जाती है।

इस दिन हमारे आंगन की गाय को वासवदत्ता का स्वरूप प्राप्त होता है, अर्थात एक प्रकार से उसका नामकरण होकर उसे देवत्व प्राप्त होता है। इसलिए इस दिन को वसुबारस कहते हैं । बारस अर्थात किसी वस्तु में नवीन चैतन्य बीज की निर्मिती होना । यही देवत्व, उसमें निरंतर विष्णुरूप देखकर जीव ने (मानव ने) संरक्षित रखना चाहिए और उससे प्रक्षेपित चैतन्यलहरियों का लाभ लेना चाहिए।

इतिहास – समुद्र मंथन से पांच कामधेनुएं उत्पन्न हुईं ऐसी कथा है। उसमें से नंदा नामक धेनु को उद्देशित करके (ध्यान में रखकर) यह व्रत है।

उद्देश्य – इस जन्म की एवं अगले अनेक जन्मों की सारी कामनाएं पूर्ण हों एवं जिस गाय की पूजा कर रहे हैं उस गाय के शरीर पर जितने बाल हैं उतने वर्षों तक स्वर्ग में रहने को मिले।

त्यौहार मनाने की पद्धति – इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां एक भुक्त रहकर (एक समय भोजन करके) अर्थात एक समय उपवास करके सुबह अथवा शाम को सवत्स गाय की पूजा करती हैं। 

वसुबारस के दिन बाहर जाकर सवत्स गाय की पूजा करनी चाहिए क्या? पूजा करना संभव न हो तो क्या करना चाहिए? – वसुबारस के दिन बाहर जाकर सवत्स गाय की पूजा करने में अडचन हो तो घर में ही गाय की मूर्ति की पूजा करनी चाहिए । घर में मूर्ति ना होने पर पाट पर गाय का चित्र बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए ।

गोपालन  का महत्व ! – 
पृथ्वी, आप, तेज ,वायु, एवं आकाश इन पंचमहाभूतों की सहायता से सृष्टि की निर्मिती हुई एवं उसका परिचलन कार्य भी चालू है। गाय इन पंचमहाभूतों की माता है। कालांतर में उसकी अवहेलना व उपेक्षा होने के कारण ही आज प्रदूषण गंभीर रूप से बढ़ गया है । यदि इसे समय रहते ही रोकना हो तो गोरक्षण, गोपालन एवं गो – उत्पाद का संवर्धन के अतिरिक्त कोई पर्याय नहीं है। एक प्रकार से गौ माता पंच महाभूतों के कुपोषण की अधिकारिणी है। वसुबारस, इस त्योहार के निमित्त गौ माता का महत्व समझकर गोरक्षण ,गोपालन, एवं गो उत्पाद का संवर्धन करने का प्रयत्न करें ।

गुरुद्वादशी – अश्विन कृष्ण द्वादशी, इस तिथी को शिष्य गुरु का पूजन  करते हैं।

संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ “त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत ”

श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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