“सबके राम” जब मैं यह कहता हूँ तो बस ऐसे ही नहीं कह देता हूँ| यह बर्बस अपने मुंह से निकल ही जाता है| कोई भेदभाव नहीं, किसी तरह का कोई आकांक्षा नहीं बस एक छोटा सा और सबका प्रिय “राम” नाम| शब्द तो एक मन में आया हुआ भाव है जो सहज रूप से वाणी के रूप में अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है| राम-राम कह दो तो मिलना हो गया|4-5 बार कह दो जल्दी जल्दी राम-राम-राम-राम तो कुछ अच्छा नहीं हुआ| राम के पहले “हे”  लगा दिया तो एक पुकार है और राम के आगे “नाम सत्य है” है तो आत्मा का परमात्मा मिलन है| राम को किसी भी तरीके के बंधनो से बांधा जा नहीं सकता है| तभी तो राम नाम सर्वत्र है|

मुस्लिम के राम

गावों में अभी भी हिन्दू मुस्लिम से सलाम करता है तो मुस्लिम “राम-राम” करके जवाब देता है| मुस्लिम के मुंह से राम नाम निकलना कहीं गलत नहीं होता है बस आप अपनी आँखों से थोड़ा धर्म का पर्दा हटाकर मानवता का पर्दा डाल लीजिये| किसी की बातों पर मत जाइये क्यों कि मुन्ना हलवाई कि दूकान में जब शमीम मियाँ आते हैं जलेबी खाने के लिए तो मोहल्ले के सभी खबरी वहीँ बैठे मिलते हैं तो पहला उनका दुआ-सलाम “राम-राम” से ही होता है| छोड़िये TV की बड़ी ख़बरों को और मोहल्ले के समाचार सुनिए| कोरोना काल में तो कितने मुस्लिम ने राम-नाम सत्य बोलते हुए मिट्टी का अंतिम संस्कार कराया| और छोटे में कबीर और रहीम के दोहों ने कैसे जीवन और हिंदी का पेपर पास कराया|

सिखों के राम

सिक्खों में राम नाम की उपस्तिथि है| प्रवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहब में भी साढ़े पांच हजार बार भगवान राम के नाम का जिक्र मिलता है ऐसा बोला जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी ने राम के नाम से एक परिपूर्ण सर्ग की रचना करी हुई है। सिक्ख  परंपरा में भगवान राम से जुड़ी विरासत रामनगरी में ही स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में पूरी शिद्दत से प्रवाहमान है। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में मौजूद एक ओर जहां गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें हैं तो दूसरी ओर उनकी निहंग सेना के वे हथियार भी मौजूद हैं जिनके बल पर उन्होंने मुगलों की सेना से राम जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध किया था|

ईसाईयों के राम

ईसाई के भी राम हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यूपी के शाहजहांपुर की रामलीला में देखने को मिलता है| यहां मुस्लिम कलाकार भगवान परशुराम का रोल निभाता है, तो ईसाई कलाकार दशरथ पात्र निभाकर उनके आदर्शों को लोगों के सामने पेश करता है| भगवान परशुराम के वेश भूषा में कलाकार मोहम्मद अरशद आजाद के हर संवाद पर लोग खूब तालियां बजाते हैं| दशरथ का पात्र निभाने वाले पैट्रिक दास पिता और पुत्र के सम्बन्धो को दर्शाते हैं| राम के नाम पर कोई भी किसी तरह का भेदभाव नहीं|

बौद्धों के राम

बौद्ध धर्म का अयोध्या से पुराना नाता रहा है| 1981-1982 ईस्वीं में अयोध्या के सीमित क्षेत्र में एक उत्खनन किया गया था। यह उत्खनन मुख्यत: हनुमानगढ़ी और लक्ष्मणघाट क्षेत्रों में हुआ था जहां से बुद्ध के समय के कलात्मक पात्र मिले थे। माना जाता है कि यहां बौद्ध स्तूप था।यह बौद्ध स्तूप या विहार कभी भी राम जन्मभूमि पर नहीं रहा। अयोध्या के आसपास एक नहीं लगभग 20 बौद्ध विहार होने का उल्लेख मिलता है।यहां पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे और यहां हिंदुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर था।

पकिस्तान के राम

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जिला चकवाल शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में कोहिस्तान नमक पर्वत श्रृंखला में महाभारतकालीन कटासराज नाम का एक गांव है। यहाँ पर एक मंदिर है जिसका नाम है कटासराज का शिव मंदिर| इस मंदिर परिसर में राम, हनुमान और शिव मंदिर खासतौर से देखे जा सकते हैं। 1500 साल पुराने कराची के पंचमुखी हनुमान मंदिर में आज भी काफी लोग जाते हैं। नागरपारकर के इस्लामकोट में पाकिस्तान का यह इकलौता ऐतिहासिक राम मंदिर है। इस्लामाबाद में पुराने समय के 3 मंदिर हुआ करते थे। एक सैयदपुर, दूसरा रावल धाम और तीसरा गोलरा के मशहूर दारगढ़ के पास है। सैयदपुर गांव में स्थित राम मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये राजा मानसिंह के समय में 1580 में बनवाया गया था।

नेपाल के राम

नेपाल में रामकथा का विकास मुख्य रुप से वाल्मिकि तथा अध्यात्म रामायण के आधार पर हुआ है। जिस प्रकार भारत की क्षेत्रीय भाषाओं क साथ राष्ट्रभाषा हिंदी में राम कथा पर आधारित अनेकानेक रचनाएँ है, किंतु उनमें गोस्वामी तुलसी दास विरचित रामचरित मानस का सर्वोच्च स्थान है, उसी प्रकार नेपाली काव्य और गद्य साहित्य में भी बहुत सारी रचनाएँ हैं। ‘रामकथा की विदेश-यात्रा’ के अंतर्गत उनका विस्तृत अध्ययन एवं विश्लेषण हुआ है। जनकपुर जो नेपाल में स्थित है वो माँ सीता का घर और भगवान् श्री राम का का ससुराल है|

बर्मा के राम

बर्मा का पोपा पर्वत ओषधियों के लिए विख्यात है। वहाँ के निवासियों को यह विश्वास है कि लक्ष्मण के उपचार हेतु पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान उखाड़कर ले गये थे। वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे। वापसी यात्रा में उनका संतुलन बिगड़ गया और वे पहाड़ के साथ जमीन पर गिर गये जिससे एक बहुत बड़ी झील बन गयी। इनवोंग नाम से विख्यात यह झील बर्मा के योमेथिन जिला में है।४ बर्मा के लोकाख्यान से इतना तो स्पष्ट होता ही है कि वहाँ के लोग प्राचीन काल से ही रामायण से परिचित थे और उन लोगों ने उससे अपने को जोड़ने का भी प्रयत्न किया।

थाईलैंड के राम

थाईलैंड का प्राचीन नाम स्याम था और द्वारावती (द्वारिका) उसका एक प्राचीन नगर था। थाई सम्राट रामातिबोदी ने 1350ई. में अपनी राजधानी का नाम अयुध्या (अयोध्या) रखा जहाँ 33 राजाओं ने राज किया। 7 अप्रैल 1767ई. को बर्मा के आक्रमण से उसका पतन हो गया। अयोध्या का भग्नावशेष थाईलैंड का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। अयोध्या के पतन के बाद थाई नरेश दक्षिण के सेनापति चाओ-फ्रा-चक्री को नागरिकों ने 1785ई. में अपना राजा घोषित किया। उसका अभिषेक राम प्रथम के नाम से हुआ। राम प्रथम ने बैंकॉक में अपनी राजधानी की स्थापना की। राम प्रथम के बाद चक्री वंश के सभी राजाओं द्वारा अभिषेक के समय राम की उपाधि धारण की जाती है। वर्तमान थाई सम्राट राम नवम हैं।

मलयेशिया  के राम

मलयेशिया के रामलीला कलाकारों को ऐसा विश्वास है कि रामायण के पात्र मूलत: दक्षिण-पूर्व एशिया के निवासी थे और रामायण की सारी घटनाएँ इसी क्षेत्र में घटी थी। वे मलाया के उत्तर-पश्चिम स्थित एक छोटे द्वीप को लंका मानते हैं। इसी प्रकार उनका विश्वास है कि दक्षिणी थाईलैंड के सिंग्गोरा नामक स्थान पर सीता का स्वयंवर रचाया गया था जहाँ राम ने एक ही बाण से सात ताल वृक्षों को बेधा था। सिंग्गोरा में आज भी सात ताल वृक्ष हैं।8 जिस प्रकार भारत और नेपाल के लोग जनकपुर को निकट स्थित एक प्राचीन शिलाखंड को राम द्वारा तोड़े गये धनुष का टुकड़ा मानते हैं, उसी प्रकार थाईलैंड और मलेशिया के लोगों को भी

विश्वास है कि राम ने उन्हीं ताल वृक्षों को बेध कर सीता को प्राप्त किया था।

वियतनाम के राम

वियतनाम का प्राचीन नाम चंपा है। थाई वासियों की तरह वहाँ के लोग भी अपने देश को राम की लीलभूमि मानते है। उनकी मान्यता की पुष्टि सातवीं शताब्दी के एक शिलालेख से होती है जिसमें आदिकवि वाल्मीकि के मंदिर का उल्लेख हुआ है जिसका पुनर्निमाण प्रकाश धर्म नामक सम्राट ने करवाया था।९ प्रकाशधर्म (653-679 ई.) का यह शिलालेख अनूठा है, क्योंकि आदिकवि की जन्मभूमि भारत में भी उनके किसी प्राचीन मंदिर का अवशेष उपलब्ध नहीं है।

इंडोनेशिया के राम

इंडोनेशिया के पुरातत्व विभाग ने 1919 ई. में पूरे मनोयोग के साथ प्रम्बनान मंदिर परिसर स्थित विशाल शिवालय के पुनर्निमाण का कार्य पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति से आरंभ किया। इस कार्य में अनेक यूरोपीय विद्वानों ने सक्रिय रुप से सहयोग किया। सन् 1953ई. में यह दु:साध्य कार्य पूरा हुआ। इसे वास्तव में पुरातत्त्व अभियंत्रण का चमत्कार ही कहा जा सकता है। इसके अंदर रामायण शिलाचित्रों को यथास्थान स्थापित कर दिया गया है। जर्मन विद्वान विलेन स्टूरहाइम ने इन रामायण शिलाचित्रों का अध्ययन किया है।

कम्बोडिया के राम

कंपूचिया स्थित अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के राजत्वकाल में हुआ था। इस मंदिर के गलियारे में तत्कालीन सम्राट के बल-वैमन का साथ स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहाँ के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की श्रृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, वालि और सुग्रीव के द्वेंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं।

चीन के राम

चीन में रामकथा बौद्ध जातकों के माध्यम से पहुँची थीं। वहाँ अनामक जातक और दशरथ कथानम का क्रमश: तीसरी और पाँचवीं शताब्दी में अनुवाद किया गया था। दोनों रचनाओं के चीनी अनुवाद तो उपलब्ध हैं, किंतु जिन रचनाओं का चीनी अनुवाद किया गया था, वे अनुपलब्ध हैं। तिब्बती रामायण की छह पांडुलिपियाँ तुन-हुआन नामक स्थल से प्राप्त हुई हैं। इनके अतिरिक्त वहाँ राम कथा पर आधारित दमर-स्टोन तथा संघ श्री विरचित दो अन्य रचनाएँ भी हैं।

तुर्किस्तान के राम

एशिया के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान के पूर्वी भाग को खोतान कहा जाता है। इस क्षेत्र की भाषा खोतानी है। खोतानी रामायण की प्रति पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से प्राप्त हुई है।

मंगोलिया के राम

चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया में राम कथा पर आधारित जीवक जातक नामक रचना है। इसके अतिरिक्त वहाँ तीन अन्य रचनाएँ भी हैं जिनमें रामचरित का विवरण मिलता है।

जापान के राम

जापान के एक लोकप्रिय कथा संग्रह होबुत्सुशु में संक्षिप्त रामकथा संकलित है। इसके अतिरिक्त वहाँ अंधमुनिपुत्रवध की कथा भी है।

श्रीलंका के राम

श्री लंका में कुमार दास के द्वारा संस्कृत में जान की हरण की रचना हुई थी। वहाँ सिंहली भाषा में भी एक रचना है, मलयराजकथाव।

लाओस के राम

लाओस के निवासी स्वयं को भारतवंशी मानते हैं। उनका कहना हे कि कलिंग युद्ध के बाद उनके पूर्वज इस क्षेत्र में आकर बस गये थे। लाओस की संस्कृति पर भारतीयता की गहरी छाप है। यहाँ रामकथा पर आधारित चार रचनाएँ उपलब्ध है- फ्रलक फ्रलाम (रामजातक), ख्वाय थोरफी, ब्रह्मचक्र और लंका नोई। लाओस की रामकथा का अध्ययन कई विद्वानों ने किया है।

फिलीपींस के राम

फिलिपींस के इस्लामीकरण के बाद वहाँ की राम कथा को नये रुप रंग में प्रस्तुत किया गया। ऐसी भी संभावना है कि इसे बौद्ध और जैनियों की तरह जानबूझ कर विकृत किया गया। डॉ. जॉन आर. फ्रुैंसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में संकलित इक विकृत रामकथा की खोज की है जिसका नाम मसलादिया लाबन है। इसकी कथावस्तु पर सीता के स्वयंवर, विवाह, अपहरण, अन्वेषण और उद्धार की छाप स्पष्ट रुप से दृष्टिगत होता है।

तिब्बत के राम

राम कथा की उत्तरवाहिनी धारा कब तिब्बत पहुँची, यह सुनिश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता है, किंतु वहाँ के लोग प्राचीन काल से वाल्मीकि रामायण की मुख्य कथा से सुपरिचित थे। तिब्बती रामायण की छह प्रतियाँ तुन-हुआंग नामक स्थल से प्राप्त हुई है। उत्तर-पश्चिम चीन स्थित तुन-हुआंग पर 787 से 848 ई. तक तिब्बतियों का आधिपत्य था। ऐसा अनुमान किया जाता है कि उसी अवधि में इन गैर-बौद्ध परंपरावादी राम कथाओं का सृजन हुआ। तिब्बत  की सबसे प्रामाणिक राम कथा किंरस-पुंस-पा की है जो ‘काव्यदर्श’ की श्लोक संख्या 297 तथा 289 के संदर्भ में व्याख्यायित हुई है।

अमेरिका के राम

अमेरिका के एक स्टेट आयोवा की एक सोसाइटी के भीतर राम मुद्रा चलती है। यहां अमेरिकन इंडियन जनजाति आयवे के लोग रहते हैं। अमेरिका की इस सोसायटी के लोग महर्षि महेश योगी को मानते हैं।  महर्षि वैदिक सिटी में बसे उनके अनुयायी कामों के बदलों में इस मुद्रा में लेनदेन करते हैं। साल 2002 में “द ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस” नामक एक संस्था ने इस मुद्रा को जारी किया और समर्थकों में बांटा।

नीदरलैंड के राम

राम नाम वाले करेंसी नोट नीदरलैंड में इस्तेमाल हो रही हैं। हालांकि, इन नोटों को वहां आधिकारिक मुद्रा नहीं माना गया है बल्कि ये एक खास सर्कल के भीतर इस्तेमाल होती है लेकिन ये इन दोनों ही देशों में चलन में है। इन नोटों पर भगवान राम (Lord Ram) की तस्वीर भी होती है।

सूचि बहुत लम्बी है और राम नाम का प्रभाव भी बहुत ज्यादा है| सर्वत्र राम है| हर चीज़ में राम है| वायु में राम है तो जल में भी राम है| शरीर के लिए जैसे ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है वैसे ही राम की आवश्यकता मानसिक गति देने के लिए होती है| राम कही शब्दों में समेटे नहीं जा सकते हैं ये तो भावनाएं हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में चिरकाल से चली आ रही है और आगे भी ऐसे ही बहती रहेगी| न कोई अंत न कोई ढहराव केवल जल जैसी शीतलता और समुद्र जैसी गंभीरता|

राम नाम का सार ना जान |

सार से निकले भाव को जान ||

ह्रदय भाव से सुधरे सबके काम |

मेरे राम तेरे राम हम सबके राम ||

जय श्री राम,जय श्री राम,जय श्री राम ||

Reference:

https://www.jagran.com/

https://hindi.webdunia.com/

https://hindi.webdunia.com/

https://zeenews.india.com/

https://ignca.nic.in/

https://www.livehindustan.com/

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.