मुम्बई पुलिस इन दिनों अपराध और अपराधियों को लेकर जैसा रवैया अपनाए हुए है उससे तो यही लगता है कि देश की सबसे अधिक तेज़ तर्रार पुलिस ने या तो अपने काम करने का तरीका बदल दिया है या फिर किसी राजनीतिक दबाव/निर्देश पर ये सब किया जा रहा है | 

अभी कुछ दिनों पूर्व ही महाराष्ट्र के पालघर में किस तरह से दो साधुओं की भीड़ ने निर्ममता पूर्वक पीट पीट कर ह्त्या कर दी थी उस प्रकरण में भी महाराष्ट्र पुलिस का एक घिनौना रूप सामने आया था जब सबने देखा कि खुद पुलिस ने उन दोनों निर्दोष साधुओं को वहशी बनी भीड़ के हवाले कर दिया और चुपचाप बैठ कर तमाशा देखते रहे | बाद में महाराष्ट्र के गृह मंत्री का शर्मनाक बयान ,”ये ह्त्या अफवाह फ़ैल जाने के कारण हुई थी इसमें इससे अधिक गंभीर कुछ भी नहीं है कहने करने को ” सब कुछ स्पष्ट कर गया | 

मुम्बई पुलिस जो अपनी छवि ,एक बहादुर निडर ,तेज़ और ईमानदार पुलिस बल के रूप में दुनिया को दिखाती आई है बार बार उसका सम्बन्ध मुंबई अंडरवर्ल्ड के साथ ,तो कभी राजनीतिक सांठ गाँठ में लिप्त होकर जांच को प्रभावित करने में भी आता रहा है | 

पिछले दिनों सबसे अधिक चर्चा में रहा सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मौत के मामले को लेकर जिस तरह से पिछले डेढ़ महीने से पुलिस की जाँच और ढीला ढाला रवैया लोगों को दिख रहा है उससे पुलिस की मंशा पर सवाल उठ ही रहे थे कि अब पटना पुलिस के साथ जांच में असहयोग और सबसे अधिक पटना पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी जो जांच के  विशेष दायित्व के साथ मुम्बई पहुँचे ,उन्हें जबरन एकांतवास में भेज दिया गया है | 

पुलिस पिछले दिनों की जांच और तफ्तीश में आजतक ये नहीं बता पाई है कि उसकी जाँच किस दिशा में चल रही है -हत्या या आत्महत्या 

घटना से सम्बंधित लोगों (जिनका नाम पुलिस ने किस आधार पर चुना ये भी अभी नहीं खुलासा किया गया है ) के बयान (161 CRPC  के तहत ) दर्ज़ करते रहने के अलावा कोई ठोस जांच नहीं की गई है अब तक 

प्रथम दृष्टया आरोपी व्यक्तियों से कड़ाई से पूछताछ तो दूर पुलिस दूर दूर तक उनसे इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं है | बार बार इस घटना के पीछे आ रहे नाम -सलमान खान , को तो मुंबई का गृह मंत्रालय धन्यवाद कह रहा है कि उनकी संस्था ने पुलिस के लिए इतने मास्क भिजवाए | 

इधर कुछ दिनों में सुशांत सिंह राजपूत की मौत की घटना में जिसका नाम सबसे अधिक संदेह में है वो है उनकी महिला मित्र – रिया चक्रवर्ती | रिया चक्रवर्ती एक नवोदित अभिनेत्री जिसने टेलीविजन जॉकी के रूप में अपने अभिनय करियर की शुरुआत की और बिना एक भी पिक्चर के हिट हुए आज इस मुकाम तक पहुँच गईं कि इस मौजूदा हालात के लिए कानूनी सहायक के रूप में देश के सबसे महंगे अधिवक्ता को अनुबंधित किया है | 

सुशांत सिंह के पिता द्वारा पुलिस को रिया चक्रवर्ती के विरूद्ध दी गई शिकायत में जो सबसे अहम् बात उठाई गई है वो यही है की पिछले कुछ महीनों में सुशांत ने अपनी कमाई के करोड़ों रूपए रिया के मद में ही खर्च किये और ये बात सबसे छुपाई गई | रिया चक्रवर्ती के बड़े बैनरों /निर्देशकों के साथ रिश्ते और अब तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के सुपुत्र के साथ भी रिया की अच्छी मित्रता की ख़बरें बाहर आ रही हैं | 

आज महाराष्ट्र सरकार का नज़रिया और मुमबई पुलिस की साख दोनों ही लोगों की नज़रों में लगातार गिरती चली जा रही है | वो मुंबई नगर निगम जो ज़रा सी बारिश को नहीं संभाल पाता और डाक्टर तक को गटर लील जाता है , वो मुंबई नगर निगम जिसके सामने धीरे धीरे करके कोरोना महामारी ने महाविनाश का रूप बना लिया , और ऐसे ही अनेक बहादुरी वाले कामों के लिए विख्यात मुंबई नगर निगम ने पटना पुलिस के पुलिस अधीक्षक और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी के साथ व्यावसायिक शिष्टाचार के विपरीत सर्वथा असहयोगात्मक रवैया अपनाया | 

मुंबई पुलिस , महाराष्ट्र सरकार , हिंदी सिने जगत। …….ये सब आखिर सन्देश क्या देना चाह रहे हैं ? सुशांत सिंह ,बिहार की कोख से अपनी प्रतिभा के दम पर हिन्दी सिनेमा के सिरमौरों में अपनी जगह बना चुका था |( बिना किसी गुट में गए ,बिना किसी सरमाएदार के अपने अभिनय और प्रतिभा के सहारे चलने वाला सुशांत सिंह अकेला वो व्यक्ति नहीं है जो ये सब महसूस कर रहा था ? ये सब कुछ बदस्तूर चल रहा है सबकी साझा सहमति से चल रहा है ? ) देर सवेर ,खुद को सिनेमा जगत का स्वयंभू ठेकेदार घोषित किये हुए कुछ बड़े चेहरों को अभी ये मंज़ूर नहीं है इसलिए अब ये सब किया करवाया जा रहा है | 

महाराष्ट्र पुलिस का एक चेहरा अभी भी लोगों की ज़ेहन में है , पालघर में दो निर्दोष बूढ़े साधुओं को हैवान बने कुछ लोगों के हवाले करके मरने के लिए छोड़ देने वाली महाराष्ट्र पुलिस और उनकी मॉनिटर ,राज्य के गृह मंत्रालय जी ने चट्ट से जाँच कर पट्ट से बता दिया था कि ,कुछ ख़ास नहीं बस यूँ ही ज़रा सी गलतफहमी हो गई थी ,किसे हुई थी ये उन्हें भी खुद नहीं पता आज तक | 

सुरक्षा के लिए ही कटिबद्ध राज्य सरकारों के दो निकायों ,जो एक जैसा काम करने के लिए संगठित किये गए हैं ,में सार्वजनिक रूप से ऐसा व्यवहार अपराधियों का ही मनोबल बढ़ाने का काम करता है | 

मीडिया जो निहायत ही गैर जिम्मेदार हो जाता है जब मामला अधिक संवेदनशील हो | पिछले कई दिनों से उसने अपनी “बियोंड द लिमिट” वाली पत्रकारिता करते हुए ऐसे ऐसे तथ्य बाहर निकाल लिए हैं जो देर सवेर पुलिस जाँच को एक दिशा एक कारण देने वाली तो बनेंगी ही | कोई भी जांच एजेंसी इन तथ्यों को दरकिनार नहीं कर सकेगी | 

कहते हैं कभी कभी कोई कारण ऐसा बन जाता है फिर उसके साथ जुड़ा हर सच अपने आप बाहर आता चला जाता है ,बेशक काम बड़ा होने के कारण समय थोड़ा अधिक जरूर लगता है | 

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.