सनातन पर पहला आघात तभी हो गया था जब सनातन में निहित मूल तत्व को वगैर जाने एक सिद्धार्थ , गौतम बना था और पूरे संसार के दार्शनिक चिंतन को सिर्फ ३ पंक्तियों में समेटने के लिए कभी भूखा रहता था तो कभी सुजाता का खीर खाता था । अगर सिद्धार्थ ने सनातन के मूल तत्व को पढ़ा होता या कम से कम गीता पढ़ी होती तो जान चुका होता कि (संसार में दुख है , दुख का कारण है और उसका निदान है : ) इन तीन पंक्तियों के बदले भगवान श्री कृष्ण ने गीता में सिर्फ २ पंक्तियों में इसे समेट दिया है —
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा: |
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || 2/14||
अर्थात इंद्रिय और विषयों का संयोग ठंडक और गर्मी की तरह सुख-दुःख प्रदान करता है। यह सुख और दुःख आते ही नष्ट होने की प्रवृत्ति रखता है अर्थात यह सुख और दुख स्थायी नहीं है इसीलिए हे अर्जुन तुम इनको सहन करो।
परंतु सिद्धार्थ के गौतम बनते ही एक संघ बना, एक नया धर्म बना और समस्त मानव जाति को बुद्ध यानी अपने शरण में आने का आमंत्रण दिया , धर्म और अंततः संघ के शरण में आने का आह्वान किया।
बुद्धम् शरणम् गच्छामि
संघम् शरणम् गच्छामि
धम्मम् शरणम् गच्छामि ।।
यह पूरी प्रक्रिया बस एक नई सामाजिक व्यवस्था बनाने की कवायद थी जिसमें एक नया प्रमुख बनाने की कोशिश चलती रही और आगे भी चलती रहेगी। महायान हीनयान और थेर बाद इसके प्रमाण हैं।
देखा जाए तो आज तक भारत को सबसे ज्यादा कष्ट पीड़ा और धोखा बुद्ध समर्थकों से ही मिला है। बौद्ध धर्म के समर्थक तीन प्रमुख देश हैं जापान , श्रीलंका और चीन। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में पहले जापान ने भारतीयों को कष्ट दिया भले ही उसे ब्रिटिश उपनिवेश की वजह से यह दंश झेलना पड़ा और आजाद भारत को चीन कष्ट दे रहा है। श्रीलंका में तमिलों पर प्रहार बौद्ध सिंहलियों ने हीं किया।
सनातन से निकली हुई शाखाएं सनातन की जड़ों को ही कमजोर कर रही हैं। मेरे विचार से इस्लाम भी सनातन का ही एक अंश है जो आज धर्म के आधार पर विभाजित भारत को उसी बौद्ध देश के साथ मिलकर आघात पर आघात दिये जा रहा है।
उस गौतम बुद्ध ने यह सोचकर संघ तो नहीं बनाया होगा कि सनातन को समाप्त करना है ( सनातन में फैली कुरीतियों पर उनकी निगाह भले ही हो ) परंतु उत्पन्न होने के साथ हीं बौद्ध संघों ने सनातन को ही चोट पहुंचाई है। आदि शंकराचार्य ने और मिथिला के कर्मकाण्डियों ने हीं बौद्ध झंझावात का सामना किया।
थोड़ा आगे चलकर पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में गौतम बुद्ध को विष्णु का नवम अवतार मानकर सामंजस्य बिठाने की कोशिश की गई परंतु किसी पेड़ की टूटी हुई डाल आमतौर पर अपने मूल पेड़ से नहीं जुड़ पाती है और यही हुआ। इस कालखंड में ऐसा ही एक गौतम और बना …. श्याम प्रकाश गौतम से उमर गौतम बना
। कोई खुद जो बने ,जैन बने बौद्ध बने जैन बने मुसलमान बने या सिख बने कोई फर्क नहीं पड़ता परंतु जब किसी मूक बधिर को भी मुसलमान बनाने की कोशिश हो तो साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता है।
दरअसल हमारे भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ परधर्म-चाटुकारिता बनकर रह गया है। और इसी वसुधैव कुटुंबकम् और अतिथि देवो भव की परंपरा के आड़ में हमारे देश की नींव पर आघात किया जा रहा है।
ज्ञातव्य हो की उमर गौतम ने अपने एक मुसलमान मित्र की सेवा भावना से प्रेरित होकर इस्लाम को अपनाया। यहां तक किसी को किसी साजिश की बू नहीं लग सकती परंतु जब यही गौतम दृश्य श्रव्य विकलांगों को भी मुसलमान बनाने की कोशिश में लगा हुआ मिले और उत्तर प्रदेश की एटीएस धर्मांतरण के मुद्दे पर उस गौतम को एक और मौलाना के साथ पकड़े तो आपको दाल में काला दिखने के बदले पूरी दाल काली लगेगी। मेरे विचार से आज तक किसी सरकार ने सनातन के हित में कोई कदम नहीं उठाया। यकीनन इस सरकार से भी ऐसी कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि सनातनियों को सेकुलर दिखने की गजब चाहत होती है। पर यह सरकार कम से कम सनातन अहित में संलग्न नहीं होती है । यही है वजह कि आज भी केंद्रीय सत्ता अपना दूसरा कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने की राह में है। बौद्ध, जैन, सिख, ईसाइयत , इस्लाम और आर्यसमाज ने सनातन संस्कृति से को बार-बार सिर्फ लहूलुहान हीं किया है और ईसाइयत के साथ इस्लाम ने अब भी सनातनियों को या कहें वंचित सनातनियों को अपने पाले में लाने की कोई भी कोशिश नहीं छोड़ी है। मधुबनी जिले के सुखेत गांव में बना हुआ नया चर्च एक सबूत है कि सनातन के विध्वंशक आज भी सक्रिय हैं और इसका कारण है सनातन का वन वे ट्रैफिक होना। जब तक अन्य संप्रदायों से आए हुए लोगों को पुनः मूल समूह में प्रवेश की राह नहीं बनाई जाएगी तब तक कितने श्याम प्रकाश गौतम , उमर गौतम बन जाएंगे और अनेकों सिद्धार्थ अनुभव हीनता के दायरे में फंँसकर सनातन को अपने आचरण से कमजोर करते रहेंगे।
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