मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम हिन्दुओं की आस्था के केंद्र बिंदु हैं। श्री राम का आदर्श जीवन चरित्र, सदियों से समाज का मार्गदर्शन करता आया है, यही वह शक्ति है जिसने हिन्दुओं को उनकी पहचान दी है। अयोध्या में उनके जन्मस्थान पर बने पुरातन मंदिर को बाबर नाम के इस्लामिक आक्रांता ने 1528 ईस्वी के लगभग ध्वस्त कर, उस मंदिर के पवित्र स्थान पर एक अवैध ढांचा खड़ा कर दिया दिया। ऐसा करने के पीछे उसका मुख्य उदेश्य हिन्दुओं को अपमानित करना और उनकी आस्था का उपहास उड़ाना ही था। लगभग यही कुचरित्र हर एक इस्लामिक आक्रांता का रहा है, चाहे वह गौरी या गजनवी हो, खिलजी या लोधी हो, तुग़लक़ हो या कोई मुग़ल बादशाह हो। मोहम्मद साहब ने यही काम मक्का और मदीना में किया था – उन्होंने अपने ही पूर्वजो के मंदिरों को स्वयं ध्वस्त किया और अपने साथियों द्वारा भी करवाया। भारत भूमि ने इसी धर्मान्धता और कट्टरपंथी वीचारधारा के कारण अपने 50,000 हिन्दू एवं जैन मंदिरों को खोया। छद्म सेकुलरिज्म के कारण आज भी भारतीय जनमानस अपने इन प्रतिक चिन्हों पर अधिकार से वंचित है, और उन पर खड़े अवैध ढांचे आज भी भारतीय समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं।

खंडित मंदिर

श्री राम जन्मस्थान की मुक्ति के लिए हिन्दुओं ने 500 वर्षों तक कड़ा संघर्ष किया है। 76 लड़ाइयों और चार लाख लोगों के बलिदान के बाद अंततः 2019 में सर्वोच्चय न्यायालय ने सारे तथ्यों पर विचार करके अपना निर्णय दिया की हिन्दुओं को उनके आराध्य श्री राम के जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर निर्माण करने का अधिकार मिलना चाहिए। इस संघर्ष का अंत बहुत पहले हो जाता जब भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीक्षक श्री के के महमूद ने मुस्लिम संघठनो को समझने का प्रयास किया था। इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद जब पुरातत्व विभाग ने विवादित ढांचे के समीप स्थल पर खुदाई / अन्वेषण किया तो उन्हें एक छोटे से भूभाग में सेकड़ो अवशेष मिले जिहोने सारे संशयों को दूर करते हुए यह सिद्ध कर दिया की यहाँ एक अति प्राचीन विशाल हिन्दू मंदिर था। के के महमूद का यह आग्रह था की मुसलमानों को क्षमा मांगते हुए राम जन्मभूमि स्थान हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए, यह उनके पूर्वजों के द्वारा हिन्दू समुदाय के साथ किये गए पापों का प्राश्चित भी होता। लेकिन वामपंथीऔर कांग्रेसी नेताओं को शांति से हल होता यह समाधान नहीं भाया – उन्होंने झूठे और मक्कार इतिहासकारों, जैसे रोमिला थापर और इरफ़ान हबीब की फ़ौज सामने खड़ी कर दी और इस मामले के समाधान को नहीं होने दिया। यह वही कांग्रेस है जिसने 20 वकीलों की फ़ौज खड़ी करके न्यायालय में प्रभु श्री राम का जन्म प्रमाण पात्र माँगा था। यह हिन्दुओं की आस्था का प्रश्न था जिसका कांग्रेस ने मजाक बनाया। क्या इन वामियों और निर्लज कॉंग्रेसिओं में इतनी शक्ति है की यीशु का जन्म प्रमाण पात्र मांग सके? पूछ सके की वो बिन ब्याही माँ से कैसे जन्मे? या मरने के तीन दिन बाद अपनी कब्र में से कैसे निकल आये? क्या इन मक्कारों में हिम्मत है की अल्लाह के द्वारा मोहम्मद को भेजी गयी कुरान की आयतों की डिलीवरी की वीडियो रिकॉर्डिंग मांग लें? बस हिन्दुओं पर आघात करने से ही उनकी सेक्युलरिस्म की सारी रस्मे पूरी हो जाती है? आस्था के विषयों का सम्मान होना चाहिए, उन पर प्रश्न उठाने का यह भोंडा प्रयास क्षमा योग्य नहीं है।

राम भक्तों का रक्त

1990 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने घोषणा कर दी थी की कारसेवक तो क्या एक परिंदा भी अयोध्या में पर नहीं मार सकता। पूरी अयोध्या को सैनिक छावनी बना दिया गया, जगह जगह सुरक्षा बल और पुलिस तैनात थे। इसी बीच राम भक्त कारसेवकों के जत्थे अयोध्या पहुंच रहे थे । थल और रेल मार्ग अवरुद्ध होने के बाद भी कारसेवक उत्साह के साथ पैदल ही सैकड़ों मील की दूरी तय करते हुए अयोध्या पहुंच रहे थे । इन्हीं कारसेवकों में दो नवयुवक, 22 साल के रामकुमार कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी जो सगे भाई थे भी सम्मिलित थे। कोठारी बंधू बाल्यकाल से ही मातृभूमि के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। उन दोनों भाइयों ने अक्टूबर 1990 में चल रही कारसेवा में भाग लेने का निर्णय लिया। दिसंबर केवल 2 माह दूर था जब उनकी बहन का विवाह तय हुआ था। बहन ने रुकने को कहा तो उनका यही उत्तर आया कि समाज और धर्म, परिवार से अधिक महत्व रखते हैं। पिता ने दोनों भाइयों से आग्रह किया की कम से कम एक भाई तो यहाँ रुक जाओ पर दोनों रुकने को तैयार न हुए। पिता ने फिर एक शर्त रखी कि कुछ पोस्टकार्ड दे रहा हूं, हर सुबह अपना हाल-चाल लिख के नजदीक के पोस्ट बॉक्स में डाल देना। भाइयों ने उस बात को मान लिया और अगली सुबह ही कलकत्ता से ट्रैन पकड़ कर अयोध्या की ओर निकल पड़े। मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या तक आने वाली सारी ट्रेनें रोक दी थीं। दोनों भाई बनारस ही उतर गए और वहां से आगे की 200 किलोमीटर की दुरी पैदल ही पूरी करी। इन्ही दो कर्मयोगी कोठरी बंधुओं ने  विवादित ढांचे के ऊपर चढ़कर 30 अक्टूबर 1990 को भगवा ध्वज फहरा दिया। इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में उनका नाम हमेशा के लिए अंकित हो गया। इसके बाद 2 नवंबर को विनय कटियार जी के नेतृत्व में कारसेवकों का एक जत्था हनुमानगढ़ी की तरफ बढ़ रहा था जिसमे कोठारीबंधू भी सम्मिलित थे, पर पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी। अयोध्या की सडकों पर राम भक्तों का रक्त बहने लगा। दोनों भाई उस गोलीबारी से बचने के लिए समीप के घर में छुप गए।

कोठरी बंधू

लेकिन पुलिस वालों को उनके राजनीतिक मालिकों ने कुछ और ही आदेश दिये हुए थे। मुलायम का रामभक्तों के विरुद्ध रचा यह षडयंत्र इतनी आसानी से कहाँ थमने वाला था? पुलिस वालों ने शरद कोठारी को घर से बाहर निकाला और उसके सर पर बंदूक तान कर गोली दाग दी। गोली सर को चीरती हुई दूसरे कोने से बाहर निकल गई, शरद कोठारी का वहीँ क्षण भर में अंत हो गया। एक वीर पुरुष प्रभु श्री राम के चरणों में बलिदान हो गया। यह सब देख कर राम कुमार कोठारी अपने आप को रोक नहीं सके, वह भी घर से बाहर आ गए और पुलिस से यह बर्बरता रोकने का आग्रह किया, लेकिन वे लोग तो कुछ और ही प्लान लेकर निकले थे। फिर हिंदुस्तान में हिंदुओं का रक्त बहुत सस्ता है, उस दिन भी यूँही बहा दिया गया मुलायम सिंह यादव द्वारा अपनी वीभत्स राजनितिक महत्वाकांशा पूरी करने के लिए।  राम कुमार कोठारी की गर्दन पर भी गोली मार दी गयी जो गर्दन को भेदती हुई निकल गयी। देखते ही देखते दोनों भाई मातृभूमि के चरणों में बलिदान हो गए। कोठरी बंधुओं जैसे बलिदानियों के पुण्य प्रताप का ही परिणाम है की हम अपने जीवन में एक भव्य राम मंदिर का निर्माण होते हुए देख रहे हैं। इन शूरवीरों, बलिदानियों को  शत-शत नमन।

प्रस्तावित राम मंदिर

मानव के लिए कल्याणकारी इस सनातन सभ्यता को बचाए रखना है तो हमें सज्जन शक्ति को एकत्रित कर उसे बढ़ाना होगा। आज भी काशी में नंदी महाराज अपने शिव के मंदिर की प्रतीक्षा कर रहे हैं।  एक और विवादित ढांचे की ओर मुंह करके खड़े हैं, और देवी अहिल्याबाई होल्कर जी द्वारा बनाया गया काशी विश्वनाथ का मंदिर कुछ और ही कहानी कह रहा है। यदि हम मथुरा चले जाएं तो वहां भी यही कहानी दोहराई जा रही है, भगवान श्री कृष्ण (केशवदेव) का मंदिर तो दिखाई भी नहीं देता। यही कहानी उन 50 हजार मंदिरों की भी है जिन्हें इस्लामिक आक्रांताओं ने खंडित कर दिया। कब तक हम मौन रूप धारण कर इस अपमान को सहते रहेंगे? हमें अपनी शक्ति को पहचान कर उसे बढ़ाना होगा । उन 50,000 से अधिक मंदिरों में पुनः अपनी आस्था के दीप जला सके, वहां पुनः वेदों की ऋचाएं गूंज सकें – आइये हम सब मिल कर इस दिव्य स्वपन को पूरा करने के लिए अपना तन, मन, धन अर्पित करने का प्रण करें – जय श्री राम।

श्री राम

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.