एक सिनेमा में हीरो का सबसे पसंदीदा डायलाग होता है , “इतनी जल्दी भी क्या है ,अभी तो मैंने शुरू भी नहीं किया है |” – ठीक यही बात आज भारत न सिर्फ पूरी दुनिया को बल्कि देश में रह कर , देश के विरूद्ध ही नकारात्मक सोच रखने वाले सभी द्रोहियों से भी कह रहा है कि ,बस अभी से ही इतनी तिलमिलाहट , इतनी खीज | अभी तो भारतीयों ने अपने मुताबिक़ अपने देश को पुनः परम वैभव के शिखर पर ले जाने के कार्य को बस शुरू ही किया है |
सनातन हिन्दुओं को वर्षों तक समग्र और संगठित न होने देने की साजिश जो दशकों तक चलाई जाती रही और तमाम संसाधन व मेधा को जानबूझ कर दोयम दर्जे का साबित किया जाता रहा | सैकड़ों वर्षों की परतंत्रता ने पुरातन गौरव और संस्कृति को पहचान कर पुनः उठ खड़े होने के प्रयास को प्रारम्भ होने में थोड़ा सा अधिक समय लिया | पिछले छ वर्षों में यकायक ही दुनिया को वो परिवर्तन और फैसले देखने को मिले जो उसे पिछले कई दशकों तक नहीं मिल सके थे |
इस तीव्र और राष्ट्रवादी महापरिवर्तन ने अचानक ही सारा परिदृश्य बदल दिया और पूरी दुनिया में अपने तथाकथित जेहाद को न सिर्फ हिन्दू बल्कि विश्व के हर अन्य जीवन पद्धति को काफिर करार कर देने वाली सोच की प्रतिक्रया स्वाभाविक रूप से अधिक उग्र होकर सबको दिखने लगी |देश के बहुमत से बनने वाली सरकार द्वारा लिए गए हर फैसले का ,बनाए जा रहे हर कानून का , अपनाए जा रहे हर रुख का विरोध | कई बार तो सिर्फ विरोध में खुद को दिखाने के लिए ही विरोध |
और वर्षों से विरोध ,असहमति , आलोचना के पारम्परिक तरीकों को छोड़ कर अपने चरित्र और व्यवहार के अनुरुप ये लोग , ये समूह , देश दुनिया को आतंक , हिंसा , लूटपाट ,दंगे आदि की आड़ में पूरी विश्व सभ्यता को डराने धमकाने जैसे कार्य में लग गए | इन्हें ऐसे कामों में धन और साधन की सहायता के लिए भारत के चिर शत्रु देश चीन पाकिस्तान बंगलादेश आदि हमेशा ही उपलब्ध रहे |
दिल्ली के दंगे , पिछले छ वर्षों तक सरकार , भाजपा , प्रधानमंत्री और हिन्दू समाज के प्रति अल्पसंख्यक समुदाय के मन में धीरे धीरे जमा हो रही नफरत की परिणति का चरम बिंदु था | हालांकि दिल्ली के साथ भारत के और भी बहुत से शहरों को इन विरोध प्रदर्शन की आड़ में हिंसा आगजनी लूटपाट में झोंक दिया | इसके साथ ही पूरे शातिराना तरीके से कुछ ख़ास ख़ास विश्विद्यालयों के छात्र समूहों को बरगला कर शाहीन बाग़ और इन जैसी जगहों पर धरना प्रदर्शन का खेल भी चलता रहा |
दिल्ली के दंगे -पूरे तीन दिनों तक पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में भयंकर दंगे फसाद को अंजाम दिया गया | बहुत सारे षड्यंत्रों को एक साथ अमली जामा पहनाते हुए इस क्रूरतम अपराध को अंजाम दिया गया | प्रमाण और साक्ष्यों ने बाद में जाकर ये प्रमाणित किया कि सोची समझी साजिश के तहत ,हिन्दू समाज को डराने , और सरकार को भयभीत करने के ईरादे से इसे किया गया |
दूसरी तरह शाहीन बाग़ से जिस तरह से मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा खबरों ,चित्रों ,वीडियोज़ का लगातार प्रसारण चल रहा था ,उसके बावजूद भी इस गैरकानूनी धरने ,जिसके कारण महीनों तक लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा उसे जस्टीफाई करने के लिए या कहें की जबरिया आंदोलन घोषित करने के लिए किताब छापी गई है |
अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा एवं उनके साथियों द्वारा ख़ुद दंगा प्रभावित क्षेत्र में जाकर , वहां की गई पड़ताल और आँखों देखा वो अनदेखा सच अपने इस पुस्तक के माध्यम से समाज के सामने ला रही हैं जिससे दिल्ली दंगों का बाकी बचा हुआ क्रूर और घिनौना सच भी सारी दुनिया के सामने आ जाए | एक प्रकाशन समूह ब्लूमबरी इंडिया ने इस पुस्तक के प्रकाशन वितरण आदि के लिए किये गए अपने व्यावसायिक करार से ,एक बचकानी सी वजह को इसका कारण बताते हुए , अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं |
और उसे ऐसा करने के लिए देश के अंदर और बाहर के वही लोग सबसे ज्यादा सक्रिय और मुतमईन रहे ,हलकान रहे जो पिछले दिनों बात बात पर तख्तियां और मोमबत्तियां लिया “लेके रहेंगे आजादी ” का नारा ए तदबीर लगा लगा कर छाती कूटते रहे | कभी असहिष्णुता ,कभी पुरस्कार वापसी ,कभी सार्वजनिक पत्र ,धरने ,दंगे और जाने कौन कौन से कितने प्रपंच ये लोग पिछले छह वर्षों से किये चले आ रहे हैं |
और खुद की हालत देखिये कि , दिल्ली दंगों के सच के लोगों के सामने निकल कर आने से पूरी तरह एक्सपोज़ और नंगे हो जाने की संभावना मात्र , इस सच के सामने आने के बाद समाज देश का सामना करने में आने वाली शर्म , होने वाली जलालत से घबरा उठने वाले ये तमाम बुद्धिजीवी और इनकी भभकियों से डर जाने वाला प्रकाशक समूह दोनों बेचारों की हालत आज धोबी के कुत्ते जैसे हो गई है ,न घर के रहे ,न घाट के
कानून नहीं चईये
पुलिस भी नहीं चईये
मंदिर नहीं चईये
अदालत का फैसला नहीं चईये ,
नहीं नहीं नहीं हमें ये किताब भी नहीं चईये , लोकतंत्र को ,पूरी कौम को ख़तरा है इससे —-इसमें सब कुछ सच लिखा हुआ है |
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