इतिहास के महापुरुष नाम से लिखा जा रहा रामराज्य का यह विशेष लेख आप सभी तक पहुचता रहेगा | ये महापुरुष ऐसे है जिन्होंने भारतीय और विश्व इतिहास को बहुत कुछ दिया | यह दुनिया उनके अलौकिक व्यक्तित्व को आज भी नमन करती है | आज इसलेख का पहला लेख हम भगवान महावीर और गौतम बुद्ध को समर्पित कर रहे है | हमारे इस विशेष लेख में हम इन्हे उच्च पंक्ति में शोभायमान कर रहे है |
भगवान् महावीर और बुद्ध
भारत को संतो का देश कहा जाता है अनादिकाल से यह धरती संतो के उपदेशो से रोशन रही है | भारत में महावीर और बुद्ध हुए | महावीर ने आजकल का प्रचलित जैनधर्म चलाया | इंकॉसली नाम वर्धमान था | महावीर तो उन्हें दी गयी महानता की एक पदवी है | जैन लोग ज्यादातर पश्चिमी भारत और काठियावाड़ में रहते है जो मुख्यतः राजस्थान और गुजरात के भाग है | दक्षिण , काठियावाड़ और राजस्थान में आबू पहाड़ पर इनके बड़े सुन्दर मंदिर है | अहिंसा में इनकी बड़ी श्रद्धा है और ये ऐसे कामो के बिलकुल खिलाफ है , जिनसे किसी भी जीव को तकलीफ पहुंचे | इस सिलसिले में यह जानकारी दिलचस्प होगी की पाइथागोरस कट्टर निरामिष भोजी था | उसने अपने शिष्यों के लिए भी यह नियम बना दिया की कोई मांस न खाय |
गौतम बुद्ध क्षत्रिय थे और एक राजवंश के राजकुमार थे | सिद्धार्थ उनका नाम था | उनकी माता का नाम महारानी माया था | प्राचीन जातक कथा में लिखा है की महारानी माया पूरब चंद्र की तरह उल्लास के साथ पूजने योग्य , पृथ्वी के सामान दृढ़ और स्थिऱ निश्चयवाली तथा कमल के सामान पवित्र हृदयवाली थी |
माता पिता ने गौतम को हर तरह के ऐश आराम में रखा और यह कोशिश की की दुःख दर्द और रोग शोक के दृश्यों से वह बिलकुल दूर रहे | लेकिन यह संभव नहीं हो सका – और कहा जाता है की उन्होंने एक कंगाल , एक रोगी और एक मुर्दा देखा , जिनका उनके ह्रदय पर बहुत असर हुआ | इसके आड़ राजमहल में उन्हें जरा भी शांति नहीं रही और ऐश आराम के सरे साधन , जिनसे वह चारो ओर से घिरे रहते थे , यहाँ तक की उनकी सुन्दर युवा पत्नी , करते थे , दुःख तृप्त मानवता कीओर से उनका चित्त न हटा सके | उनके ह्रदय की यह चिंता और इन दुखो को दूर करने के उपाय खोजने की इच्छा दिन पर दिन बढ़ती ही गयी | यहाँ तक की वह इस हालत को बर्दाश्त न कर सके और अंत में एक रात में चुपचाप अपने राजमहल और प्रियजनों को छोड़कर , जिन प्रश्नो ने उन्हें परेशां कर रखा था, उसके समाधान की खोज मे , इस लम्बी चौड़ी दुनिया में अकेले निकल पड़े | इस समाधान की खोज में उन्हें बहुत वक़्त लगा और बहुत तकलीफे उठानी पड़ी | आखिर बहुत वर्षो बाद गया में एक वाट वृक्ष के निचे बैठे हुए उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हुआ और वह बुद्ध हो गए | जिस पेड़ के निचे वह बैठे थे वह बोधि वृक्ष के नाम से मशहूर हो गया | प्राचीन कशी की छाया में बसे हुए सारनाथ , जो उस ज़माने में इतिपत्तन या ऋषिपत्तन कहलाता था , हरिण क्षेत्र में बुद्ध ने अपने सिद्धांतो का प्रचार शुरू किया | उन्होंने सद्जीवन का रास्ता बताया | देवताओ के नाम पर की जाने वाली पशु बलि वगैरह की उन्होंने निंदा की और इस बात पर जोर दिया की इन बलिदानो की बजाय मनुष्य को क्रोध , द्वेष , ईर्ष्या और बुरे बुरे विचारो का बलिदान करना चाहिए |
बुद्ध के जन्म के समय , भारत में पुराण वैदिक धर्म प्रचलित था , लेकिन वह बहुत बदल गया था और अपने ऊँचे आदर्शो से निचे गिर चूका था | ब्राम्हण पुरोहितो ने तरह तरह के कर्म काण्ड , पूजापाठ और अन्धविश्वास जारी कर दिए थे | जाती का बंधन बहुत कड़ा होता जा रहा था और आमलोग अपशकुन , मंत्र तंत्र , जादूटोना और स्थानों से डरते थे | इन तरीको से पुरोहितो ने मुट्ठी में और क्षत्रिय राजाओ की सत्ता को चुनौती देने लगे थे | इस तरह क्षत्रियो और ब्राम्हणो में संघर्ष चल रहा था | उसी समय बुद्ध एक लोकप्रिय सुधारक के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने पुरोहितो के और पुराने वैदिक धर्म में जो खराबियाँ आ गयी थी , उन पर हमला बोल दिया | उन्होंने शुद्ध जीवन बिताने और पूजापाठ वगैरह का निषेध किया | उन्होंने बौद्ध धर्म को मानने वाली भिक्षु और भिक्षुनियो की संस्था बौद्ध संघ का भी संगठन किया |
कुछ दिनों तक धर्म के रूप में बौद्ध धर्म का प्रचार भारत में बहुत नहीं हुआ | आगे चलकर यह खूब फैला और फिर भारत में एक अलग धर्म के रूप में करीब करीब मिट सा गया | जहा लंका से लेकर चीन तक दूर दूर के मुल्को में यह धर्म सर्वोपरि हो गया , वहा अपनी जन्मभूमि भारत में यह फिर ब्राम्हणधर्म या हिन्दुधर्म में समा गया | लेकिन ब्राम्हणधर्म पर इसका बहुत बड़ा असर पड़ा और इसने हिन्दुधर्म में से बहुत से अन्धविश्वास और पाखंड हटा दिए |
इतिहास के महापुरुष शीर्षक से यह हमारा पहला लेख था आगे यह श्रंखला बढ़ती चली जायेगी |
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