बाला साहेब ठाकरे हिंदू बहादुरी की वो आवाज़ थे जो मुखर होकर हर राष्ट्रविरोधी फुंकार को कुचल दिया करते थे। हर सही बात के पक्ष में बाला साहेब की बुलंद आवाज ‘सामना’ अख़बार के जरिये देश पढ़ता था। ऐसे में बाला साहेब की विरासत को सम्हालना और उसे आगे बढ़ाना बड़ी जिम्मेदारी का काम था, जिसे पूरा करने में उद्धव ठाकरे नाकाम साबित हुए हैं।
उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की आत्मा और बाला साहेब के सपने के साथ समझौता कर छल किया है। मराठी अस्मिता को हिन्दू राष्ट्रीय गौरव के सिक्के से चमका कर चलाने वाले बाला साहेब की दूरदर्शिता उद्धव में दूर दूर तक नहीं है। महाराष्ट्र में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ आवाज उठाना हो या बाबरी विध्वंस के समय हिंदुत्व की आत्मा में प्राण फूंकने हो, बाला साहेब हमेशा आगे रहे। 1990 के दौर में ये बाला साहेब ही थे जिन्होंने हिंदू अस्मिता बोध के रूपक महाराष्ट्र की जनता के मन में बोये, जिसकी फसल 6 दिसम्बर को अयोध्या में देखने को मिली। बाला साहेब को शिव सैनिकों पर इतना गर्व था कि वो हक़ से कहा करते थे कि बाबरी पर चढ़ने वालों में सबसे आगे शिवसैनिक होंगे और 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस में शिवसैनिकों ने बाला साहेब के वचनों का मान भी रखा।


अब दूसरी तरफ हैं बाला साहेब के बेटे उद्धव ठाकरे जो बाबरी तो दूर मुम्बई में हुए अवैध निर्माणों को रोक नहीं पाए हैं। हजारों रोहिंग्या-बंगलादेशी घुसपैठिए मुंबई के तमाम इलाकों में छिपे हुए हैं। सड़को के बीचों-बीच अवैध मस्जिदें बनाकर खुदा को पुकारा जाता है और उद्धव ठाकरे अपने कान में रुई डालकर बैठे रहते हैं। मगर इन्हीं उद्धव ठाकरे की सारी ताकत तब नुमायां होती है जब एक लड़की बॉलीवुड ड्रग माफिया के खिलाफ आवाज बुलंद करती है और उद्धव ठाकरे CM कुर्सी का जलाल इस्तेमाल करते हुए कंगना का दफ्तर तुड़वा देते हैं। सारा देश बाला साहेब को याद करता है कि साहेब आपने कैसा बेटा दिया है जो कांग्रेस-NCP की चाटूकारिता में शिवसैनिक होने के मूल अभिमान को ही भूल गया है। जाहिर है एक तरफ थे हिंदू ह्रदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे जो बाबरी विध्वंस पर गर्व करते थे तो दूसरी ओर है उद्धव ठाकरे जो एक औरत का दफ्तर तोड़ने पर गर्व करते हैं… बड़ा सवाल मन में कौंधता है कि शिवसेना कहाँ से चली थी और कहां तक आ गई है।

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